राष्ट्र के उत्थान में हर व्यक्ति, हर समाज का योगदान महत्वपूर्ण- प्रो. बीपी शर्मा

राष्ट्र के उत्थान में हर व्यक्ति, हर समाज का योगदान महत्वपूर्ण- प्रो. बीपी शर्मा

राष्ट्र के उत्थान में हर व्यक्ति, हर समाज का योगदान महत्वपूर्ण- प्रो. बीपी शर्माराष्ट्र के उत्थान में हर व्यक्ति, हर समाज का योगदान महत्वपूर्ण- प्रो. बीपी शर्मा

उदयपुर, 17 मार्च। समालखा में सम्पन्न हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में पारित प्रस्ताव पर गुरुवार को उदयपुर के सेक्टर-4 स्थित विश्व संवाद केन्द्र में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक प्रो. बीपी शर्मा व संघ के विभाग संघचालक हेमेन्द्र श्रीमाली ने पत्रकारों से वार्ता की। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के उत्थान में हर व्यक्ति, हर समाज का योगदान महत्वपूर्ण है। सर्वसमाज परस्पर साथ चलकर ही राष्ट्र को सशक्त बना सकते हैं। साथ ही, समाज में ‘स्व’ के भाव के जागरण की भी आवश्यकता व्यक्त की गई।

उन्होंने कहा कि संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह अभिमत है कि विश्व कल्याण के उदात्त लक्ष्य को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए भारत के ‘स्व’ की सुदीर्घ यात्रा सदैव प्रेरणास्रोत रही है। विदेशी आक्रमणों तथा संघर्ष के काल में भारतीय जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ तथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक व्यवस्थाओं को गहरी चोट पहुंची। इस कालखंड में संतों व महापुरुषों के नेतृत्व में संपूर्ण समाज ने सतत संघर्षरत रहते हुए ‘स्व’ को बचाए रखा। इस संग्राम की प्रेरणा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ‘स्व’ त्रयी में निहित थी, जिसमें समस्त समाज की सहभागिता रही। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर सम्पूर्ण राष्ट्र ने इस संघर्ष में योगदान देने वाले जननायकों, स्वतंत्रता सेनानियों तथा मनीषियों का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण किया है। आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभर रही है। भारत के सनातन मूल्यों के आधार पर होने वाले नवोत्थान को विश्व स्वीकार कर रहा है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा के आधार पर विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और मानव कल्याण के लिए भारत अपनी भूमिका निभाने के लिए अग्रसर है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मत है कि सुसंगठित, विजयशाली व समृद्ध राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, सर्वांगीण विकास के अवसर, तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग एवं पर्यावरणपूरक विकास सहित आधुनिकीकरण की भारतीय संकल्पना के आधार पर नए प्रतिमान खड़े करने जैसी चुनौतियों से पार पाना होगा। राष्ट्र के नवोत्थान के लिए हमें परिवार संस्था का दृढ़ीकरण, बंधुता पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी भाव के साथ उद्यमिता का विकास आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इस दृष्टि से समाज के सभी घटकों, विशेषकर युवा वर्ग को समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता व्यक्त की गई है। इस परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस पर दिये गए ‘पंच-प्रण’ के आह्वान को भी महत्वपूर्ण कहा गया है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि जहां अनेक देश भारत की ओर सम्मान और सद्भाव रखते हैं, वहीं भारत के ‘स्व’ आधारित इस पुनरुत्थान को विश्व की कुछ शक्तियां स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। हिंदुत्व के विचार का विरोध करने वाली देश के भीतर और बाहर की कई शक्तियां निहित स्वार्थों और भेदों को उभार कर समाज में परस्पर अविश्वास, तंत्र के प्रति अनास्था और अराजकता पैदा करने के लिए नए-नए षड्यंत्र रच रही हैं। प्रतिनिधि सभा का मत है कि इन सबके प्रति जागरूक रहते हुए उनके मंतव्यों को भी विफल करना होगा।

यह अमृतकाल हमें भारत को वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का अवसर प्रदान कर रहा है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रबुद्ध वर्ग सहित सम्पूर्ण समाज का आह्वान करती है कि भारतीय चिंतन के प्रकाश में सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक, न्यायिक संस्थाओं सहित समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में काल सुसंगत रचनाएं विकसित करने के इस कार्य में संपूर्ण शक्ति से सहभागी बने, जिससे भारत विश्वमंच पर एक समर्थ, वैभवशाली और विश्वकल्याणकारी राष्ट्र के रूप में समुचित स्थान प्राप्त कर सके।

प्रो. शर्मा ने बताया कि संघ 2025 में अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण करने वाला है। संघ ने सौ वर्ष पूरे होने तक देश भर में एक लाख स्थानों पर शाखा-मिलन केन्द्र का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में शाखाएं और मिलन केन्द्र एवं संघ मंडली 1 लाख 5 हजार 940 हैं।

उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक संघ के संस्कारों में सर्वोपरि सामाजिक समरसता के कार्यों में समर्पित हैं। उदयपुर के कानोड़ का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां रामरेवाड़ी की शोभायात्राओं को लेकर पूर्व में कुछ सामाजिक दूरियां थीं। संघ के स्वयंसेवकों ने समाज के प्रबुद्धजनों के सहयोग से प्रयास किया और इन दूरियों को दूर किया। आज सभी समाजों की रामरेवाड़ियां साथ-साथ निकलती हैं और अनुसूचित जाति के बंधु-बांधव रामरेवाड़ी के साथ सबसे आगे रहते हैं।

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