सम्पूर्ण दुनिया को प्रकाश देने के लिए भारत को सामर्थ्य सम्पन्न होना है- मोहन भागवत
सम्पूर्ण दुनिया को प्रकाश देने के लिए भारत को सामर्थ्य सम्पन्न होना है- मोहन भागवत
77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने Vasavi Convention Hall में राष्ट्र ध्वज फहराया। इस अवसर पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले उपस्थित थे।
अपने सम्बोधन में डॉ. मोहन भागवत ने देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने कहा कि ‘यहां हमने ध्वजात्तोलन किया। भारत माता का पूजन किया। सूर्य भगवान की आराधना आप लोग कर रहे हैं, सूर्य नमस्कार के द्वारा। यह अत्यंत समीचीन बात है। हम तेज की उपासना करने वाले हैं। इसलिए भारत है, जो भा यानी प्रकाश यानी जो प्रकाश में रत रहता है वो भारत है। प्रकाश का जो उद्गम है हमारे विश्व के लिए, वो हमारा सूर्य है। उस आदित्य की आराधना स्वतंत्रता दिवस पर करना अत्यंत औचित्यपूर्ण कार्य है। आपने किया और कर रहे हैं, स्वतंत्रता दिवस पर भारत के स्वतंत्र होने की जो बात हुई, सम्पूर्ण विश्व को प्रकाश देने के लिए भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्र होना, वो जो स्व है, वो यही है- एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:। आज विश्व को इसकी आवश्यकता है, हमको इसके लिए तैयार होना है। तैयार होने के लिए क्या करना है?’’
अपने संबोधन में आगे सरसंघचालक ने कहा कि ’हमें अपने राष्ट्र ध्वज के स्वरूप का चिंतन करना है। इसके लिए हमें ज्ञान की, प्रकाश की आराधना करनी पड़ेगी, तमसो मा ज्योतिर्गमय। इस दिशा में अपने जीवन को अग्रसर करना पड़ेगा और त्याग करना पड़ेगा, निरंतर कर्मशील रहना पड़ेगा। इसलिए हमारे ध्वज के शीर्ष स्थान पर यह केसरिया, भगवा, गेरुआ रंग है। यह इन बातों का प्रतीक है। तिरंगे के शीर्ष स्थान पर केसरिया-भगवा रंग हमें त्याग और कर्मशील होने का सन्देश देता है। मन के सारे विकारों, स्वार्थ और भेदों को मिटाकर सबके लिए करना, उस निर्बल सुचितापूर्ण मन का प्रतीक सफेद रंग है, वह अपने ध्वज के मध्य में है।
सम्पूर्ण दुनिया को प्रकाश देने के लिए भारत को सामर्थ्य सम्पन्न होना है। भारत सामर्थ्य सम्पन्न न हो, इसके लिए हमें तोड़ने वाली शक्तियां भी कार्यरत हैं। हमारा काम बनता है कि हम सावधान रहें। हम अपने स्वत्व के आधार पर, हमारा राष्ट्र ध्वज किन बातों का दिग्दर्शन करता है, इसको समझकर कार्यरत रहें और सम्पूर्ण देश को एक बनाएँ।
देश की स्वाधीनता का प्रयोजन बताते हुए डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि ’ज्ञान, कर्म, भक्ति, निर्मलता और समृद्धि के आधार पर सारे विश्व को जीवन जीने की सीख दें, यह हमारी स्वतंत्रता का प्रयोजन है। अपने स्व के आधार पर तंत्र बनाते हुए हमें आगे बढ़ना पड़ेगा। स्वाधीनता का एक प्रसंग है 15 अगस्त 1947, स्वतंत्रता इसके बाद निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया को हमको आगे बढ़ाना है। इसका संकल्प हम आज लें कि अपने देश को संपूर्ण जगत का उपकार करने वाला ऐसा देश हम बनाएँगे। हम गुरु पद मांगेंगे नहीं, दुनिया कहेगी भारत हमारा गुरु है।’