बात को संदर्भ से काट कर बवाल मचाना कब छोड़ेगा लिबरल गिरोह

बात को संदर्भ से काट कर बवाल मचाना कब छोड़ेगा लिबरल गिरोह

बात को संदर्भ से काट कर बवाल मचाना कब छोड़ेगा लिबरल गिरोहबात को संदर्भ से काट कर बवाल मचाना कब छोड़ेगा लिबरल गिरोह

किसी भी बात को उसके मूल संदर्भ से काट कर बवाल मचाना देश के लिबरल गिरोह की आदत बन गई है। यह स्थिति देश में अकारण तनाव पैदा करती है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के ताजा बयान को भी तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है। उन्होंने जिस संदर्भ में अपनी बात कही, उसे पूरी तरह किनारे करके बात को जनसंख्या नियंत्रण से जोड़कर बिल्कुल ही नए संदर्भ के साथ पेश किया जा रहा है और असदउद्दीन ओवैसी जैसे मजहबी नेता  सेकुलर गिरोह इसको अकारण ही मुद्दा बना रहे हैं।

सरसंघचालक ने कर्नाटक में श्री सत्यसाईं यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूमन एक्सीलेंस में एक दीक्षांत भाषण में कहा था किइंसान के पास मस्तिष्क ना होता तो वह धरती का सबसे कमजोर जीव होता। केवल खानापीना और आबादी बढ़ाना तो जानवर भी करते हैं। यह जंगल का कानून है कि सिर्फ शक्तिशाली ही जीवित रहता है।

उनके भाषण के इस छोटे से अंश को संदर्भ से पूरी तरह काट कर सिर्फ सनसनीखेज हेडलाइन बनाने के लिए लिबरल गिरोह ने इसे जनसंख्या नियंत्रण कानून से जोड़ दिया। जबकि उन्होंने जिस संदर्भ में यह बात कही वह संदर्भ ही अलग था। वे धर्म आधारित जीवन की बात कर रहे थे और यह बता रहे थे कि किस तरह व्यक्ति के विकास से सबका विकास जुड़ा हुआ है। उनका कहना था कि अमर होने के लिए इन सबके परे जा कर उपयोगी मनुष्य का जीवन जीना आवश्यक है और इसी के लिए विद्या प्राप्त करना जरूरी है। इसी संदर्भ में उन्होंने यह बात कही कि सर्वाइवल तो जानवर भी करते हैं। यदि मानव के पास बुद्धि नहीं होती तो वह सबसे कमजोर प्राणी होता। खाना पीना प्रजा बढ़ाना, यह तो पशु भी करते हैं। सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट का नियम सिर्फ जानवरों के लिए है। उनका कहना था कि मानव में जो फिटेस्ट यानी शक्तिशाली होता है, वह सिर्फ स्वयं के अस्तित्व के लिए काम नहीं करता, बल्कि दूसरों के अस्तित्व को बचाने के लिए भी काम करता है और विश्व को शांत और समृद्ध बनाने के लिए काम करता है।

अब बताइए कि इस पूरे संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण कानून या उससे जुड़े विवाद की बात कहां हैं और आखिर किस तरह इसे जनसंख्या नियंत्रण के संदर्भ से जोड़ा जा सकता है? ओवैसी का यहां तक बयान गया कि सरसंघचालक आखिर एक समुदाय से इतनी घृणा क्यों करते हैं? क्षोभ इस बात पर आता है कि अपनी हेडलाइन बनाने के लिए मीडिया का एक गैर जिम्मेदार तबका ऐसी बातों को संदर्भ से पूरी तरह काट कर प्रस्तुत करता है और फिर ओवैसी जैसे नेता बिना पूरी बात जाने उस पर प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर देते हैं।और इनकी ये प्रतिक्रियाएं ही फिर देश और समाज का वातावरण दूषित करती हैं।

आपको वर्ष 2002 का एक वाकया याद होगा। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को एक इंटरव्यू दिया था। एजेंसी ने उनसे 2002 में हुए दंगों पर पछतावा होने के बारे में कोई प्रश्न पूछा तो उन्होंने कहा था, “अगर कोई कुत्ते का बच्चा भी आपकी कार के नीचे आकर मारा जाता है तो आपको दुख होता है।

तब भी लिबरल गिरोह ने अपनी असलियत दिखाई थी। बात संवेदनाओं की हो रही थी और लिबरल गिरोह उसे विवादास्पद बता रहा था। लिबरल गैंग का कहना था कि मोदी ने दंगों में मारे गए लोगों की तुलना कुत्ते के बच्चे (पिल्ले) से कर दी।

यह तो एक उदाहरण है। लिबरल गिरोह जब तब अपनी सुविधानुसार बात को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने के लिए कुख्यात है। लेकिन क्या इन लोगों को देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझनी चाहिए? ये कब तक मुख्य संदर्भ को छोड़कर एजेंडा आधारित नैरेटिव बनाने के प्रयास कर वातावरण में विष घोलते रहेंगे?

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