लोक देवता गोगा जी

लोक देवता गोगा जी

मातुसिंह राठौड़ 

लोक देवता गोगा जीलोक देवता गोगा जी

10वीं शताब्दी के लगभग अंत में मरुप्रदेश के चौहानों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने प्रारम्भ कर दिये थे। इसी स्थापनाकाल मे घंघरान चौहान ने वर्तमान चूरू शहर से 10 किमी पूर्व में घांघू गाँव बसा कर अपनी राजधानी स्थापित की।

राणा घंघ की पहली रानी से दो पुत्र हर्ष व हरकरण तथा एक पुत्री जीण का जन्म हुआ। हर्ष व जीण लोक देवता के रूप में सुविख्यात हैं। ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते हालांकि हर्ष ही राज्य का उत्तराधिकारी था लेकिन नई रानी के रूप में आसक्त राजा ने उससे उत्पन्न पुत्र कन्हराज को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। संभवत: इन्हीं उपेक्षाओं ने हर्ष और जीण के मन में वैराग्य को जन्म दिया। दोनों ने घर से निकलकर सीकर के निकट तपस्या की और आज दोनों लोकदेव रूप में जन-जन में पूज्य हैं।

राणा घंघरान की दूसरी रानी से कन्हराज, चंदराज व इंदराज हुए। कन्हराज के चार पुत्र– अमराज, अजराज, सिधराज व बछराज हुये। कन्हराज का पुत्र अमराज (अमरा) उसका उत्तराधिकारी बना। अमराज का पुत्र जेवर (झेवर) उसका उत्तराधिकारी बना। लेकिन महत्वाकांक्षी जेवर ने ददरेवा को अपनी राजधानी बनाया और घांघू अपने भाइयों के लिए छोड़ दिया। जेवर ने उत्तरी क्षेत्र में अपने राज्य का विस्तार अधिक किया। असामयिक मृत्यु के कारण यह विजय अभियान रुक गया। जेवर के पश्चात उनका पुत्र गोगा (गोगदेव) चौहान युवावस्था से पूर्व ही माँ बाछलदे के संरक्षण में ददरेवा का राणा बना।

वर्तमान जोगी-आसन के स्थान पर नाथ संप्रदाय के एक सिद्ध संत तपस्वी योगी ने गोरखनाथ के आशीर्वाद से बाछल को यशस्वी पुत्र पैदा होने की भविष्यवाणी की थी। कहते हैं कि बाछलदे की बड़ी बहन आछलदे को पहले इन्हीं संत के आशीर्वाद से अर्जन-सर्जन नामक दो वीर पैदा हुए थे।

अर्जन-सर्जन के साथ गोगा का भीषण युद्ध हुआ। पिता की असामयिक मृत्यु के कारण गोगा को संघर्ष करना पड़ा। राणा के वंशजों ने, जो विस्तृत क्षेत्र में ठिकाने स्थापित कर चुके थे,  राज्य व्यवस्थित करने में गोगा का सहयोग नहीं किया। घंघरान के एक पुत्र इन्दराज के वंशज घांघू से 40 किमी उत्तर में जोड़ी नामक स्थान पर काबिज थे। इनके राजकुमार अर्जन-सर्जन गोगा के मौसेरे भाई थे। इन राजकुमारों ने गोगा से ददरेवा छीनने का प्रयास किया। इन जोड़ले राजकुमारों ने गायों को चोरी कर ले जाना प्रारम्भ किया। एक दिन गोगा का ददरेवा से 8 किमी. उत्तर-पूर्व मे वर्तमान खुड्डी नामक गाँव के पास एक जोहड़ भूमि में अर्जन-सर्जन के साथ भीषण युद्ध हुआ। अर्जन एक जाळ के पेड़ के पास मारा गया। सर्जन तालाब की पाल के पास युद्ध करता हुआ काम आया। इनके अंतिम स्थल पर एक मंदिर बना हुआ है जिसमें एक पत्थर की मूर्ति में दो पुरुष हाथों मे तलवार लिए हुए एक ही घोड़े पर सवार हैं। घोड़े के आगे एक नारी खड़ी है। इनकी अर्जन-सर्जन के नाम से पूजा की जाती है। ऐसे ही एक घोड़े पर सवार की मूर्ति ददरेवा की मेड़ी में भी है, जिसे वर्तमान में एक दीवार के साथ स्थापित कर मंदिर का रूप दिया गया है। मंदिर में दूसरी पत्थर की मूर्ति घोड़े पर सवार गोगा चौहान की है। युद्ध मैदान में निर्मित मंदिर का पुजारी भार्गव परिवार से है। वर्तमान में ऊपर वर्णित जा का वृक्ष नष्ट हो गया है। जोहड़ में अब भी पानी भरता है। यहाँ एक लोकगीत प्रचलित है – अरजन मारयो जाळ तलैसरजन सरवरिए री पा। हेरी म्हारा गूगा भल्यो राहियो

