वीर प्रसूता शस्य श्यामला भारत माता
सूरजभान सिंह
मैं वीरप्रसूता शस्य श्यामला भारत माता हूँ,
मातृभूमि के दीवानों के बलिदानों की गाथा हूँ।
उत्तर में देते, गिरिराज हिमालय पहरा,
दक्षिण में है मेरे, हिंद महासागर गहरा ।
फसलें लहलहातीं, पूर्वी पवन हिलोरों में,
और गर्म हवाएं तपाती हैं, रेतीले धोरों में।।
शीश पर मेरे विराजती है केसर की घाटी,
नाज है मेरा, राजपूताना की बलिदानी माटी।
प्रकृति की गोद में बसा है, सुंदर नैनीताल ,
बर्फीली पहाड़ियों का दृश्य है, जहां बेमिसाल।।
स्वाभिमान है मुझमें महारानी लक्ष्मीबाई का,
गूंज है मुझमें महाराणा प्रताप के शौर्य की।
जिसके आगे यहां सिकंदर भी हार गया था,
ललकार है मुझमें उस चंद्रगुप्त मौर्य की।।
मुझमें ऋषि-मुनि और योगिनियों का ध्यान है,
मुझमें वेदों और पुराणों का अथाह ज्ञान है।
मुझमें चाणक्य और विवेकानंद की बुद्धि है,
मुझमें माँ गंगा की निर्मल धाराओं की शुद्धि है।।
शक, हूण, पुर्तगाली, मुगल और अंग्रेजों ने
मेरा वैभव और संपदा लूटने की ठानी थी।
तब इस राष्ट्रयज्ञ में लाखों वीर सपूतों ने
निज शोणित धार की आहुति से दी कुर्बानी थी।।
मैं वीर प्रसूता शस्य श्यामला भारत माता हूँ,
मातृभूमि के दीवानों के बलिदानों की गाथा हूँ।