राजस्थान का मेवात क्षेत्र : गोतस्करी का बड़ा केंद्र
डॉ. शुचि चौहान
राजस्थान का मेवात क्षेत्र यूं तो हर तरह के अपराध जैसे चोरी, ठगी, लूटमार, अपहरण, फिरौती आदि के लिए कुख्यात है। लेकिन इन सब के अलावा इस क्षेत्र को गो तस्करी के लिए भी जाना जाता है। एक समय था जब मेवात के मेव पशुधन की चोरी किया करते थे लेकिन पूरी ईमानदारी के साथ। वे पशुधन चुराते थे और फिरौती लेकर उसे वापस कर देते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब पशुधन की चोरी होती है, उन्हें तस्करी कर दूसरे प्रदेशों में ले जाकर बेच दिया जाता है। इनमें दूध देने वाली भैंस को छोड़ दें तो बाकी लगभग सारा पशुधन स्लॉटर हाउस / कसाइयों / अंतर्राज्यीय व अंतर्राष्ट्रीय तस्करों के पास पहुंच जाता है।
राजस्थान में बड़ी संख्या में लोग पशुपालन करते हैं। यहां गो हत्या प्रतिबंधित है। इसलिए गोमांस भी चोरी छिपे ही खाया जाता है। गोवंश कटता है वह भी चोरी छिपे और मुस्लिम क्षेत्रों में। कुछ वामपंथियों को छोड़ दें तो आम हिन्दू आज भी गोमांस नहीं खाता। लेकिन देश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों और मुस्लिम देशों में गोमांस की बहुत मांग रहती है। ऐसे में पूरे प्रदेश से तस्करी कर गोवंश अलवर लाया जाता है। यहां से इसे हरियाणा और उत्तर प्रदेश भेजा जाता है। कुछ गोवंश स्थानीय बूचड़खानों की भेंट चढ़ जाता है तो कुछ असम की लंका पशु मंडी, वहां से सिल्चर और फिर सड़क या नदी के रास्ते बांग्लादेश पहुंचा दिया जाता है।
बांग्लादेश में गायों की तस्करी गैर-कानूनी नहीं है। इसे वहां कैटल ट्रेड कहा जाता है। बांग्लादेश सरकार इस पर राजस्व वसूलती है। एक गाय को आगे भेजने का पांच सौ टका टैक्स लगता है। तस्करों को इसकी स्लिप भी मिलती है। बॉर्डर पर गायों की तस्करी से सालाना 16 सौ करोड़ रुपये का कारोबार होता है। बीएसएफ के अनुसार भारत से हर साल लगभग साढ़े तीन लाख गायों को चोरी छिपे बांग्लादेश सीमा पार करवाकर बेचा जाता है। गृहमंत्रालय के अनुसार साल 2014 और 2015 के दौरान बीएसएफ ने 34 गाय तस्करों को मुठभेड़ में मार गिराया, बांग्लादेश के बॉर्डर एरिया से तस्करी करने के लिए ले जाई जा रहीं 200 – 250 गायों को बीएसएफ प्रतिदिन बरामद करती है। असम की पशु मंडियों में एक गाय की औसत कीमत 55 हजार रुपये तक होती है और असम बॉर्डर पार करवाते ही बांग्लादेश में गाय की कीमत 1 लाख रुपये तक हो जाती है। बांग्लादेश में गोमांस की खपत बहुत ज्यादा है। वहां के लोगों का यह सबसे सस्ता भोजन है।
बीएसएफ के अधिकारी बताते हैं कि देश के कई राज्यों से गायें भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर लाई जाती हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन राज्यों से लेकर बॉर्डर तक आने वाले रास्ते में कितने चैक प्वाइंट, नाके या बैरियर मिलते हैं। कस्टम, पुलिस और आरटीओ जैसे विभाग भी 24 घंटे डयूटी पर रहते हैं। इन सबके बावजूद गायें बॉर्डर पर पहुंच जाती हैं। कई बार गायों को तस्करों के कब्जे से छुड़ाकर बीएसएफ उन्हें पुलिस या कस्टम वालों को सौंप देती है। फिर इन गायों की बोली लगती है लेकिन यहॉं भी इन गायों को तस्कर ही कुछ रुपये देकर छुड़ा लेते हैं। मोटे तौर पर एक बार जो गाय किसी राज्य से बॉर्डर तक पहुंच गई है, वह वापस नहीं जाती। उसे तो बांग्लादेश जाना ही है। स्थानीय प्रशासन ने ऐसी कोई योजना नहीं बनाई है कि बीएसएफ द्वारा पकड़ी गई गायों को किसी गोशाला में छोड़कर आएं।
