यह प्रशासनिक ढांचे को सही दिशा देने का समय (विशेष आलेख)
– संदीप महरिया
भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था का बहुत सा हिस्सा अभी तक ब्रिटिशकालीन प्रशासन व्यवस्था से प्रभावित है। प्रशासनिक सुधार की अनेक रिपोर्ट अभी तक फाइलों में दबी हैं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत में भारत की परिस्थतियों के अनुसार प्रशासनिक ढांचा खड़ा हो। भारतीय प्रशासनिक सेवा देश की सबसे महत्वपूर्ण सेवा है, जो देश की रीढ़ भी है। लेकिन पदनाम से लेकर उनके प्रोटोकॉल तक अभी ब्रिटिशकालीन बने हुए हैं। क्या इन्हें भारतीय समाज के अनुसार बदलने का समय नहीं आ गया है?
भारतीय प्रशासन को इस महामारी के काल में प्रभावशीलता को परखने का एक बेहतर मौका प्राप्त हुआ है। लेकिन विदेशी संस्कृति के द्वारा स्थापित संस्थानों में प्रशिक्षित भारतीय प्रशासनिक तंत्र द्वारा कुछ स्थानों पर तो यह बेहतर ढंग से प्रभावित कर रहा है लेकिन कुछ अन्य स्थानों पर उसी संस्थान से प्रशिक्षित प्रशासक द्वारा यह अप्रभावी प्रतीत हो रहा है। विचार करने की बात यह है कि क्या वजह रही कि एक ही संस्थान से समान प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित समान पद के व्यक्तियों ने अपनी प्रभावशीलता में अंतर प्रदर्शित किया है।
तो इसमें सामान्यतः यह प्रतीत होता है कि व्यक्ति के अंदर अवस्थित प्रकृति द्वारा प्रदत्त नैसर्गिक गुणधर्म और उसके परिवार द्वारा प्रदत्त मूल्य इस मामले में एक प्रभावी भूमिका अदा करते हैं जो एक संस्थान द्वारा दिए गए प्रशिक्षण से अधिक प्रभावी प्रतीत हो रहे हैं। भारतीय जनमानस 130 करोड़ लोगों का देश है। विशाल जनसंख्या वाले देश को नियंत्रण के लिए हमें अपने प्रशासनिक तंत्र के प्रशिक्षण में भी अपेक्षित सुधार की आवश्यकता है। उपनिवेश काल में अंग्रेजों द्वारा स्थापित मानकों को मानने वाले प्रशिक्षण तंत्र से जो अफसरशाही प्रशिक्षित हो रही है वह अपने आप में भारतीय संस्कृति और धर्म को अपनाने के स्थान पर विदेशी मूल्यों की संस्थापक अधिक प्रतीत हो रही है। उन विदेशी मूल्यों द्वारा प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा महान लक्ष्यों की प्राप्ति की सफलता की संभावना भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों से सीखे हुए व्यक्तियों से हर अनुपात में कम ही रहेगी।
इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि भारतीय प्रशासनिक तंत्र योग्य नहीं है लेकिन जब अब राष्ट्र निर्माण के लिए, आत्मनिर्भर होने के लिए, सांस्कृतिक गौरव फिर से प्राप्त करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान प्रशासन तंत्र में सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति के सांस्कृतिक मूल्यों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित अवश्य होगा।
प्रशासनिक तंत्र को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों से प्रशिक्षित करने के साथ-साथ आवश्यकता है परीक्षा के द्वारा विद्यार्थियों के मूल्यांकन में भी भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अधिकतम महत्व दिया जाए तथा मूल्यांकन के लिए गठित बोर्ड भी सांस्कृतिक मूल्यों की परख के लिए उचित रूप से योग्य और प्रशिक्षित हो। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप आज प्रशासनिक प्रशिक्षण में भारतीय मूल्यों के अधिकतम समावेश की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए चयनकर्ताओं के सांस्कृतिक मूल्य को भी अब जांचने की आवश्यकता है ताकि भारतीय संस्कृति के मूल्यों से परिपूर्ण परीक्षार्थी भारतीय सेवाओं में सेवा के दौरान भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना में समाज का सहयोग कर सकें।