वर्ष 2014 से पहले स्वर्ग सा था हिंदुस्तान -2

वर्ष 2014 से पहले स्वर्ग सा था हिंदुस्तान -2

उड़ता तीर -व्यंग्य श्रृंखला

वेद माथुर

वर्ष 2014 से पहले स्वर्ग सा था हिंदुस्तान -2

बात वर्ष 2014 से पहले की है। मुझे एक बार वैक्सीन लगवाने सरकारी अस्पताल में जाना पड़ा। जाते ही डॉक्टरों ने प्यार भरा उलाहना दिया कि आप क्यों आए हो हम ‘मनमोहन सिंह टीकाकरण योजना’ के अंतर्गत आपका फोन पाते ही खुद आपके घर आकर टीका लगा देते। साथ ही आपको 15,000 रुपए की नगद प्रोत्साहन राशि भी घर आकर देते।

लेकिन वर्ष 2014 के बाद से रवीश कुमार की रिपोर्टिंग देख देख कर मेरा मन इतना आशंकित हो गया कि मैं केंद्र सरकार द्वारा संचालित पीजीआई अस्पताल में टीकाकरण करवाने के लिए जाने में झिझक रहा था। जैसे-तैसे अस्पताल पहुंचा। वहां सारा काम व्यवस्थित था, वैक्सीन सुचारू रूप से लग गया। लेकिन टीका लगने के बाद मुझे अपेक्षा थी कि 2014 से पहले की तरह मुझे अस्पताल की ओर से दूध- जलेबी या पावभाजी ऑफर की जाएगी, लेकिन उन्होंने आधा घंटे रोकने और सब कुछ सामान्य पाने के बाद मुझे चलता कर दिया।मुझे यह सब निराशाजनक लगा क्योंकि 2014 से पहले तो सरकारी अस्पताल में ‘मनमोहन सिंह टीकाकरण योजना’ के अंतर्गत वैक्सीन के बाद शानदार भोजन मिलता था तथा भोजन के साथ-साथ चाट पकौड़ी और दूध जलेबी के स्टॉल भी होते थे। मनपसंद भोजन करते करते अस्पताल के अधीक्षक महोदय 15,000 ₹ की प्रोत्साहन राशि का चेक लेकर आ जाते थे। अब नरेंद्र मोदी जी के टाइम में सब कुछ सूखा सूखा है।

वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से उन्होंने सिर्फ 15 -20 नए एम्स अस्पताल ही बनवाए हैं जबकि उनका दायित्व था कि पहले की सरकारों की तरह हर गली और हर मोहल्ले में शानदार अस्पताल खोलते।

मुझे तो बस बार-बार मनमोहन सिंह जी के समय के वे स्वर्णिम दिन याद आते हैं, जब हिंदुस्तान सोने की चिड़िया था। सरकारी अस्पताल मेदांता से भी अच्छे थे। मेरे शहर का सरकारी स्कूल मोइनिया इस्लामिया दून स्कूल से बेहतर था। रेलवे के शटल शताब्दी से अच्छी सुविधाएं देते थे। लोग अजमेर से केकड़ी और अजमेर से भिनाय भी हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर से नाम मात्र के किराए में अप डाउन किया करते थे। चारों ओर दूध दही की नदियां बहती थीं। हर आदमी के पास सफेद कॉलर रोजगार, कार और बांग्ला था। हमारे विधायक, सांसद और अफसर-जज आम आदमी की तरह रहते थे। सब रजिस्ट्रार और परिवहन कार्यालय में घूसखोरी के बजाय वहां के कर्मचारी चाय पानी भी अपने पैसों से करवाते थे। यहां तक कि अजमेर के रेवेन्यू बोर्ड में भी सारे फैसले निष्पक्ष होते थे ।

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