राजस्थान : हिन्दू अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का विरोध भी नहीं कर सकता
राजस्थान : हिन्दू अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का विरोध भी नहीं कर सकता
जयपुर। राजस्थान में मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते आज हालात ऐसे बन गए हैं कि हिन्दू अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का विरोध भी नहीं कर सकता। कार्रवाई उसी पर होनी है। हाल के दिनों में भीलवाड़ा में ऐसा ही कुछ देखने में आ रहा है। मामूली सी बात पर मुस्लिम युवकों ने आदर्श तापड़िया की हत्या कर दी। हिन्दू समाज ने न्याय मांगा और प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान एक युवती कोमल मेहता के भाषण पर उसको गिरफ्तार कर लिया गया। जब इसके विरोध में बंद का आह्वान किया गया तो इस दौरान भी पुलिस व प्रशासन एकतरफा कार्रवाई करता नजर आया। अब ऐेसे में प्रश्न यह है कि ऐसे हालात में स्थितियां सुधरेंगी कैसे?
युवक आदर्श तापड़िया की हत्या के बाद से भीलवाड़ा में तनाव की स्थिति समाप्त नहीं हो रही। जिस भी क्षेत्र में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाते हैं, वह संवेदनशील कहलाने लगता है। वहॉं हिन्दू मुस्लिम तनाव चलता ही रहता है।
भीलवाड़ा में भी जब से कुछ क्षेत्र मुस्लिम बहुल हो गए हैं, वह भी साम्प्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील बन गया है। यहां साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं का एक इतिहास बन गया है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की थी कि आदर्श तापड़िया की हत्या के बाद पुलिस और प्रशासन दोषियों को तुरंत गिरफ्तार कर स्थितियों को सम्भालता, लेकिन इस मामले में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। मजबूर होकर लोगों को धरना देना पड़ा है।
धरने के दौरान पुलिस को कोमल मेहता का तथाकथित उग्र भाषण तो सुनाई दे गया, लेकिन इसी शहर के एक और हिस्से में लगे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारों का वीडियो उसे दिखाई नहीं दे रहा है। लोगों में गुस्सा भी इसी बात का है और यही कारण था कि कोमल मेहता की गिरफ्तारी के विरोध में शहर अपने आप बंद हो गया। संगठनों को इसके लिए पहल नहीं करनी पड़ी। विशेष बात यह कि इस दौरान भी पुलिस जगह-जगह बेवजह सख्ती करती नजर आई और निशाने पर वो कार्यकर्ता ही रहे जो वाजिब मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे और बंद को सफल बनाने में जुटे थे। इस दौरान पुलिस के लोग एक व्यक्ति को घसीटते तक नजर आए।
भीलवाड़ा में पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रम को लेकर लोगों में इतनी नाराजगी है कि पिछले 17 दिनों में यहां तीन बार बंद का आह्वान हो चुका है, जिसे लोगों ने सफल बनाया है। सबसे पहले 11 मई को यहां आदर्श तापड़िया की हत्या के विरोध में बंद हुआ। इसके बाद कोमल मेहता की गिरफ्तारी के समय बंद हुआ और अब शुक्रवार को बंद का आह्वान किया गया और लोगों ने पूरा साथ दिया। स्थिति यह रही कि पुलिस शहर में घोषणा करती रही कि व्यापारी बिना डर के दुकानें खोलें, पुलिस उन्हें पूरा संरक्षण देगी, लेकिन व्यापारियों का कहना था कि जब ग्राहक ही नहीं आएंगे तो दुकान खोल कर क्या करेंगे। इसी तरह कार्यकर्ताओं द्वारा नारे लगाए जाने पर भी पुलिस अधिकारी उलझते नजर आए। बंद के दौरान ऐसे दृश्य कई स्थानों पर देखने को मिले।
ऐसा लग रहा है कि यहां का प्रशासन लोगों की इन भावनाओं को समझने तक को तैयार नहीं है और लगातार इस तरह के काम कर रहा है कि हालात सुधरने के बजाए बिगड़ रहे हैं। हालांकि अब लोगों ने धरना समाप्त करने का निर्णय ले लिया है और अधिकतर मांगों पर सहमति की बात कही जा रही है। लेकिन एक युवती की बिना पूरी जांच-पड़ताल गिरफ्तारी, हत्या के आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई ना होना, बंद के दौरान एक ही पक्ष पर जबर्दस्ती करना जैसे मामले वो हैं जो यहां तनाव की चिंगारी अंदर ही अंदर सुलगा रहे हैं और यहां का प्रशासन इसे बुझाने में विफल साबित हो रहा है। सरकार ने दो पुलिस अधिकारियों को हटाया तो है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि भीलवाड़ा के इतिहास को जानने-समझने वाले अधिकारियों की सहायता ली जाए और लोगों को यह विश्वास दिलाया जाए कि प्रशासन एकतरफा काम नहीं कर रहा है, तब जा कर स्थिति काबू में आएगी। वरना कभी करौली, कभी जोधपुर तो कभी भीलवाड़ा ऐसे ही दोहराए जाते रहेंगे। संविधान और कानून को ठेंगा दिखाने वालों के हौंसले बढ़ते रहेंगे।