राजस्थान में आरएएस का वॉट्सएप मैसेज : एक जहरीली सोच जो तेजी से प्रसारित हो रही है
राजस्थान में आरएएस का वॉट्सएप मैसेज : एक जहरीली सोच जो तेजी से प्रसारित हो रही है
जयपुर। राजस्थान की राज्य सेवा (राजस्थान प्रशासनिक सेवा) से जुड़े जनजाति समाज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिछले दिनों अधिकारियों के एक वॉट्सएप ग्रुप में हिन्दू देवी-देवताओं और ब्राह्मण समाज के लिए जिस तरह की पोस्ट फॉरवर्ड की, वह ना सिर्फ आपत्तिजनक थी, बल्कि उस सोच को प्रतिबिम्बित कर रही थी, जो कुछ वामपंथी और सनातन धर्म विरोधी शक्तियों के प्रभाव के चलते जनजाति समाज में तेजी से प्रसारित हो रही है।
केसरलाल मीणा नाम के इस अधिकारी ने हालांकि विवाद बढ़ता देख ना सिर्फ उस पोस्ट को डिलीट किया, बल्कि इसके लिए क्षमा भी मांगी और एक बार तो मामला रफा-दफा भी हो गया, लेकिन इस पोस्ट में जो कुछ लिखा गया था, वह जनजाति समाज के वॉट्सएप समूहों में ही नहीं बल्कि कई सार्वजनिक कार्यक्रमों और समय-समय पर सामने आने वाले साहित्य में भी नजर आता रहता है।
अधिकारी ने इस पोस्ट में ब्राह्मण समाज पर, तथाकथित तौर पर, ऐसी बातें स्वीकार करने को मजबूर करने का आरोप लगाया जो तार्किक रूप से सम्भव नहीं है। इसके साथ ही हिन्दू देवी-देवताओं के लिए कई तरह की अर्नगल टिप्पणियां भी कीं। उन टिप्पणियों पर हम नहीं जाना चाहते और न ही उन्हें आपको बताना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें बताना एक तरह से उस दूषित और कुत्सित सोच को ही प्रचारित करना होगा जो किसी न किसी प्रकार से समाज- विशेषकर युवाओं के मन में भरी जा रही है।
इसलिए यहां हम सिर्फ ऐसी सोच के जन्म और उसके पनपने के कारणों की बात करेंगे। दरअसल यह सोच उस वामपंथी विचार से प्रभावित है, जो ईश्वर के अस्तित्व को ही नकारती है और सनातन व हिन्दू धर्म के तो सख्त विरुद्ध है। यह सोच जनजातीय समाज के बीच इस बात को प्रचारित कर रही है कि जनजातीय समाज प्रकृति पूजक है और प्रकृति ही उनके लिए देवी-देवता है। उनका धर्म भी प्रकृति पूजन ही है।
अब यहॉं तक कहना तो ठीक है कि जनजाति समाज प्रकृति पूजक है। लेकिन इसके आगे जो कुछ भी प्रचारित किया जा रहा है, वह हिन्दू सनातन धर्म के विरुद्ध दुष्प्रचार का हिस्सा है और बहुत व्यवस्थित ढंग से इसे अंजाम दिया जा रहा है। इसके लिए साहित्य वितरण से लेकर सोशल मीडिया तक का सहारा लिया जा रहा है और यह पूरी तरह से वामपंथी सोच की उपज है जो तर्क के नाम पर सनातन हिन्दू धर्म को नकारती है और उसे अंधविश्वास करार देती है। हम सब जानते हैं, प्रकृति पूजन (तुलसी पूजन, वट पूजन, सूर्य को अर्घ्य आदि) हिन्दू सनातन धर्म का अभिन्न अंग है। लेकिन हिन्दू सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए हिन्दू समाज के टुकड़े करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसी षड्यंत्र के अंतर्गत जनजाति समाज को हिन्दू धर्म से अलग बताते हुए उनके लिए अलग धर्म कोड की भी मांग की जा रही है। बहुत दुख की बात है कि इस सोच को प्रचारित करने के लिए कुछ संगठन बहुत निचले स्तर तक काम कर रहे हैं और राजनीति में भी प्रवेश कर चुके हैं। ये संगठन जल-जंगल-जमीन पर जनजाति समाज के अधिकार की बात करते हुए हिन्दू समाज में विखंडन के विष बीज बो रहे हैं। इसके लिए वे ब्राह्मण समाज को खलनायक बनाते हैं, हिन्दू धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं का उपहास करते हैं। यह सब काम तर्क के नाम पर किया जाता है, लेकिन हिन्दू धर्म के धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं से जुडे विज्ञान को जानबूझ कर उजागर नहीं किया जाता।
राजस्थान के जनजातीय जिलों प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर के कुछ हिस्सों में ऐसे संगठन काफी सक्रिय हैं। इसके साथ ही राज्य के पूर्वी हिस्से- दौसा, करौली, सवाई माधोपुर आदि में जनजातीय समाज काफी पढ़-लिख गया है सरकारी नौकरियों में इनकी बहुतायत है। देश में आरक्षण सम्बन्धी मुहिम को जनजातीय समाज के इसी पढ़े-लिखे तबके ने सम्भाल रखा है, लेकिन अब समाज के इस तबके के भी कुछ लोग इस वापमंथी सोच की चपेट में आ गए हैं और स्वयं को हिन्दू धर्म से अलग दिखाने के लिए इस तरह के दुष्प्रचार का हिस्सा बन रहे हैं।
इस सोच का ही परिणाम था कि विधानसभा में कुछ समय पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी और कांग्रेस के कुछ विधायक यह कहते सुने गए थे कि हम हिन्दू नहीं हैं।
इसी सोच का परिणाम कुछ समय पहले जयपुर में गलता पीठ पर जनजाति समाज के कुछ नेताओं, जिनमें सरकार को समर्थन दे रहे एक विधायक भी शामिल थे, द्वारा भगवा ध्वज को उतारने और फाड़ने की घटना के रूप में सामने आया था।
….और अब यही सोच एक मैसेज के रूप में वॉट्सएप समूहों में फॉरवर्ड हो रही है। अधिकारी ने इसे डिलीट भले ही कर दिया हो, लेकिन यह कहीं ना कहीं से तो आया ही था और जहां से आया था, उस उद्गम पर नजर रखने की आवश्यकता है।
भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र मीणा कहते हैं, “यह सही है कि कुछ ऐसी शक्तियां जनजाति समाज में सक्रिय हैं, जो हमें हिन्दू धर्म से अलग करने का षड्यंत्र कर रही हैं, इनमें से अधिकांश वामपंथी सोच से प्रभावित हैं और जनजाति समाज के अधिकारों के नाम पर उसे भ्रमित करने का काम कर रही हैं। जनजाति समाज को इनसे सचेत रहने की आवश्यकता है।”
इस मामले में सबसे खतरनाक बात यह है कि ऐसी शक्तियां राजनीति में प्रवेश कर गई हैं और विधानसभाओं और संसद में पहुंच रही हैं। इस सोच का राजनीतिक रूप से ताकतवर होना किसी भी रूप में अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि इस सोच का नीति नियंता बनना समाज के बड़े विघटन का कारण बन सकता है।