मेनू
हमारे यहां सांपों को पूजा जाता है और उनके यहां खाया जाता है। कितनी अजीब सभ्यता है? वहां के लोगों को प्रकृति ने खाने को कितना कुछ दिया पर उनका खान-पान प्रकृति के विपरीत ही है।
शुभम वैष्णव
हमारे परम मित्र हैं भोजन लाल हलवाई। एक बार उनका चीन जाना हुआ। परंतु अब आप यह मत समझ लेना कि उनको भी कोरोना हो गया है। वह तो कई वर्षों पूर्व चीन भ्रमण के लिए गए थे और मैं आपको उनका यात्रा वृतांत इसलिए बता रहा हूं क्योंकि हाल ही में उन्होंने मुझे भ्रमण के दौरान का एक किस्सा सुनाया है।
जब वे चीन गए तो रहने के लिए एक होटल का कमरा किराए पर ले लिया। शाम को जब भोजन का समय हुआ तो वेटर उनके पास खाने के ऑर्डर के लिए मेनू कार्ड लेकर आया। उस मेनू कार्ड को पढ़कर भोजनलाल जी का माथा ठनक गया। मेनू कार्ड का विवरण निम्न प्रकार से था-
- सांप का सूप
- मेंढक का रायता
- मगरमच्छ की सब्जी
- केंचुआ के पराठे
- ऑक्टोपस स्पेशल डिश
- छिपकली का सूप…आदि।
इस मेनू कार्ड को पढ़कर भोजनलाल जी को लगा कि वे किसी होटल में रुके हैं या जंगल में। चीनियों का खानपान देखकर भोजन लाल जी तो दूसरे दिन ही वापस भारत लौट आए और अब उनका कहना है कि हम भारतीय खुद को असभ्य मानते हैं और चीन जैसे देशों की सभ्यता की मिसाल देते फिरते हैं लेकिन जब हम उनके खान-पान और अपने खान-पान में अंतर देखते हैं तो पता चलता है कि हमारे यहां सांप जंगलों में रहते हैं, मगरमच्छ पानी में और केंचुए खेत में। जबकि उनके यहां सब जानवर थाली में भोजन के रूप में सजे रहते हैं।
हमारे यहां सांपों को पूजा जाता है और उनके यहां खाया जाता है। कितनी अजीब सभ्यता है? वहां के लोगों को प्रकृति ने खाने को कितना कुछ दिया पर उनका खान-पान प्रकृति के विपरीत ही है। अब बताओ ज्यादा सभ्य कौन हुआ हम भारतीय जो सात्विक आहार करते हैं या वे लोग जो ऐसा आहार करते हैं जिसके कारण कई तरह की बीमारियां व्यक्ति को घेर लेती हैं?