योगी अरविन्दो घोष की पुण्यतिथि पर हुआ परिचर्चा का आयोजन

योगी अरविन्दो घोष की पुण्यतिथि पर हुआ परिचर्चा का आयोजन

पुण्यतिथि/ 5 दिसंबर

योगी अरविन्दो घोष की पुण्यतिथि पर हुआ परिचर्चा का आयोजनयोगी अरविन्दो घोष की पुण्यतिथि पर हुआ परिचर्चा का आयोजन

अरविन्दो घोष ने युवावस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, बाद में वे एक योगी बन गये और पांडिचेरी में एक आश्रम की स्थापना की। वेद, उपनिषद ग्रन्थों आदि पर टीका लिखी। योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ लिखे।

मनसंचार ग्रुप मानसरोवर द्वारा श्री अरविन्दो की 150वीं जयंती वर्ष में उनकी पुण्य स्मृति में ऑनलाइन परिचर्चा रखी गई। इस परिचर्चा में श्री अरविंदो सोसायटी से जुड़े व MNIT में प्रोफेसर डॉ. निरूपम रोहतगी को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया गया। चर्चा में सहभागिता कर रहे सदस्यों ने उनसे श्री अरविन्द के क्रांतिकारी जीवन, योग अखंड भारत, आध्यात्मिक साधना सम्बन्धित प्रश्न पूछे। जिसके उत्तर में उन्होंने बताया कि श्री अरविंद ने आध्यात्मिकता के मार्ग से ही देश को स्वाधीन कराने हेतु क्रांति की थी। वे देश हित के लिए ही साधना कर रहे थे। उन्होंने बताया कि वे अखंड भारत को अपनी दिव्य दृष्टि से देख रहे थे। उनकी दृढ़ आस्था थी कि भारत का अखंडित स्वरूप ही विश्व में मान्यता प्राप्त करेगा।

मॉडरेटर गायत्री ने प्रस्तावना में अरविन्दो के जीवन का स्मरण करते हुए बताया कि श्री अरविन्दो का जन्म 15 अगस्त 1572 में हुआ था। उनके पिता अंग्रेजी सभ्यता से बहुत प्रभावित थे। अतः उनकी प्रारंभिक शिक्षा कॉन्वेंट स्कूल में हुई। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा को भी पास कर लिया था। बाद में वे बाल गंगाधर तिलक की प्रेरणा से कलकत्ता से “वंदे मातरम” पत्रिका का संपादन करने लगे और बंगाल को पुनः खड़ा करने के काम में जुट गए। बंगाल विभाजन के बाद 1908 में अलीपुर बम कांड में अरविन्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में एक वर्ष की साधना के बाद श्री कृष्ण की प्रेरणा से दिव्य दृष्टि से उन्होंने भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म, गीता, वेद, उपनिषद आदि की पुनर्व्याख्या की। उन्होंने भारत माता को दैवीय रूप में देखा। वे अविभाजित भारत के उपासक थे। उनका कहना था कि विभाजन से भारत कमजोर हो जायेगा, सदा गृह क्लेश की संभावना रहेगी। उन्होंने युवाओं से कहा कि कर्म करो, जिससे मातृभूमि समृद्ध हो सके, कष्ट झेलो ताकि मातृभूमि आनंदित हो सके। अरविन्दो के अनुसार, भारतवर्ष एवम सनातन धर्म दोनों का उत्थान एक दूसरे में निहित है। उन्होंने भारत के बारे में भविष्यवाणी की, कि भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा और संपूर्ण विश्व का कल्याण करेगा।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *