नारद जी और वर्तमान संदर्भ में मीडिया की भूमिका
प्रदीप कुमार शेखावत
नारद जी और वर्तमान संदर्भ में मीडिया की भूमिका
हमारे शास्त्रों में ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक देवर्षि नारद को भगवान का “मन” कहा गया है। यही कारण है कि उन्हें सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में और समाज के सभी वर्गों में सदैव महत्वपूर्ण स्थान मिला। नारद ने धर्म, न्याय, लोक कल्याण, लोक मंगल, लोक हित के संरक्षण का कार्य किया। उनके इन गुणों के कारण देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों- राक्षसों ने भी उन्हें सम्मान और आदर दिया।
श्रीमदभगवद्गीता के दशम अध्याय के 26 वें वेद श्लोक में स्वयं श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को प्रकट करते हुए कहा है कि देवर्षीणाम् च नारद। अर्थात् देवर्षियों में मैं ही नारद हूं।
वायु पुराण में कहा गया है कि देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले नारद भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों के ज्ञाता और सत्यभाषी थे। कठोर तपस्या के कारण सर्व लोक विख्यात थे।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारद को देवों में पूज्य, वेद, उपनिषदों के मर्मज्ञ, इतिहास – पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) को जानने वाले, नीतिज्ञ, मेधावी, भाषा, व्याकरण, आयुर्वेद और ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों की गतिविधियां जानने में समर्थ कहा गया है।
भारत का प्रथम हिन्दी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड भी नारद जयंती के शुभ दिन ही कलकत्ता से मई 1826 में साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ। नारद जी को सृष्टि का पहला पत्रकार माना जाता है। इस लोक से उस लोक तक की परिक्रमा, सर्वत्र भ्रमण, सतत, सजग और जीवन्त संवाद उनके पत्रकारिता धर्म का प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनकी पत्रकारिता में मानव मात्र का लोक कल्याण, लोक हित और लोक मंगल का दर्शन है।
अपने संवाद से सेतु अर्थात् सभी को जोड़ने का काम करने वाले पत्रकारिता के पितृ पुरुष देवर्षि नारद के मूल्यों को आज की पत्रकारिता के सन्दर्भों में देखें तो आत्म मंथन की आवश्यकता है।
मीडिया की भूमिका वर्तमान परिवेश में कैसी हो, किन मूल्यों पर आधारित हो और मुद्दे क्या हों? इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढते समय हमको सबसे पहले भारत, भारतीयता और राष्ट्रीयता को प्राथमिकता देनी होगी।
आज अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती बनकर खड़ा है। देश, धर्म और आतंकवाद जैसे मुद्दों को लेकर जब बहस शुरू होती है तो हमारा अपना ही देश दो धारणाओं में बंटा हुआ दिखाई देता है। किसी बहस में प्रतिभागी होते हुए बोलने की एक चौखट की मर्यादा होती है। लेकिन सहभागी उस मर्यादा को तार तार करते दिखाई देते हैं। ऐसी बहस को देखते हुए लगता है कि हम अपने ही देश में बेगाने हो रहे हैं।
नारद भक्ति सूत्र में कहा गया है, “तल्ल्क्ष्णानि वच्यन्ते नानामतभेदात ” अर्थात मतों में विभिन्नता व अनेकता है।
यही पत्रकारिता का भी मूल सिद्धांत है। परन्तु उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि किसी भी मत को मानने से पहले स्वयं उसकी अनुभूति करना आवश्यक है और तभी विवेकानुसार निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए व लोकहित में प्रस्तुति करनी चाहिए। यह आज का सबसे विचारणीय प्रश्न है।
पिछले वर्ष जब पूरी दुनिया के सामने कोरोना जैसी महामारी का संकट फैला हुआ था, तब भी समाज को तोड़ने वाली शक्तियां सामने आ रही थीं। बड़े पैमाने पर हो रही दवाओं की जमाखोरी, कालाबाजारी, आक्सीजन सिलेंडरों की कमी और बदहाल चिकित्सा व्यवस्था के बीच दम तोड़ते आम जन की पीड़ा उन दिनों बड़ा मुद्दा थीं। ऐसे कठिन हालात में आम आदमी सिर्फ मीडिया से आशान्वित रहा।
राष्ट्र की अस्मिता और गौरव को धूल धूसरित होने से बचाने के लिए देवर्षि नारद के मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता को सुदृढ़ करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
भारतीय जनजीवन का मूल भाव ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ पर आधारित है। इसमें सबका कल्याण यानि समस्त विश्व का कल्याण निहित है। नारद पत्रकारिता के आदर्श हैं और सदैव सत्य का अनुसंधान करने वाले हैं। उनकी कार्य प्रणाली में यही भाव सर्वोपरि रहा है।
नारद मुनि ने कहा था, “नास्ति तेषु जाति विद्यारूपकुलधनक्रियादिभेदः” अर्थात जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए। उनकी यह बात आज की पत्रकारिता पर भी लागू होती है।
पत्रकारिता किसलिए हो व किस विषय में हो, यह आज का सबसे विचारणीय विषय है। नारद जयंती इस विषय के सार्थक चिन्तन, संवाद और आत्म मंथन के लिए हम सभी को प्रेरित करती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं वर्तमान में हरियाणा सरकार के राज्य सूचना आयुक्त हैं)
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