यह सब तब है जब भारत में गोहत्या के विरुद्ध कड़े प्रावधान हैं। लेकिन कुछ राज्य इसको लागू करते हैं और कुछ नहीं। भारतीय मांस निर्यात नीति के अनुसार, गोमांस (गाय, बैल का मांस और बछड़ा) का निर्यात भी प्रतिबंधित है। केवल भैंस, बकरी, भेड़ और पक्षियों का मांस ही निर्यात किया जा सकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 अक्टूबर, 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गाय हत्या कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। आज भारत के विभिन्न राज्यों में गोहत्या या गोमांस बिक्री को प्रतिबंधित करने संबंधी अलग अलग नियम हैं।
दस राज्यों – केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और एक केंद्र शासित राज्य लक्षद्वीप में ‘फिट फॉर स्लॉटर’ पशुओं को काटा जा सकता है जिनमें गाय भी शामिल है। आठ राज्यों और लक्षद्वीप में तो गो-हत्या पर किसी तरह को कोई क़ानून ही नहीं है। बाकी राज्यों में उत्तर प्रदेश के नए कानूनों को छोड़ दें तो या तो कानून ही लचर हैं या फिर हैं भी तो भ्रष्टाचार के चलते वे तस्करों का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। तस्कर इन्हीं विसंगतियों का फायदा उठाते हैं।
राजस्थान में राजस्थान बोवाइन एनिमल एक्ट 1995 के अंतर्गत गोहत्या पर कम से कम तीन साल और अधिकतम 10 साल की कैद और 10 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। यहां अंतर्राज्यीय बॉर्डर पर गो रक्षा पुलिस चौकियां भी स्थापित की गई हैं। फिर भी न तो गो तस्करी रुकती है और न ही हत्या। और यहां तो लोग तब दंग रह गए जब 20 जनवरी को सिकरी के बर्रू गाँव में रात को गोमांस की तस्करी के लिए प्रयोग की जा रही एक बोलेरो गाड़ी पकड़ी गई। जिस पर कांग्रेस के एक विधायक के नाम और उनके चुनावी स्टिकर्स चिपके थे। बोलेरो बर्रू गाँव से पालकी की तरफ जाते समय एक मकान से टकरा गई थी। बोलेरो में गोमांस से भरी 4 बोरियाँ पकड़ी गईं।
अब्दुल गनी खान मेव कहते हैं, तस्करों को गोवंश की तस्करी में मोटी कमाई होती है। लोगों की मानें तो तस्कर को एक गाय की तस्करी पर 20-25 हजार रुपए मिल जाते हैं। गाय को काटने पर 15 हजार में उसकी खाल तो 4-5 हजार में मांस बिक जाता है। इसी लालच के चलते राजस्थान से हरियाणा में प्रतिदिन लगभग 200 गायों की तस्करी हो रही है। यह भी सामने आया है कि देश में गोमांस को विदेशों में निर्यात करने वाली 22 कंपनियां हैं। इन कंपनियों के एजेंट हरियाणा, राजस्थान में सक्रिय हैं। जो मेव समाज के युवाओं को गो-तस्करी में शामिल करते हैं।
राज्य में पिछले वर्ष गो-तस्करी के 150 मामले दर्ज हुए, इनमें सबसे अधिक 83 मामले केवल अलवर जिले में दर्ज हुए थे। 100 लोगों को गिरफ्तार कर 500 से अधिक गायों को मुक्त कराया गया। पुलिस की जांच में सामने आया है कि गिरफ्तार हुए अधिकांश तस्कर हरियाणा के नूंह मेवात क्षेत्र के हैं, पुलिस और गो-तस्करों के बीच मुठभेड़ में मेव समाज के तीन लोग मारे गए, और दो दर्जन से अधिक घायल हुए। जांच में यह भी सामने आया कि तस्करी कराने वाली कंपनियों के एजेंट ही तस्करों को आत्मरक्षा के लिए हथियार भी उपलब्ध कराते हैं जिनका उपयोग वे मुठभेड़ के दौरान करते हैं। अब्दुल गनी खान मेव कहते हैं कि गो तस्करों को इस काम में कोई लागत नहीं लगानी पड़ती। इस अवैध धंधे में पैसा ही पैसा है। इसीलिए गोतस्करों में कभी कभार होने वाली मुठभेड़ का कोई भय नहीं है।