विचारों को चुनने की स्वतंत्रता
राजीव मिश्रा
विचारों को चुनने की स्वतंत्रता
कल एक भारतीय जूनियर ने अपने घर चाय पर बुलाया। बैचलर है तो दो लोग घर शेयर कर के रहते हैं। वहाँ उसकी हाउसमेट ने मोमोज बनाये थे, और हम तीनों चाय पर बातें कर रहे थे।
उसकी हाउसमेट एक बर्मीज लड़की थी। उसने कहा, तुम दोनों हमेशा भारत लौटने की बातें क्यों करते हो?
हम दोनों ने एक साथ एक ही उत्तर दिया – अगर यहाँ रुक गए तो अपनी जड़ों से कट जाएँगे। फिर अगली पीढ़ी बिल्कुल कट जाएगी।
उसको यह समझ में नहीं आया कि उससे अंतर क्या पड़ जायेगा? फिर मैंने उससे पूछा – अच्छा, तुम तो बौद्ध हो। तुम्हारे लिए अपना बौद्ध होना कितना महत्वपूर्ण है?
उसने पूछा : इसे कैसे मापेंगे कि कितना महत्वपूर्ण है?
चलो, इसे ऐसे मापो… दुनिया में क्या है जिसके लिए तुम अपना बौद्ध धर्म छोड़ दोगी? दस करोड़ पौण्ड? लंदन में एक शानदार पैलेस? एक बिलिनेयर की पत्नी होना?
उसने कहा : नहीं! किसी भौतिक (मटेरियलिस्टिक) लाभ के लिए तो नहीं।
– अच्छा, फिर तुम्हारे लिए सबसे आवश्यक क्या है?
उसने कहा – मेडिकल करियर।
– ठीक है, चलो..अगर तुम्हें मेडिसिन का नॉबेल पुरस्कार मिल रहा हो, तो उसके बदले में तुम अपना रिलिजन छोड़ दोगी?
उसने कहा – हाँ, शायद। लेकिन मैं जो भी विश्वास करती हूँ, उसमें विश्वास करने से मुझे कौन रोक लेगा? मैं एक अच्छी व्यक्ति बनी रहूँगी.. मैं मानवता का सम्मान करूँगी, मैं अपने माता पिता का आदर करूँगी…
मैंने कहा – तुमने टर्म्स एंड कंडीशन्स ठीक से नहीं पढ़े। तुम जिन भी बातों में विश्वास करती हो, वह तुमसे ले लिए जाएँगे। उसके बदले में तुम्हे एक नया सेट ऑफ बिलीफ दिया जाएगा। तुम्हें किन किन बातों में विश्वास करना है, यह तुम्हें मैं बताऊँगा। आवश्यक नहीं कि वे बुरे बिलीफ होंगे, हो सकता है कि उनमें कुछ अच्छे बिलीफ हों…पर वे तुम्हारी चॉइस नहीं होंगे।
उसने पूछा : लेकिन ऐसा कैसे होगा? क्या मेरा बिलीफ सिस्टम मेरे बौद्ध होने पर निर्भर है।
मैंने कहा – मान लो, नहीं है। तुम्हारा बिलीफ सिस्टम मान लो कि तुम्हारे एजुकेशन से आया, तुम्हारे माता पिता से आया, तुम्हारे वातावरण से आया। पर अपने बिलीफ सिस्टम को चुनने की स्वतंत्रता तो तुम्हें है। यह स्वतंत्रता किसी को अफगानिस्तान में है? किसी को मेडीएवल यूरोप में थी? लोगों को चर्च से स्वतंत्र विचार रखने पर जिन्दा जला दिया जाता था।
उसने कहा : नहीं! मुझे स्वीकार नहीं है। मुझे मेडिसिन का नॉबेल प्राइज नहीं चाहिए। मैं अपनी इस स्वतंत्रता को चुनूँगी।
अच्छा, मेडिसिन का नॉबेल प्राइज तो तुम्हें नहीं मिल रहा, इसलिए वह तो एक हाइपोथेटिकल चॉइस थी। अब एक प्रैक्टिकल चॉइस दे रहा हूँ…अगर तुम्हें इस स्वतंत्रता और जिन्दा रहने के बीच एक चीज को चुनना हो तो क्या चुनोगी?
वह थोड़ी चिन्ता में पड़ गयी? उसने पूछा – क्या यह एक रियल चॉइस है?
– हाँ, इतिहास में बहुत बार बहुत से लोगों को स्वतंत्रता और जिंदा रहने के बीच एक को चुनना पड़ा है। हमारे पूर्वजों ने इस चॉइस के बीच अपनी इस स्वतंत्रता को जिन्दा रहने के ऊपर चुना है, इसलिए आज हम स्वतंत्र हैं। अब बताओ तुम दोनों में से क्या चुनोगी?
उसने कहा – नहीं, मैं बुद्धिस्ट होना चुनूँगी। मुझे वह जीवन नहीं चाहिए।
अभी एक ट्विस्ट बाकी था। मैंने कहा – अच्छा, यह चॉइस अब मैं थोड़ा मॉडिफाई कर देता हूँ। मान लो, तुम्हारे पास पाँच या दस कोर बिलीफ हैं। तुम्हें कहा जाए, तुम बाकी सब रख लो, उनमें से एक छोड़ दो…बदले में तुम्हें एक चीज दी जाएगी, तो यह ऑफर तो तुम स्वीकार कर लोगी?
उसने कहा – हाँ, शायद कर लूँगी।
हम दोनों ने कहा – हाँ, यही हमारे साथ हो रहा है। यहाँ रहते रहते धीरे धीरे एक एक करके एक एक चीज छूटती जाती है। जैसे कि हमने पिछले दस वर्षों में अपने त्योहार नहीं मनाए हैं। तो जिस बात को जीवन से अधिक महत्व देते हैं, उस बात को थोड़ा थोड़ा करके खो देते हैं।
वर्षों बाद उस लड़की को अपने रिलिजन का महत्व समझ में आया। अगली छुट्टी में उसे भारत आना है, बोधगया जाना है, सारनाथ और कुशीनगर जाना है। भारत दुनिया की एक बहुत बड़ी जनसंख्या के लिए पुण्यभूमि है और भारत से मिली हुई सबसे बड़ी चीज है, जिसका आदर पूरी दुनिया करती है…वह है अपने विश्वासों को, विचारों को चुनने की स्वतंत्रता…।