गोगा का वैवाहिक जीवन : गोगा के वैवाहिक जीवन के संबंध में ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव है। लोक-कथाओं में उनकी पत्नियों के रूप में रानी केलमदे व रानी सुरियल के नामों का उल्लेख है। रानी केलमदे को पाबूजी के भाई बुड़ोजी की पुत्री बताया गया है। समय का अंतराल अधिक होने के कारण यह सत्य प्रतीत नहीं होता। रानी सुरियल का वर्णन कामरूप देश की राजकुमारी के रूप में किया गया है।

गोगा के एक पुत्र नानक के अलावा अन्य पुत्रों का नाम ज्ञात नहीं है।

महमूद गजनवी से युद्ध –हमूद गजनवी के उत्तर भारत पर हुए आक्रमणों के परिणामस्वरूप गोगा ने अपनी सीमा से लगते हुए अन्य अव्यवस्थित राज्यों पर भी सीधा अधिकार न कर मैत्री संधि स्थापित की। जिसके कारण उत्तरी-पूर्वी शासकों की नजरों मे गोगा चौहान भारतीय संस्कृति का रक्षक लगने लगा। जब महमूद ने सन 1018 में कन्नौज पर आक्रमण किया तो संभवत: उसके बाद गोगा ने सम्पूर्ण उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र मे संपर्क किया होगा क्योंकि सोमनाथ पर हुएक्रमण के समय सभी शासकों ने गजनी को अपने क्षेत्र से जाने की स्वीकृति देने के उपरांत भी सोमनाथ से आते हुए महमूद पर आक्रमण करने के लिए गोगा ने युद्ध मैदान में आने का आमंत्रण दिया तो उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र के सभी शासकों ने सहर्ष स्वीकार किया था।

गजनी सोमनाथ पर आक्रमण कर उस अद्वितीय धरोहर को नष्ट करने में सफल रहा, लेकिन उसको इतनी घबराहट थी कि वापसी के समय बहुत तेज गति से चलकर अनुमानित समय व रणयोजना से पूर्व गोगा के राज्य के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र मे प्रवेश कर गया। गोगा द्वारा आमंत्रित उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सेनाएँ समय पर नहीं पहुंची थीं। गोगा ने हिम्मत नहीं हारी। अपने पुत्र भाई-भतीजों एवं स्थाई तथा एकत्रित सेना को लेकर प्रस्थान किया। ददरेवा से 25 कोस (75 किमी) उत्तर-पश्चिम के रेगिस्तानी निर्जन वन क्षेत्र में तेज गति से जाते हुए गजनी का रास्ता रोका। उस समय महमूद गजनवी रास्ता भटका हुआ था और स्थानीय लोगों के सहयोग से गजनी शहर का मार्ग तय कर रहा था। गोगा के चतुर सैनिकों ने रास्ता बताने के बहाने महमूद की सेना के निकट पहुँचकर उसकी सेना पर आक्रमण कर दिया। गोगा के पास साहस तो था पर सेना कम थी। गजनी की सेना के काफी सैनिक मारे गए। गजनी के सैनिकों की संख्या बहुत अधिक थी। गोगा ने अपने 45 से अधिक पुत्रों, भतीजों एवं निकट बंधु-बांधवों के अतिरिक्त अन्य सैकड़ों सैनिकों के साथ बालू मिट्टी के एक टीले पर सांसारिक यात्रा को विराम दिया।

