सद्भाव व एकता का प्रतीक मोगा का शहीदी स्मारक
बात 25 जून, 1989 की है। मोगा के नेहरू पार्क में हर दिन की भांति सुबह 6 बजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगी थी। इस दिन यहॉं कई शाखाओं का एकत्रीकरण था। शाखा की गतिविधियां चल रही थीं कि अचानक कुछ लोग आए और उन्होंने स्वयंसेवकों से संघ ध्वज उतारने को कहा। स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से मना कर दिया तभी गोलीबारी शुरू हो गई। पार्क में सैर कर रहे लोगों में अफरा तफरी मच गई, लोग इधर उधर भागने लगे। देखते ही देखते 25 स्वयंसेवकों की जानें चली गईं और 33 लोग घायल हो गए।
यह आतंकी हमला था। षड्यंत्रकारियों का उद्देश्य हिन्दू सिख एकता को चोट पहुंचाना था। वे चाहते थे कुछ ऐसा नैरेटिव बने कि सिखों ने हिन्दुओं को मारा। कुछ लोगों ने भड़काना भी शुरू कर दिया – सिखों ने अब लगाया है शेर की पूँछ को हाथ। लेकिन सामाजिक सद्भाव व एकता के लिए जीने मरने वाले संघ स्वयंसेवकों ने मामले की संवेदनशीलता को समझा और सद्भाव बनाए रखते हुए आतंकियों को मुंहतोड़ उत्तर देने के लिए अगले दिन फिर शाखा लगाई और सुबह वे गा रहे थे – कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आँख के समान हैं।
इस नृशंस नरसंहार के बाद मोगा के आमजन ने भी आपा नहीं खोया। सभी घायलों को दोनों समुदाय के लोगों ने मिलकर अस्पतालों में भर्ती करवाया और उन्हें अपना खून दिया। बलिदानियों के अंतिम संस्कार में अटल बिहारी वाजपेयी भी पहुंचे। उनके मार्मिक भाषण ने सद्भावना की नींव को मजबूत करने का काम किया। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदलकर शहीदी पार्क कर दिया गया और सभी बलिदानियों की याद में शहीदी स्मारक का निर्माण हुआ। 9 जुलाई को स्मारक की आधारशिला रखी गई। 24 जून, 1990 को रज्जू भैया ने इसका उद्घाटन किया।
इस गोली कांड में लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवन्त सिंह आदि स्वयंसेवक सदा के लिए भारतमाता की गोद में सो गए।