राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक विवेकानन्द स्मृति केन्द्र
सुदूर दक्षिण में कन्याकुमारी के पास, जहाँ सागर की उत्ताल तरंगे भारत माता के चरणों को पखारती हैं, वहाँ एक विशालकाय चट्टान पर ब्रिटिश शासन के दौरान एक क्रॉस लगाया गया था। इसे ईसाई मिशनरियों ने इसलिए टांगा था ताकि सामने दिखाई दे कि भारत पर ईसाईयों का राज है। इसके सामने कन्याकुमारी नाम का हिन्दू मन्दिर है। यहीं से भारत की सीमा प्रारम्भ होती है।
इस चट्टान के जिस स्थान पर यह क्रॉस वाला स्तम्भ लगाया गया था, इसी स्थान पर बैठ कर स्वामी विवेकानन्द ने भारत की ओर देख कर अत्मविभोर होते हुए देश की स्वतंत्रता की कल्पना की थी। अतः स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी इस स्थान पर परतंत्रता के प्रतीक क्रॉस को लगे रहने देने का कोई अर्थ नहीं था। सन 1963 में एक भारतीय मनीषी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भूतपूर्व सरकार्यवाह श्री एकनाथ रानाडे के प्रयासों से एक विवेकानन्द रॉक मेमोरियल समिति बनी।उन्होंने अपने अथक प्रयास से सारे देश से धन एकत्र कर के एक अतिसुन्दर और विशाल मंदिर बनवाया। उसे आज विवेकानंद स्मृति केन्द्र के नाम से जाना जाता है।
इस केन्द्र के निर्माण में प्रत्येक भारतीय से एक एक रुपया लेकर इसके निर्माणकर्ताओं ने इस कार्य के साथ राष्ट्र के समस्त जीवन को जोड़ने का अद्भुत कार्य किया। इसमें सभी प्रदेशों की सरकारों ने भी सहयोग दिया। इसका निर्माण हो जाने पर इसमें स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरी ने किया।