राजस्थान सेवा संघ में सत्यभक्त का योगदान

कुशलपाल सिंह

भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सहस्त्रों वीरों ने भाग लिया। इनमें कुछ लोग मुख्य थे तो बहुत सारे लोग नेपथ्य में रह कर इस यज्ञ में अपनी आहुति प्रदान करते रहे। सत्यभक्त (चक्कखन लाल जैन) ऐसे ही स्वतन्त्रता आंदोलन के अर्कीतित सिपाही थे। सत्यभक्त का जन्म भरतपुर जिले में हुआ था। इनका मुख्य कार्यक्षेत्र कानपुर व इलाहाबाद था। लेखन कार्य व क्रान्तिकारियों के विचारों के प्रति झुकाव होने के कारण ये ज्यादा समय वहीं सक्रिय रहे।

उन्होंने 1920 में देशव्यापी असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। 1922 में अचानक से इस आन्दोलन को समाप्त घोषित कर दिये जाने पर सत्यभक्त ने पुनः लेखन कार्य शुरू कर दिया। सत्यभक्त ने इलाहाबाद से ‘‘देशी राज्य और संयुक्त भारत‘‘ नामक एक लेख लिखा, जिसकी काफी चर्चा सुधीजन समाज में हुई। इस लेख को विजय सिंह पथिक ने भी पढ़ा , और पत्र के द्वारा सत्यभक्त से सम्पर्क किया। पत्राचार के माध्यम से पथिक ने सत्यभक्त के साथ मिलकर कार्य करने का प्रस्ताव दिया जिसको सत्यभक्त ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

मेवाड़ रियासत के बिजौलिया आन्दोलन का प्रभाव अन्य रियासती राज्यों पर भी पड़ा। 1921 में भील समाज ने सिरोही रियासत के अनुचित आदेशों का विरोध करना शुरू कर दिया। भीलों में जागृति का कार्य मोतीलाल तेजावत द्वारा किया जा रहा था। भील समाज के आंदोलन को राज्य पुलिस ने कठोरता से दबा दिया। माणिक्य लाल वर्मा इस क्षेत्र में पहले से ही सक्रिय थे। कठोर दमन की घटना का पता जब राजस्थान सेवा संघ को लगा तो पथिक ने सत्यभक्त व रामनारायण चौधरी को वहाँ की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का दायित्व सौंपा। घटना की वास्तविकता की जाँच हेतु सत्यभक्त दो बार सिरोही गये। पुलिस व जासूसों के कारण वहाँ तक पहुँचना बढ़ा दुष्कर कार्य था। सिर्फ रात्रि में ही नजर बचाकर जाना सम्भव हो पाता था, पर भील समाज के सहयोग से यह कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

एक बार सिरोही से वापस आते समय सत्यभक्त को सिरोही रोड स्टेशन पर पुलिस ने रेल से उतार कर हवालात में बन्द कर दिया, परन्तु राज्य दीवान रमाकान्त मालवीय के आदेश पर सत्यभक्त को मुक्त कर दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार 640 मकान, अन्न भण्डार, कृषि उपकरण तथा 325 परिवारों को तहस-नहस कर दिया गया। लन्दन की महिला सेविका ऐनी हड़सन की सहायता से ब्रिटिश संसद में इस घटना के सन्दर्भ में प्रश्न पूछे गये। इस कार्य में पैट्रिक लॉरेन्स का सहयोग भी प्राप्त हुआ।

बूँदी रियासत ने 1922 में आधुनिकीकरण के नाम पर विकास कार्यों के लिए किसानों पर कर बढ़ा दिये। पथिक के प्रयासों से किसानों ने इन अतिरिक्त करों को देने से मना कर दिया। इस जन आंदोलन में सामान्य किसानों के साथ शिक्षित लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। आंदोलन को और गति प्रदान करने के लिए जनता ने राजस्थान सेवा संघ से सम्पर्क किया। राज्य सरकार ने आंदोलन को समाप्त करने के लिए क्रूर दमन चक्र चलाया। ‘‘नवीन राजस्थान‘‘ नामक समाचार-पत्र में आंदोलन से सम्बन्धित घटनाओं का लगातार प्रकाशन हो रहा था। आन्दोलन के उग्र होने पर पुलिस ने पुरुष व महिलाओं पर अमानविक अत्याचार किये, जिनमें दो महिलाओं की मृत्यु हो गई।

इस प्रकार क्रूर घटनाओं की सूचना मिलने पर राजस्थान सेवा संघ ने पुनः सत्यभक्त व रामनारायण चौधरी को घटना की जाँच करने के लिए भेजा। दोनों प्रतिनिधियों ने पीड़ित लोगों से बात की, उनके बयान लिए, इनमें 14 महिलाएँ भी शामिल थीं। इस प्रकार राजस्थान सेवा संघ के नेतृत्व में राजस्थान में जागृति आई और लोगों ने संघर्ष किया। लगातार रिपोर्टों के प्रकाशन के कारण प्रजा की शिकायतें भी दूर हुईं और ब्रिटेन में भी इन आन्दोलनों की गूँज सुनाई दी।

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