शरणार्थियों और घुसपैठियों से राष्ट्रों की पहचान पर गहरा संकट

शरणार्थियों और घुसपैठियों से राष्ट्रों की पहचान पर गहरा संकट

मीनाक्षी आचार्य

शरणार्थियों और घुसपैठियों से राष्ट्रों की पहचान पर गहरा संकट

आज विश्व में शरणार्थियों और घुसपैठियों से राष्ट्रों की पहचान पर गहरा संकट है। ऐसे में किसी भी देश के लिए समुदाय विशेष का तुष्टिकरण यदि उसी देश के लिए घातक साबित हो रहा है तो यह स्पष्ट बात है कि उस देश के नीति नियंताओं को अपनी नीतियों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।

इंसानियत के नाम पर हमारी आवाज हर उस बेसहारा, कमजोर या दुखी आत्मा के साथ रहती है जिसके पास कोई आसरा नहीं होता है और जो अन्याय और हालात का मारा होता है। लेकिन यही बेसहारा व्यक्ति जब सड़कों पर झुंड के साथ मिलकर  घर दुकानें जलाकर पूरे शहर को आतंकित करता है, तब भी हमारा समाज दो गुटों में बंट जाता है और ऐसे लोगों के ही समर्थन में आवाज उठाने लगता है। इसे लिब्रलिज्म कहकर राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बनाया जा रहा है।

आज यही हाल दुनिया के हर शहर गली मोहल्ले में धर्म के नाम पर हो रहा है और इसमें खास बात यह है कि ये दंगाई वे शरणार्थी हैं जिन्हें मानवता के नाम पर हर देश अपने यहां शरण दे रहा है। भारत में रोहिंग्या और यूरोपियन देशों में आईएसआईएस के आतंक से प्रभावित देशों के शरणार्थी अब हर उस देश को जलाने को तत्पर हैं जो इनके अच्छे भविष्य के लिए अपने घर के दरवाजे खोल देते हैं। पूरे यूरोप में आज आगजनी, लूट, हत्या, बलात्कार के आपराधिक मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण स्वीडन के जलते शहर हैं। स्वीडन यूरोप का पसंदीदा शांत देश माना जाता है। लेकिन आज उन मुस्लिम शरणार्थियों के कारण यह शांत देश जल रहा है जिन्हें मानवता के नाम पर वहां के राजनीतिक पार्टियों ने शरण दी।

स्वीडन की राजनीतिक पार्टियां मानव अधिकारों के नाम पर हर उस देशभक्त नागरिक की आवाज को दबा रही हैं जो सोशल मीडिया के माध्यम से इन मुस्लिम शरणार्थियों के कारण बढ़ते अपराध के विरोध में आवाज उठा रहे हैं। स्वीडन में अब इन घटनाओं की संख्या 34%  बढ़ गई है। स्वीडन में सरकारी तंत्र मुस्लिम जनसंख्या द्वारा किए गए अपराध को नस्लवाद की शक्ल नहीं देना चाहता है इसलिए पुलिस को सख्त हिदायत दी गई है कि वह बढ़ते अपराध में दंगाइयों, बलात्कारियों, हत्या लूट मार की घटनाओं में शामिल व्यक्ति के नाम को उजागर नहीं करेंगे।

मुस्लिम शरणार्थियों को शरण के साथ इन्हें ऐसे पदों पर नियुक्त किया जा रहा है जिनमें राजनीतिक पार्टी की  उदारवादी नीतियों का बखान किया जा सके। स्वीडन में नेशनल हेरिटेज बोर्ड के चेयरमैन एक पाकिस्तानी मूल के मोहम्मद को 2018 में बनाया गया था जिनका खुलेआम  केवल अपने धर्म के प्रति आवाज उठाना और अपनी संस्कृति रीति रिवाज के रक्षा के लिए मुखर होना आम बात हो गई है। राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम अपराधिक गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति को सिर्फ इसलिए माफ कर देना कि उसके मानवतावादी अधिकारों का हनन हो जाएगा आजकल आम बात हो गई है। स्वीडन में ही एक महिला द्वारा एक अपनी लड़की के बलात्कारी मुस्लिम व्यक्ति को माफ कर देना इसका जीता जागता उदाहरण है। निजी स्वार्थ राष्ट्र हित के आगे आना अब आम बात हो गई है।

मीडिया में मुस्लिम नाम को लिखना और नागरिकों द्वारा इनके लिए सहानुभूति दिखाना देश के लिए घातक होता जा रहा है।  स्वीडन में भी भारत के जैसे ही घटनाक्रम हो रहे हैं। वहां पर भी तथाकथित सेक्युलर मुखर हैं। वहां पर चर्च के पादरियों द्वारा भारत के धर्म गुरुओं की तरह मुस्लिमों की आवाज के लिए प्रखरता से बोलना अब आम बात हो गई है। स्वीडन में भारत की भांति कई पादरी अब पनप रहे हैं जो लव जिहाद के लिए लड़कियों के धर्म परिवर्तन का प्रखर रूप से समर्थन कर रहे हैं। लव जिहाद के द्वारा लड़कियों को प्रजनन फैक्ट्री की भांति इस्तेमाल किया जा रहा है।

यूरोपियन देशों में मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्ष 2010 से 2016 के बीच तुर्की से जर्मनी में पचास लाख और फ्रांस में तेइस लाख शरणार्थी आए हैं। ब्रिटेन में पंद्रह से बीस लाख पाकिस्तान मूल के नागरिक हैं। इटली में दस लाख शरणार्थी मोरक्को और अल्बीनिया से हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में हर साल लगभग छह हजार महिलाएं लव जिहाद के कारण मुस्लिम बन रही हैं। अमेरिका में बीस हजार महिलाएं हर वर्ष मुस्लिम पंथ में  परिवर्तित हो रही हैं। भारत में भी लव जिहाद की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन का क्रम भारत में चरम पर है। हिंदुओं को उन्हीं के मूल स्थान से  विस्थापित करना आम बात हो गई है। 1990 तक कश्मीर को हिंदू विहीन राज्य बना दिया गया।

किसी भी देश के लिए समुदाय विशेष का तुष्टिकरण यदि उसी देश के लिए घातक साबित हो रहा है तो यह स्पष्ट बात है कि उस देश के नीति नियंताओं को अपनी नीतियों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। आज भले ही पूरी दुनिया एक परिवार हो गई है, लेकिन फिर भी हर देश की एक अपनी पहचान और संस्कृति होती है। और हर देश को अपनी उस विरासत को बचाए रखने का अधिकार है। भारत सहित स्वीडन, नार्वे, ब्रिटेन के उदाहरण हमारे सामने हैं। एक कालखंड में इन राष्ट्रों की जमीन पर इस्लाम नामक पंथ को कोई जानता नहीं था, लेकिन आज परिस्थितियां इतनी विकट हो गई हैं तथाकथित लिबरल नीतियों और तुष्टिकरण के चलते इन शरणार्थी और घुसपैठियों के कारण देश के कई राष्ट्रों की सभ्यता और संस्कृति पर पहचान का संकट खड़ा हो गया है।

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