युद्ध समाप्त होने के कुछ घंटों बाद बचे हुए पारिवारिक सदस्यों व सैनिकों ने उसी स्थान पर अग्नि के साक्ष्य में इहलोक से परलोक के लिए विदाई दी। शेष बचे वीर योद्धाओं ने ददरेवा आकर गोगा के भाई बैरसी के पुत्र उदयराज को राणा बनाया। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सैनिक भारी संख्या में ददरेवा पहुंचे, लेकिन उस समय तक सब कुछ बदल गया था। चौहान वंश व अन्य रिशतेदारों के योद्धा गोगा के सम्मान में ददरेवा आए। उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के अनुयाई लोग आज भी पीले वस्त्रों मे परंपरा को निभाने के लिए उपस्थित होते हैं।

गोगा को जहरीले सर्पों के वि को नष्ट करने की अलौकिक शक्ति प्राप्त थी। गाँव-गाँव में गोगा के पूजा स्थान बनने लगे। गोगामेड़ियों की स्थापना हुई। जन्म स्थान ददरेवा में बनी मेड़ी को शीश मेड़ीकहा जाता है। ददरेवा मेड़ी में गोगाजी की घोड़े पर सवार मूर्ति स्थापित है। ददरेवा की मेड़ी बाहर से देखने पर किसी राजमहल से कम नहीं है।

दरेवा का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान गोरखधुणा (जोगी आसान) है। यह वही स्थान है जहां नाथ संप्रदाय के एक सिद्ध संत तपस्वी योगी ने गोरखनाथ के आशीर्वाद से बाछल को यशस्वी पुत्र पैदा होने की भविष्यवाणी की थी। यहाँ पर सिद्ध तपस्वियों का धूणा एवं गोरखनाथ जी और अन्य की समाधियाँ भी हैं।

ददरेवा गाँव में एक पुराना गढ़ है जो सन 1509 ई. से 1947 तक बीकानेर के राठौड़ राज्य के अधीन रहा। महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ के पुत्र सुंदरसेन को 12 गाँव की जागीर के साथ ददरेवा मिला था। पुराने कुएं, मंदिर, हवेलियाँ तथा जाल के वृक्ष यहाँ की सुंदरता बढ़ाते हैं। राठौड़ राज्य से पूर्व गोगा जी चौहान के वंश में मोटेराय के तीन पुत्रों द्वारा इस्लाम मत स्वीकार करने और कायमखानी नाम विख्यात होने की ऐतिहासिक घटना ददरेवा के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। कायमखानी एवं अन्य हिन्दू धर्म से इस्लाम में मतांतरित होने वाले लोगों के कारण ही गोगाजी के नाम के साथ पीर शब्द जुड़ कर गोगा पीर हो गया।

गोगा जी का समाधि-स्थल धुरमेड़ीकहलाता है। यह स्थान भादरा से 15 किमी उत्तर-पश्चिम में हनुमानगढ़ जिले में है। यहाँ पुरानी मूर्तियाँ हैं। यहाँ के पुजारी चायल मुसलमान हैं जो चौहानों के वंशज हैं। गोगामेड़ी में गोरख-टिल्ला व गोरखाणा तालाब दर्शनीय स्थान हैं। गोरखमठ में कालिका व हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं। गोगा जी के भक्त ददरेवा के साथ ही गोगामेड़ी आने पर यात्रा सफल मानते हैं।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *