नारी जागरण की अग्रदूत लक्ष्मीबाई केलकर
लक्ष्मीबाई केलकर जयंती पर विशेष
नारी जागरण की अग्रदूत लक्ष्मीबाई केलकर
बंगाल विभाजन के विरुद्ध हो रहे आन्दोलन के दिनों में छह जुलाई, 1905 को नागपुर में कमल नामक बालिका का जन्म हुआ। तब किसे पता था कि भविष्य में यह बालिका नारी जागरण के एक महान संगठन का निर्माण करेगी।
कमल के घर में देशभक्ति का वातावरण था। उसकी माँ जब लोकमान्य तिलक का समाचार पत्र ‘केसरी’ पढ़ती थीं, तो कमल भी ध्यान से उसे सुनती थी। केसरी के तेजस्वी विचारों से प्रभावित होकर उसने निश्चय किया कि वह दहेज रहित विवाह करेगी। इस जिद के कारण उसका विवाह 14 वर्ष की अवस्था में वर्धा के एक विधुर वकील पुरुषोत्तमराव केलकर से हुआ, जो दो पुत्रियों के पिता थे। विवाह के बाद उसका नाम लक्ष्मीबाई हो गया।
अगले 12 वर्ष में लक्ष्मीबाई ने छह पुत्रों को जन्म दिया। वे एक आदर्श व जागरूक गृहिणी थीं। मायके से प्राप्त संस्कारों का उन्होंने गृहस्थ जीवन में पूर्णतः पालन किया। उनके घर में स्वदेशी वस्तुएँ ही आती थीं। अपनी कन्याओं के लिए वे घर पर एक शिक्षक बुलाती थीं। वहीं से उनके मन में कन्या शिक्षा की भावना जन्मी और उन्होंने एक बालिका विद्यालय खोल दिया। गांधी जी की प्रेरणा से उन्होंने घर में चरखा मँगाया। एक बार जब गांधी जी ने एक सभा में दान की अपील की, तो लक्ष्मीबाई ने अपनी सोने की जंजीर ही दान कर दी।
1932 में उनके पति का देहान्त हो गया। अब अपने बच्चों के साथ बाल विधवा ननद का दायित्व भी उन पर आ गया। विषम परिस्थितियों में लक्ष्मीबाई केलकर ने घर के दो कमरे किराये पर उठा दिये। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई। इन्हीं दिनों उनके बेटों ने संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आये परिवर्तन से लक्ष्मीबाई के मन में संघ के प्रति आकर्षण जगा और उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से भेंट की और उनकी प्रेरणा से 1936 में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया। समिति के कार्य विस्तार के साथ ही लक्ष्मीबाई केलकर ने नारियों के हृदय में श्रद्धा का स्थान बना लिया। सब उन्हें ‘वन्दनीया मौसीजी’ कहने लगे। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।
मौसीजी स्त्रियों के लिए जीजाबाई के मातृत्व, अहिल्याबाई के कृतत्व तथा लक्ष्मीबाई के नेतृत्व को आदर्श मानती थीं। उन्होंने अपने जीवनकाल में बाल मन्दिर, भजन मंडली, योगाभ्यास केन्द्र, बालिका छात्रावास आदि अनेक प्रकल्प प्रारम्भ किये। वे रामायण पर बहुत सुन्दर प्रवचन देती थीं। उनसे होने वाली आय से उन्होंने अनेक स्थानों पर समिति के कार्यालय बनवाये।
1945 में समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। देश की स्वतंत्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वे कराची, सिन्ध में थीं। दरअसल मौसीजी को सिन्ध प्रांत की सेविका जेठी देवानी का पत्र आया कि सेविकाएं सिन्ध प्रांत छोड़ने से पहले मौसीजी के दर्शन और उनका मार्गदर्शन चाहती हैं। उन्होंने लिखा, इससे हमारा दुःख हल्का हो जायेगा। हम यह भी चाहते हैं कि आप हमें श्रद्धापूर्वक कर्तव्य पालन करने की प्रतिज्ञा दें। देश में भयावह वातावरण होते हुए भी मौसीजी ने सिन्ध जाने का साहसी निर्णय लिया और 13 अगस्त 1947 को साथी कार्यकर्ता वेणुताई को साथ लेकर हवाई जहाज से बम्बई से कराची गयीं। हवाई जहाज में दूसरी कोई महिला नहीं थी। जयप्रकाश नारायण और पूना के श्री देव थे। वे अहमदाबाद उतर गये। अब हवाई जहाज में थीं ये दो महिलाएँ और बाकी सारे मुस्लिम, जो नारे लगा रहे थे – लड़ के लिया है पाकिस्तान, हँस के लेंगे हिन्दुस्तान। कराची तक यही दौर चलता रहा। कराची में दामाद चोळकर ने आकर गन्तव्य स्थान पर पहुँचाया।
दूसरे दिन 14 अगस्त को कराची में एक उत्सव संपन्न हुआ। एक घर की छत पर 1200 सेविकाएँ एकत्रित हुईं। गंभीर वातावरण में मौसीजी ने प्रतिज्ञा का उच्चारण किया, सेविकाओं ने दृढ़तापूर्वक उसका अनुकरण किया। मन की संकल्प शक्ति का आह्वान करने वाली प्रतिज्ञा से दुःखी सेविकाओं को समाधान मिला। अन्त में मौसीजी ने कहा, “धैर्यशाली बनो, अपने शील का रक्षण करो, संगठन पर विश्वास रखो और अपनी मातृभूमि की सेवा का व्रत जारी रखो। यह अपनी कसौटी का क्षण है।” सेविकाओं ने मौसीजी से पूछा – हमारी मर्यादा खतरे में है। हम क्या करें? कहाँ जाएँ? मौसीजी ने आश्वासन दिया – ‘आपके भारत आने पर आपकी सभी समस्याओं का समाधान किया जायेगा।‘ अनेक परिवार भारत आये। उनके रहने का प्रबंध मुंबई के परिवारों में पूरी गोपनीयता रखते हुए किया गया। इस तरह असंख्य युवतियों और महिलाओं को आश्रय व सुरक्षा देकर मौसीजी ने अपने साहसी नेतृत्व का परिचय दिया।
27 नवम्बर, 1978 को नारी जागरण की अग्रदूत लक्ष्मीबाई केलकर का देहान्त हो गया। उनके द्वारा स्थापित राष्ट्र सेविका समिति आज विश्व के 25 से भी अधिक देशों में सक्रिय है।