राजस्थान : छात्र संघ चुनाव ने दिए चेताने वाले संकेत
राजस्थान : छात्र संघ चुनाव ने दिए चेताने वाले संकेत
जयपुर। राजस्थान के छात्र संघ चुनाव के परिणामों ने चेताने वाले संकेत दिए हैं। इस चुनाव के परिणाम बताते हैं कि प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में देश और समाज विरोधी शक्तियां युवाओं के बीच पैठ जमा रही हैं। इसके बारे में तत्काल कुछ नहीं किया गया तो स्थितियां गम्भीर हो सकती हैं। चुनाव के बाद ही एक जो सबसे अधिक चेताने वाला संकेत आया, वो पाली जैसे जिले से आया, जहां मारवाड़ जंक्शन के कॉलेज में एनएसयूआई प्रत्याशी फिजा खान की जीत के बाद निकाली गई रैली में कथित तौर पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए। इसका वीडियो भी वायरल हुआ। इस सम्बन्ध में पुलिस में केस दर्ज हुआ है और मामले की जांच चल रही है। प्रदेश की छात्र राजनीति में आमतौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई (NSUI) का ही दबदबा रहा है और इनमें भी विशेष तौर पर एबीवीपी जिस तरह पूरे प्रदेश में सक्रिय रही है, उसी ने युवाओं के बीच राष्ट्र प्रेम और सामाजिक एकता की भावना को नीचे तक पहुंचाने का काम किया है। लेकिन इस चुनाव में जहां एनएसयूआई का पूरी तरह सफाया हो गया और वह एक भी प्रमुख विश्वविद्यालय में अपना अध्यक्ष नहीं बना पाई, वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रदर्शन ठीकठाक रहा। प्रदेश के दो बडे विश्वविद्यालयों उदयपुर और अजमेर में संगठन का पूरा पैनल जीत कर आया और तीन अन्य स्थानों पर अध्यक्ष निर्वाचित हुए। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस प्रदर्शन को संतोषजनक नहीं माना जा सकता।
दोनों प्रमुख छात्र संगठनों के बीच वामपंथी छा़त्र संगठन एसएफआई (SFI) का दो विश्वविद्यालयों में जीतना और प्रदेश के जनजातीय जिलों, डूंगरपुर और बांसवाड़ा में भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) जैसी सोच रखने वाले भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा की बड़ी जीत चेतावनी वाले संकेत के रूप में देखी जानी चाहिए, क्योंकि एसएफआई हो या भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा दोनों ही संगठनों के मूल संगठन राष्ट्रवादी और सामाजिक एकता की सोच के विरुद्ध कार्य करते रहे हैं। केरल में हिजाब मामले को तूल देने वाला भी SFI ही था। इसी एसएफआई ने सीकर और जोधपुर में जीत दर्ज की है। सीकर में हालांकि एसएफआई लम्बे समय से सक्रिय है, लेकिन इस बार जिस तरह शेखावटी विश्वविद्यालय और तीन अन्य कॉलेजों में इसके पैनल जीत कर आए हैं, उससे लग रहा है कि यह संगठन युवाओं के बीच पैठ जमाने में सफल हो रहा है। यदि यह क्रम आगे भी जारी रहता है तो यह प्रदेश के सामाजिक ताने बाने के लिए शुभ संकेत नहीं है। एसएफआई के प्रत्याशी ने जोधपुर में भी जीत दर्ज की है, लेकिन वहां इसे एसएफआई की जीत इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि जीता हआ प्रत्याशी मूलतः एनएसयूआई से था। वहां टिकट नहीं मिलने पर एसएफआई में चला गया। ऐसे में यह प्रत्याशी की स्वयं की जीत है, लेकिन इस से एसएफआई जैसे संगठनों की उस रणनीति का अवश्य पता चलता है, जिसके अंतर्गत वो ऐसे सम्भावनाशील व्यक्तियों को अपने साथ मिलाने के लिए अनेक प्रकार के प्रलोभन और लाभ देने के लिए तैयार रहते हैं और उनके माध्यम से अपनी पैठ जमाने और बढ़ाने के प्रयास करते हैं। ऐसे में जोधपुर में एसएफआई की एंट्री को हल्के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।
छात्रसंघ चुनाव का दूसरा चिंताजनक संकेत प्रदेश के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जैसे जनजाति समाज बहुल जिलों से आया है। यहां भारतीय ट्राइबल पार्टी जैसी ही सोच के साथ चलने वाले भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा के प्रत्याशियों ने बड़ी जीत प्राप्त की है। इस संगठन के नाम से ही स्पष्ट है कि यह अलग भील प्रदेश का समर्थन करता दिखता है। वहीं भारतीय ट्राइबल पार्टी ने इस पूरे क्षेत्र में हिन्दू मान्यताओं और जनजाति समाज को हिन्दू समाज से अलग करने के जो जहरीले बीज बोए हैं, वो पूरे प्रदेश ने देखे हैं। ऐसे में ऐसी विचारधारा से जुड़े छात्र संगठन का जीतना यह बता रहा है कि यह विचारधारा अब वहां विस्तार पा रही है, जो आगे जा कर बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है।
इसी चुनाव में तीसरा सबसे खतरनाक संकेत पाली जिले के मारवाड़ जंक्शन से सामने आया। यहां एनएसयूआई प्रत्याशी फिजा खान की जीत के बाद कथित तौर पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए। इसका वीडियो वायरल हो रहा है और पुलिस में केस भी दर्ज हो चुका है, जिसकी जांच चल रही है। यह सारी कार्रवाई अपनी जगह है, लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि यदि ऐसा हुआ है तो आखिर यह किस सोच के कारण हुआ है? सरकार मुस्लिम समुदाय को आगे बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास कर रही है और विशेष रूप से उनके उत्थान के लिए योजनाएं लागू कर रही है, लेकिन इसके बावजूद छात्रसंघ जैसे छोटे चुनाव की जीत के बाद भी पाकिस्तान का गुणगान आखिर किस सोच का परिणाम है, यह देखना बहुत आवश्यक है। युवा शक्ति के बीच इस तरह की सोच का जगह बनाना कतई अच्छे संकेत नहीं कहे जा सकते।
कुल मिला कर देखा जाए तो प्रदेश के छात्र संघ चुनाव परिणाम ने जो संकेत दिए है, उन्हें समाज व संगठनों को एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए। इन शक्तियों का युवा शक्ति के बीच प्रवेश कर जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
यहां संपादक ध्यान दें कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को दक्षिणपंथी संगठन कहकर संकुचित किया जा रहा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद राष्ट्रीय विचार से प्रेरित छात्र संगठन है। कृपया इसे दुरुस्त करें।