रूप बदल बदल कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे वामपंथी

रूप बदल बदल कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे वामपंथी

ललित कौशिक

रूप बदल बदल कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे वामपंथी

वामपंथ दुनिया भर से समाप्ति के कगार पर है, और वर्तमान में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। भारत में कभी अपनी जड़ें जमा चुकी वामपंथी विचारधारा ने लोगों का विकास नहीं होने दिया और इसलिए 2014 में देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से वामपंथी लगातार अपना रूप बदलकर देश विरोधी शक्तियों को बहकाने में लगे हुए हैं। शायद, इसलिए उनको आंदोलनजीवी का नाम दिया गया है। आंदोलनजीवी इसलिए क्योंकि एक आंदोलन में असफलता हाथ लगती है तो रूप बदलकर वे दूसरे आंदोलन में जुट जाते हैं।

वामपंथ की विचारधारा में हिन्दुओं की चिंता करने वाले  संगठनों को ‘दक्षिणपंथी’ कहा जाता है। यहां की हिन्दू-चिंताएं अमेरिका या अफ़्रीका के मूल निवासियों की चिंताओं से अलग नहीं हैं। पश्चिमी सांस्कृतिक, व्यापारिक, धार्मिक दबावों के विरुद्ध हिन्दुओं का विरोध उसी तरह का है, जो अमेरिका में रेड-इंडियन या ऑस्ट्रेलिया में एबोरिजनल समुदायों का है।

पश्चिमी देशों के वामपंथी अमेरिका और अफ़्रीका के मूल निवासियों की चिंताओं के समर्थक हैं। लेकिन जब बात भारत की आती है तो हिन्दुओं की रक्षा और उनकी संभाल को इन वामपंथियों द्वारा ‘सांप्रदायिक’ कह कर खारिज कर दिया जाता है। पश्चिम के देशों के मूल निवासियों की अपने पवित्र श्रद्धास्थल वापस करने की मांग से वहां वामपंथियों की सहानुभूति हो जाती है। लेकिन हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों की बात आती है तो उनकी यही विचारधारा इसे असहिष्णुता बताकर खारिज कर देती है।

रेड-इंडियनों की संस्कृति में क्रिश्चियन मिशनरियों के दखल का अमेरिकी वामपंथी विरोध करते हैं। लेकिन जब धर्म के नाम पर ईसाई मिशनरियों द्वारा भारत में गांवों की सेवा बस्तियों में रहने वालों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन किया जाता है तो ये वामपंथी उन मिशनरियों का बचाव करते हैं।

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में वामपंथी वहां के इतिहास को, वहां की मूल संस्कृति को जीवित रखे जाने का समर्थन करते हैं और भारत में सताए हिन्दुओं के वास्तविक इतिहास लिखने के प्रयास को हिन्दूकरण कहकर इसका विरोध करते हैं।

हिन्दू धर्म न होकर एक जीवन पद्धति है, यानि जीवन जीने की कला है। हिन्दू मात्र अपने लिए नहीं सोचता, संपूर्ण सृष्टि पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, सभी में जीव को मानने वाला नदियों, तुलसी, गाय और गंगा में माता का वास मानता है। घर में पहली रोटी गाय माता का भोग लगाकर तभी अगली रोटी अपने लिए और इतना होने के बाद अंतिम रोटी कुत्ते के लिए भी निकालता है। इसलिए हिन्दू विश्व बंधुत्व की कामना करता है। लेकिन वामपंथ की नजर में यह ढोंग मात्र है।

हजारों सालों से हिन्दुओं की संस्कृति पर हमले, जबरन मतांतरण और मजहबी आधार पर ही देश का विभाजन किया गया। भारत में वामपंथ का उद्देश्य केवल और केवल हिन्दू विरोध है। उन्होंने कभी इस्लाम और ईसाईयत का विरोध नहीं किया।

हरियाणा के नूंह जिले के मेवात क्षेत्र में हिन्दुओं की संख्या 50 गांवों में 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है औऱ लगभग 40 गांव हिन्दू विहीन हो गए हैं। वहां पर वामपंथ क्यों नहीं बोलता? जब बंगाल में हिन्दुओं का विस्थापन हो जाता है तो वहां के हिन्दुओं के साथ वामपंथ अपना प्रेम क्यों नहीं जाग्रत करता?

हिन्दू समाज के साथ जब अन्याय होता है, तब उनके लिए कोई कुछ नहीं बोलता, क्यों उनके समर्थन में इन तथाकथित आंदोलनजीवियों की आवाज नहीं उठ पाती? जबकि मुस्लिमों, क्रिश्चियनों की बढ़ा-चढ़ाकर या झूठी शिकायत पर भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ जाती है।

क्यों जब बाराबंकी में एक मस्जिद टूटती है तो झारखंड में बैठे एक वामपंथी पत्रकार घर बैठकर उसको लेख का रूप देता है। लेकिन जब मंदिर टूटता है तो वामपंथ की आवाज दब जाती है। यदि विश्व के अंदर शांति स्थापित करनी है, विश्व का कल्याण अगर किसी मार्ग से होगा तो केवल और केवल एक ही मार्ग है, वह है हिंन्दू जीवन पद्धति। यदि हिन्दू बचा तो ही विश्व में शांति स्थापित होगी।

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