यदि आप एंटीबायटिक लेने जा रहे हैं तो जरा रुकिये

यदि आप बिना चिकित्सक की सलाह के एंटीबायटिक ले रहे हैं या आराम मिलते ही दवा लेना छोड़ देते हैं, कोर्स पूरा नहीं करते तो सावधान हो जाइए। ऐसा करना आपके लिए हानिकारक हो सकता है। आगे चलकर ये दवाएं आपके शरीर पर बेअसर हो सकती हैं। दुनियाभर में दवाओं के बेअसर होने का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक यह एक करोड़ सालाना के पार जा सकता है। इससे दुनिया की जीडीपी को 100 लाख करोड़ का नुकसान होने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इस विषय पर चिंता व्यक्त की है।

एंटीबायटिक दवाएं बैक्टीरिया जनित संक्रमण में कारगर होती हैं। ये वायरस, फंगस अथवा दूसरे सूक्ष्म जीवों द्वारा होने वाली बीमारियों पर असर नहीं करतीं। जब हम इनकी उचित व नियमित खुराक नहीं लेते हैं तो बैक्टीरिया धीरे-धीरे इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। एक बार तो बीमारी में आराम लगता है परंतु थोड़े समय बाद ही संक्रमण बढ़ जाता है। इस बार पहले लिए हुए एंटीबायटिक पूरी तरह असर नहीं करते। बैक्टीरिया में यह प्रतिरोधक क्षमता उनके क्रमिक विकास अथवा म्यूटेशन के कारण विकसित हो जाती है। ऐसे बैक्टीरिया को सुपरबग कहते हैं। एम.आर.एस.ए. स्ट्रेन व एन.डी.एम.-1 स्ट्रेन बैक्टीरिया इसके उदाहरण हैं।

आज सुपर बग फार्मा इंडस्ट्री व चिकित्सकों के लिए एक चुनौती है। भारत में हर वर्ष 58000 से ज्यादा बच्चों की मौत बैक्टीरिया जनित संक्रमण से हो जाती है। जिनमें नवजात बच्चों की संख्या अधिक है। छोटे बच्चों, बूढ़ों व अधिक समय से बीमार लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है ऐसे में यदि एक बार सुपर बग का संक्रमण हो जाए तो इलाज मुश्किल हो जाता है। कई सुपर बग मल्टी ड्रग रजिस्टेंट होते हैं। इनका इलाज और भी कठिन होता है।

यूरीनरी ट्रैक्ट का संक्रमण, क्लैमाइडिया, गोनोरिया, सिफलिस, टी.बी. आदि बीमारियों का इलाज केवल एंटीबायटिक दवाओं द्वारा ही संभव है। इन बीमारियों के कारक कई बैक्टीरिया, उपलब्ध एंटीबायटिक दवाओं के लिए पहले ही प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके हैं।

एन.डी.एम.-1 स्ट्रेन बैक्टीरिया का पता सबसे पहले भारत में चला। यह पानी में पाया जाता है खासतौर पर नाला बन गई नदियों में। यहां से अब यह विश्व के लगभग 70 देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। इसी पानी से जब सब्जियों की सिंचाई होती है तो सब्जियां भी संक्रमित हो जाती हैं। ऐसी संक्रमित सब्जियां खाने से व संक्रमित पानी पीने से हम बीमार हो जाते हैं। पशु भी अप्रभावित नहीं रहते।

एन.डी.एम.-1 स्ट्रेन बैक्टीरिया के अंदर एन.डी.एम.-1 जीन पाया जाता है जो कि कार्बापैनिमेज एंजाइम उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार होता है। यह एंजाइम लगभग हर तरह के एंटीबायटिक को बेअसर करने की क्षमता रखता है। यहां तक कि सबसे शक्तिशाली एंटीबायटिक कार्बापेनम को भी।

एम.आर.एस.ए हमारी त्वचा व नाक में पाया जाता है। मुहासे/एक्ने इसी कारण होते हैं।

आज आवश्यकता है हमें जागरूक होने की। इलाज में लापरवाही ना करने की। फार्मा कंपनियों को जरूरत है नयी एंटीबायटिक दवाइयां विकसित करने की। ताकि हम सब मिलकर शक्तिशाली सुपर बग का मुकाबला कर सकें।

डाॅ.शुचि चौहान
जयपुर

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