भारत की व्यवहारिक भाषा है हिन्दी

भारत की व्यवहारिक भाषा है हिन्दी

भारत की व्यवहारिक भाषा है हिन्दीभारत की व्यवहारिक भाषा है हिन्दी

जयपुर। मंगलवार को विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर ‘हिन्दी भाषा का महत्व और व्यवहारिक उपयोग’ विषय पर आभासी पटल के माध्यम से विश्व हिन्दी दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक डॉ. दीप कुमार मित्तल ने कहा कि आज इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, कानून आदि तकनीकी विषयों में भी हिन्दी माध्यम से अध्ययन को बढ़ावा मिला है। भारत में अब मेडिकल के क्षेत्र में भी हिन्दी माध्यम से अध्ययन करना संभव हुआ है। साथ ही इसी प्रकार के अन्य प्रयासों से आज हिन्दी विश्व की एक सशक्त भाषा बनाकर उभरी है।

डॉ. सतेन्द्र कुमार जैन, प्राकृत-अध्ययन-शोध-केन्द्र, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने हिन्दी की भाषिक अद्वितीयता और महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि स्वतंत्रोत्तर भारत में हिन्दी जन-सम्पर्क की भाषा के रूप में सरकार के द्वारा स्थापित की गई। हिन्दी भाषी प्रदेशों के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों के नागरिक भी हिन्दी का व्यवहार राष्ट्रीय स्तर पर सम्पर्क भाषा के रूप में करते हैं। आज भी, आम भारतीय नागरिकों को किसी भी विदेशी भाषा की तुलना में हिन्दी का प्रयोग करना अधिक सहज और सरल लगता है। हम हिन्दी को सशक्त और समर्थ बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज ने कहा कि आज अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी जिस सशक्त रूप में उभरी है, उसके लिए सभी भारतीयों ने सहयोगी एवं संयुक्त रूप से अनेक प्रयास किए हैं। इस दिशा में प्रयास करते हुए सन् 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण दिया। इससे अंतर्राष्ट्रीय जगत को आधिकारिक रूप से हिन्दी भाषा को जानने-समझने का अवसर मिला, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘विश्व हिन्दी सम्मेलन’ के आयोजन का सूत्रपात करके वैश्विक स्तर पर हिन्दी को बढ़ावा देने की दिशा में एक ठोस और सार्थक प्रयास किया।

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के शोधार्थी/विद्यार्थी अभिषेक और सिद्धान्त ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम संयोजिका बबीता ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। अपनी भाषा में मिले संस्कार हमारे बच्चों को विदेशों में भी भारतीय जीवन-मूल्यों से जोड़कर रखते हैं।

अंत में कार्यक्रम का संचालन कर रही डॉ. दर्शना जैन ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी से भारत के विचार को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग करने का आह्वान किया।

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