रामचरित मानस में जोहार और आज का जोहार !!

रामचरित मानस में जोहार और आज का जोहार !!

हनुमान सिंह राठौड़

रामचरित मानस में जोहार और आज का जोहार !!

जब राम, सीता, लक्ष्मण ने वन गमन किया तब गंगा तट पर उनकी प्रथम भेंट सखा निषादराज ग़ुह से हुई। जब निषादराज ने राम का आगमन सुना तो वे परिजनों सहित उनकी अगवानी कर उन्हें अपने गाँव में लिवाने गए। राम ने नगर प्रवेश को वनवास की आज्ञा का उल्लंघन माना तब उनकी सब व्यवस्था जंगल में ही की गई। संध्या समय शेष पुरवासी (निषादराज के गाँव को पुर कहा है अर्थात् यह कम से कम कस्बा तो था ही जहाँ सब सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं) जोहार करके अपने अपने घर लौटे –

‘पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए।।’

इसके अनुवाद में जोहार का अर्थ वंदना है। अर्थात् पुरवासी राम-सीता की वंदना करके संध्या के समय अपने घर गए।

अगला प्रसंग चित्रकूट का है। महर्षि वाल्मीकि जी के कहने पर राम ने यहाँ कमंदगिरि पर्वत के निकट निवास करने का निश्चय किया। रामजी लगभग बारह वर्ष यहीं रहे। ज्योंही श्रीराम के आगमन की जानकारी वनवासियों को हुई तो क्या हुआ, इसका वर्णन गोस्वामी तुलसी दास जी करते हैं-

‘यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नवनिधि घर आई।।’

श्री राम के आगमन का समाचार जब कोल, भीलों ने पाया तो वे ऐसे हर्षित हुए मानो नौ निधियाँ (पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुंद, नील, वर्च्य नामक कुबेर के नौ खजानों को नव निधियाँ कहते हैं) प्राप्त हो गई हों।

वनवासी पत्तों के दोने बनाकर उनमें कंद, मूल, फल भरकर ऐसे चले जैसे रंक स्वर्ण भण्डार लूटने चले हों और लुटाने वाले रघुवीर हों। सब लोग राम को जोहार करके अपनी लायी हुई भेंट उनके सामने रखकर अत्यन्त अनुराग से श्रीराम को देख रहे हैं। यहाँ भी जोहार का अर्थ राम की अभ्यर्थना ही है-

“करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे।।”

वनवासी कोल-किरात उन्हें बार-बार प्रणाम करते हुए हाथ जोड़कर विनययुक्त वचन कहते हैं-

“प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिं कर जोरी।।”

वनवासी कहते हैं कि हे नाथ! हे प्रभु!! हम आपके चरणों के दर्शन पाकर सनाथ हो गए हैं। हे कोशलराज! हमारे भाग्य से ही आपका यहाँ शुभ आगमन हुआ है –

“अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय। भाग हमारें आगमनु राउर कोसलराय।।”

तुलसी दास जी कहते हैं कि राम केवल प्रेम के प्यासे हैं। जो इस बात को जानना चाहता हो वह (चित्रकूट के भील-कोलों के प्रति राम के व्यवहार से) जान ले-

“रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जाननिहारा।।”

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि चित्रकूट से छत्तीसगढ़ व झारखण्ड तक अभिवादन व वंदन के लिए जोहार शब्द प्रचलित था। इसी प्रकार अन्यत्र अन्य शब्द इस हेतु प्रयुक्त होते थे, होते रहे हैं। राम से पहले ‘राम-राम’ सम्बोधन नहीं था। राम से अतिशय प्रेम व श्रद्धा के कारण उनका नाम ही कालान्तर में अभिवादन का शब्द बन गया। पंथों/सम्प्रदायों के भी अपने अभिवादन के शब्द हैं, जैसे-आदेश, जय जिनेन्द्र, सतश्री अकाल। जय हिंद, वन्दे मातरम् आदि अंग्रेजों के विरुद्ध अभिवादन के उद्घोष बने।

अर्थात् अभिवादन के संबोधन व तरीके से किसी काल में किसी को कोई कष्ट नहीं रहा। कष्ट तब होता है जब किसी कथन, संबोधन या प्रतीक का उपयोग वैमनस्य फैलाने, प्रचलित विश्वास को भंग करने व अलगाव के लिए किया जाता है। जोहार का प्रचलन राजस्थान के जनजाति क्षेत्र में नहीं रहा। यहाँ इसके लिए अभियान सदाशयता से नहीं अलगाववादी नक्सली विचार प्रवाह के प्रस्फुटन, पोषण, संवर्धन के लिए किया जा रहा है, यह खतरा मावजी महाराज के जनजाति भक्तों व धूणी-धामों को लग रहा है। इस विषबेल को अंकुरण से पूर्व ही नष्ट करना आवश्यक है अन्यथा यहाँ भी रक्त से सना नक्सली लाल गलियारा बनने में देर नहीं लगेगी। षड्यंत्र की दुर्गन्ध आने लगी है……..।

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