राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गान वंदे मातरम्
गंगा सिंह राजपुरोहित
वंदे मातरम् अर्थात हे मातृभूमि मैं तेरी वंदना करता हूं, मैं तुझे प्रणाम करता हूं। राष्ट्रप्रेम को गहराई से व्यक्त करने वाली इस अजर अमर रचना को स्वतंत्रता के मतवालों ने देखते ही देखते अचूक मंत्र के रूप में स्वीकार कर लिया था। अंग्रेज भी इस मंत्र/ हुंकार से खौफ खाने लगे थे। यह एक नारा नहीं था बल्कि आजादी के दीवानों की धमनियों में बहने वाला राष्ट्रभक्ति रूपी रक्त था, शिराओं को झंकृत करने वाला मंत्र था, आत्माओं को जोड़ने वाला सेतु था। यह गीत आज भी हाड़ कंपाने वाली ठंड, पत्थर को पिघलाने वाली गर्मी और सीमा पार से सनसनाती गोलियों के बीच देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध रणबांकुरों की प्राणवायु है। यह जयघोष केवल घोष मात्र नहीं था/है, बल्कि भारत को अक्षुण रखने का अचूक मंत्र है। आज भी स्वतंत्रता की कीमत समझाने, बलिदानियों को याद करने और इस शस्य श्यामला भूमि को वंदन करने के लिए सबसे उपयुक्त यदि कोई गीत है तो वह है, वंदे मातरम्।
1870 के दौरान अंग्रेजों ने ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत गाना अनिवार्य कर दिया था। इससे राष्ट्र चिंतकों सहित बंकिम चन्द्र चटर्जी बहुत व्यथित हुए। बस, इसी पीड़ा से देशवासियों को मुक्ति दिलाने के लिए बंकिम बाबू ने 7 नवंबर 1876 को इस गीत की रचना कर डाली। 1882 में बंकिम बाबू ने इस रचना को अपने लोकप्रिय उपन्यास ‘आनंद मठ’ में सम्मिलित किया था। आनंदमठ देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत एक राजनीतिक उपन्यास था, जिसका आदर्श वाक्य था ‘ओम वंदे मातरम्’।
बंकिम बाबू ने संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से इस गीत की रचना को एक और शीर्षक दिया ‘वंदे मातरम्’। ‘वंदे मातरम्’ के शुरुआती दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बांग्ला भाषा में। वंदे मातरम् का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले महान आध्यात्मिक क्रांतिकारी अरविंद घोष ने किया था, जबकि आरिफ मोहम्मद खान ने उर्दू में अनुवाद किया था। 1906 में ‘वंदे मातरम्’ देवनागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया। 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में जब तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में ‘वंदे मातरम्’ ही लिखा हुआ था।
राष्ट्रभक्ति का ज्वार जगाने वाले इस गीत को अंग्रेजों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। 1906 में अंग्रेज सरकार ने वंदे मातरम् को किसी अधिवेशन, जुलूस या फिर सार्वजनिक स्थान पर गाने पर प्रतिबंध लगा दिया। 14 अप्रैल 1906 को अंग्रेज सरकार के प्रतिबंधात्मक आदेशों की अवहेलना करके एक पूरा जुलूस वंदे मातरम के बैज लगाए हुए निकाला गया। अंग्रेज पुलिस ने जुलूस पर भयंकर लाठीचार्ज किया। जिसमें कई देशभक्त रक्तरंजित होकर सड़कों पर गिर पड़े। उनके साथ सैकड़ों लोग वंदे मातरम् का घोष करते हुए लाठियां खाते रहे। कांग्रेस के 1923 के अधिवेशन में भी वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे थे, ये विरोध कांग्रेस में आज भी जारी है।
सन 2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में उस समय तक के सबसे प्रसिद्ध 10 गीतों का चयन करने के लिए विश्व भर से लगभग 7000 गीतों का चयन किया गया था। जिसमें 155 देशों/द्वीपों के लोगों ने इसमें मतदान किया, जिसमें वंदे मातरम शीर्ष से दूसरे स्थान पर था।
बंकिम बाबू ने हमारी मातृभूमि के लिए इस गीत में अनेक सार्थक विशेषण प्रयुक्त किए हैं, वे एकदम अनुकूल हैं, इनका कोई सानी नहीं है। इस गीत के रचनाकार बंकिम बाबू की 183 वीं (27 जून 1838) जयंती पर शत-शत वंदन!