राजस्थान में महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार आखिर कब बंद होंगे?
27 जून 2020
राजस्थान में नाबालिगों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाएं
कुमार नारद
महिलाओं की सुरक्षा के लिए सियासत को माथे पर उठाने वाले, राजस्थान में नाबालिग बालिकाओं के साथ एक के बाद एक हो रही दुष्कर्म की शर्मनाक घटनाओं पर चुप हैं। यहां तक कि उनका सोशल मीडिया भी चुप है।
राजस्थान में महिला दुष्कर्म की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रहीं। थाने में एफआईआर लिखवाना भी आसान नहीं। बहन-बेटियों की इज्जत और आबरू की सुरक्षा आपकी अपनी जिम्मेदारी है। जब मामला विशेष प्रकार के सांप्रदायिक रंग वाला हो, तब तो सुनवायी और भी मुश्किल हो जाती है। यदि आपकी बेटी या बहन का बलात्कार हुआ है और करने वाले विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय से हैं तो पुलिस आपके पास आकर पहले आपको समझाएगी। आप पर राजीनामा करने का दबाव बनाएगी। फिर भी आप नहीं माने, तो आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए आपको पुलिस को कुछ दिन की मोहलत देनी होगी। फिर मोहलत के दिनों में विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय के बलात्कारी आप पर दबाव बनाएंगे और अगर आपने राजीनामा नहीं किया तो आपके लिए किसी न किसी पेड़ की डाली तैयार है।
पड़ताल ताजा मामले से शुरू करते हैं। अलवर जिले का रामगढ़ थाना क्षेत्र। जानकारी के अनुसार रामगढ़ कस्बे में हिंदू परिवार की एक बारहवीं क्लास में पढ़ने वाली नाबालिग बालिका से बालौत नगर निवासी अनीश खान ने दुष्कर्म करने का प्रयास किया। उसकी छेड़छाड़ की हरकतों से परेशान होकर किशोरी ने अपनी बारहवीं की पढ़ाई छोड़ दी और कुएं में कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। इसके बाद पीड़िता ने रामगढ़ थाने में अनीश, तौफीक और अंजुम के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाई थी। लेकिन जैसा कि कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर लेने से प्रशासन को दंगा भड़कने की संभावना रहती है, पूर्वाग्रहवश पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। हां, पुलिस ने आरोपित तीन मुस्लिम युवकों को शांतिभंग के आरोप में जरूर पकड़ा। बाद में जब मामला मीडिया में उछल गया तब पुलिस ने मजबूरी में बीस जून की रात को मामला दर्ज कर मुख्य आरोपी अनीश खान को पोक्सो एक्ट में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन फिर उसका साथ देने वाले अन्य दो आरोपितों तौफीक और अंजुम को बचाने में जुट गई।
पीड़िता के भाई का कहना है कि आरोपित युवक अनीश के परिवार के लोग प्रलोभन और धमकी देकर राजीनामे के लिए दबाव बना रहे हैं और पुलिस भी बदनामी की बात कहकर राजीनामा करने का दबाव बना रही है। स्थानीय भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा कहते हैं कि इस मामले में पीड़ित परिवार पर राजनैतिक दबाव बनाया जा रहा है। वे आरोप लगाते हैं कि इसमें कांग्रेस के दो नेता भी शामिल हैं। और इस घटना का सबसे दुखद पहलू, कुछ दिनों बाद ही पीड़िता के पिता का घर से पांच सौ मीटर की दूरी पर पेड़ से लटका हुआ शव मिला।
इससे पहले मई महीने में टोंक जिले के पचेवर थाना क्षेत्र के बाछेड़ा गांव में एक नाबालिग बालिका के साथ मुस्लिम समुदाय के चार युवकों नासिर खान, सलमान, जाकिर और एक नाबालिग ने सामूहिक दुष्कर्म किया। दुष्कर्म के बाद उस पर धारदार हथियारों से हमलाकर उसे मरणासन्न हालात में छोड़कर भाग गए। इस मामले में जनप्रतिनिधियों के सामने आने पर पुलिस ने मामला दर्ज किया। लेकिन एक सरकारी महिला चिकित्सक ने पीड़िता के परिजनों पर कोर्ट से बाहर ही मामला ‘सैटल’ करने का दबाव बनाया और पीड़िता को अपमानजनक भाषा में संबोधित किया। यह पुलिस और प्रशासन का पीड़िताओं के साथ कैसा रवैया है?
मई महीने में ही अलवर के भिवाड़ी के यूआईटी फेज थर्ड थाना क्षेत्र के आलमपुर गांव में एक नवीं क्लास की छात्रा को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म करने और वीडियो बनाने के बाद उसके सिर को दीवार से मारकर उसे घायल करने का मामला सामने आया था। प्रवासी परिवार की पीड़िता के साथ हुई घटना की रिपोर्ट पुलिस ने दो दिन बाद दर्ज की। पीड़िता को अस्पताल में भर्ती करने के बाद पुलिस ने इस मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। पीड़िता के पिता के अनुसार उसमें 11 मई को यूआईटी फेज थर्ड थाने जाकर घटना के बारे में जानकारी दी, लेकिन यहां से पुलिस ने उसे महिला थाने भेज दिया। महिला थाने का चक्कर लगाने के बाद 13 मई को उसकी रिपोर्ट दर्ज की गई। महिला अधिकारों पर आवाज बुलंद करने वाली सरकार में पुलिस संवेदनशीलता की यह पराकाष्ठा है।
अलवर के ही थानागाजी में क्षेत्र में 2019 के अप्रैल महीने में दलित महिला के साथ बहुचर्चित सामूहिक दुष्कर्म का मामला तो पुलिस ने लोकसभा के दूसरे चरण के चुनाव संपन्न होने तक रोके रखा गया था, ताकि राजनैतिक आकाओं को किसी भी तरह का राजनैतिक नुकसान नहीं पहुंच सके। चुरू के सरदारशहर पुलिस थाने ने तो राज्य के पुलिस और प्रशासन को गहरे कलंक में डुबो दिया था। एक अनुसूचित वर्ग की महिला ने थाने के पुलिस कर्मियों पर बलात्कार और बुरी तरह प्रताड़ित करने का संगीन आरोप लगाया। इसी तरह राजधानी जयपुर के वैशाली नगर थाने में एक दुष्कर्म पीड़िता ने पुलिस की नाकामी से तंग आकर खुद को आग के हवाले कर दिया था।
उत्तरप्रदेश में दुष्कर्म की घटनाओं पर पूरी सियासत को सिर पर उठाने वाली उभरती महिला नेत्री को राजस्थान में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली दुष्कर्म की घटनाओं पर मानों सांप सूंघ जाता है। महिलाओं के विरुद्ध इन अमानवीय घटनाओं पर आंदोलन या सरकार को फटकार तो दूर, उनका एक पिद्दी सा ट्विट भी नजर नहीं आता है। यह दोहरा रवैया क्या कहलाता है?
राज्य में महिलाओं के विरुद्ध यौन शोषण के मामलों की बात हो या फिर कानून व्यवस्था की, सरकार, पुलिस और प्रशासन बुरी तरह फेल नजर आते हैं। एक समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में महिलाओं के विरुद्ध दुष्कर्मों के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2019 में महिलाओं के विरुद्ध यौन शोषण के मामलों में 81.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2018 की तुलना में राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध पचास प्रतिशत तक बढ़े हैं। वर्ष 2019 में राजस्थान में दुष्कर्म के मामले 5997 दर्ज किए गए। क्या सरकार महिला सुरक्षा को लेकर अपने पुलिस बल को राजनैतिक मानसिकता से मुक्त करवा पाएगी?