समग्र समृद्धि के लिए तिरंगे के तीनों रंगों को अपनाना है- डॉ. मोहन भागवत

समग्र समृद्धि के लिए तिरंगे के तीनों रंगों को अपनाना है- डॉ. मोहन भागवत

समग्र समृद्धि के लिए तिरंगे के तीनों रंगों को अपनाना है- डॉ. मोहन भागवत

मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश को स्वतंत्रता मिली, लेकिन इस स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए नागरिकों को योग्य बनने की आवश्यकता है। इस योग्यता का बोध हमें अपने राष्ट्रीय ध्वज के रंग से मिलता है। हमें समग्र समृद्धि के लिए अपने जीवन में इन रंगों का उपयोग करके सभी को अपने साथ ले जाना है। देश को स्व-निर्भर व स्वावलम्बी बनाना है। देश स्व-निर्भर होगा, तभी सुरक्षित रह सकता है।

डॉ. मोहन भागवत 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजा शिवाजी विद्यालय, इंडियन एजुकेशन सोसाइटी, दादर (मुंबई) द्वारा आयोजित समारोह में संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष अरविंद वैद्य, महासचिव शैलेंद्र गाडसे, सतीश नायक आदि मान्यवर उपस्थित रहे।

सरसंघचालक ने कहा कि हमारी आर्थिक दृष्टि का लक्ष्य सभी की खुशी है। उसके लिए भौतिक इच्छाओं की संतुष्टि और सभी के सुख के परमलक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमारे भीतर संतुष्टि प्राप्त करने के लिए बल की आवश्यकता होती है, और बल अर्थ साधनों से आता है। स्व-निर्भर बनते हुए हमारा ध्यान उत्पादन की उत्कृष्टता पर होना चाहिए। छोटे और बड़े उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए, जो हमारे देश में उत्पादित नहीं होता, जो अति आवश्यक है, वही हमें आयात करना है और वह भी अपनी शर्तों पर लेना है।

राष्ट्रीय ध्वज के शीर्ष स्थान का केसरिया रंग त्याग, कर्म, प्रकाश की दिशा में ले जाने की प्रेरणा देता है। यही हमारा लक्ष्य है। हम दुनिया में ऐसी ही मानवता चाहते हैं। मनुष्य का जीवन ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’ इस प्रकार परमलक्ष्य की ओर ले जाने वाली यात्रा का वर्णन है। इसी तरह चलने वाली निरंतर यात्रा है। हमें ऐसा समाज बनाना है, हमें पूरी दुनिया को ऐसा बनाना है। इसीलिए हमें भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। ऐसा करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमारा उद्देश्य जितना पवित्र और शुद्ध है, उतना ही उसके लिए किये जाने वाले हमारे प्रयास, हमारी वृत्ति उतनी ही शुद्ध और निर्मल हो, इसका प्रतीक सफेद रंग है।

यह सब करने के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता है, जिस वैभव संपन्नता की आवश्यकता है, सामर्थ्य की आवश्यकता है, जिस समृद्धि की आवश्यकता है, हमें उसके लिए प्रयास करने हैं। हम श्रीसूक्त जानते हैं, इसमें प्रकृति के घटकों का वर्णन है। मनुष्य अपने मन, शील के वैभव के साथ साथ जीवन में अंतिम लक्ष्य प्राप्त करता है। उस समृद्धि का रंग मतलब हरा रंग है। हम जो कुछ करने जा रहे हैं, उसका अधिष्ठान मतलब हमारे तिरंगा का धर्मचक्र है। जो सभी को सुख देता हो, सुखी जीवन व्यतीत करता हो, चराचर सृष्टि की धारणा, जिसे हम धर्म कहते हैं, हमारा प्रयास ऐसा ही धर्म-केंद्रित होना चाहिए।

मनुष्य जीवन में सुख प्राप्ति के लिए जीता है। जितने खुश उतना आनंद। लेकिन आनंद मतलब केवल भौतिक सुख नहीं है, बल्कि सुख हमारे भीतर है। सुख-दुख हमारी चित्त वृत्ति पर निर्भर करते हैं। मन की संतुष्टि बहुत जरूरी है और सब कुछ इसी पर निर्भर करता है। एक अकेला आदमी खुश नहीं हो सकता। एक व्यक्ति तब तक सुखी नहीं रह सकता, जब तक कि अन्य सभी सुखी न हों। अपने साथ सबको खुश रखना हमारा धर्म है। सबकी खुशी हमारी धारणा होनी चाहिए। संसार में सुख का सन्तुलन होना चाहिए। समृद्धि की प्राप्ति की यही हमारी दृष्टि है। सबका उत्थान करना हमारा धर्म है। हमें इसके लिए संयम से चलना होगा।

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