सात्विक मन व विचारों की शरीर को स्वस्थ रखने में बड़ी भूमिका है

सात्विक मन व विचारों की शरीर को स्वस्थ रखने में बड़ी भूमिका है

से.नि. ब्रिगेडियर मोहनलाल

सात्विक मन व विचारों की शरीर को स्वस्थ रखने में बड़ी भूमिका है 

हमारा शरीर प्रकृति का दिया हुआ अमूल्य उपहार है। इसे पूर्णतया स्वस्थ रखना ही इस जगत में प्रथम सुख है। हमारे शरीर में भगवान ने उपयुक्त प्रतिरोधक क्षमता भर रखी है, जो हमारी सभी बीमारियों से स्वतः ही लड़ सकती है। प्रसव के पश्चात् माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता 10 गुना बढ़ा देता है। इसके बाद इस प्रतिरोधक क्षमता को पर्याप्त मात्रा में अपने शरीर में बनाये रखना हमारा कर्तव्य है ताकि हमारी काया निरोगी रहे।

हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना है, जिनमें से मुख्य तत्व पानी है। अतः मुख्यतया पानी और अन्य शारीरिक तत्वों को सही मात्रा में तथा सही तरीके से उपयोग में लेना आवश्यक है। सूर्य नमस्कार, प्राणायाम व पूजा-प्रार्थना हमारे शरीर को निरोगी रखने में सहायक हैं। इसी तरह सुसंस्कारिक जीवन, सुव्यवस्थित जीवन शैली, सात्विक खान-पान, सात्विक विचार व व्यवहार आदि की भी हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग यानि सात्विक विचार और सात्विक भावनाएँ। अर्थात स्वस्थ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता, आध्यात्मिक प्राणशक्ति और आभामंडल इतना सक्षम हो कि हम किसी भी तरह की बीमारी, यहां तक कि महामारी से भी लड़ने में सफल हों। ये प्रतिरोधक स्रोत निम्न प्रकार हैं –
प्राणायाम :  जब तक श्वास चालू है तब तक शरीर में फेफड़ों को श्वास- प्रश्वास की शक्ति उत्तेजित होती है। प्राणायाम से हम अपनी श्वास- प्रश्वास की गति को यथाशक्ति नियंत्रित कर सकते हैं। ‘ऊँकार’ एक अनोखी ध्वनि है जो हमारी नाक में कंपन (नाइट्रिक ऑक्साइड) पैदा करती है जिसमें हर बीमारी के जीवाणुओं/बैक्टीरिया को समाप्त करने की शक्ति है। अतः प्रतिदिन प्राणायाम करना आवश्यक है। प्राणायाम से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, जिससे उदर रोगों का निवारण होता है और शरीर में प्रतिरोधक क्षमता भरपूर रहती है। अतः प्राणायाम शारीरिक स्वास्थ्य व आध्यात्मिकता का साधक है।

पूजा-प्रार्थनाः भगवान की पूजा हमारी आत्मा को शुद्ध करती है और चेतना जाग्रत करती है। पूजा प्रार्थना से हमें आदि शक्ति की कृपा प्राप्त होती है जिससे हमारा दुःख-दर्द दूर हो जाता है।

सेवा भावना व सकारात्मक सोच: दूसरों की सेवा व परमार्थ करने से सुसंस्कार विकसित होते हैं। दिल में सदा शुद्ध भावना रखना, दूसरों के दिलों से जुड़े रहना, स्वच्छ और सरल जीवन शैली बताना आवश्यक है। इससे अच्छी आदतें व सुसंस्कार विकसित होते हैं। हमारे चारों तरफ उपस्थित जीव-जंतु, पशु पक्षी, पेड़-पौधे आदि हमारे लिए आभामंडल बनाते हैं जो कि हमारी प्राण-शक्ति है। हमारा शरीर इस प्राण-शक्ति को ग्रहण करता है, जिससे हम स्वस्थ रहते हैं। अतः हमें इन जीवों की सेवा करनी चाहिए। इस तरह दूसरों को सदा बेहतर महसूस कराना, बुरी स्थिति में भी अच्छाई देखना, हर समस्या का समाधान ढूंढना, अपने साथियों से सदा गुण हासिल करना आदि सकारात्मक विचार हैं। सकारात्मक सोच से मनुष्य सदा खुश रहता है वह सुखी रहता है। अतः सकारात्मक सोच व परमार्थ की भावना से हम स्वस्थ और सुखी रहते हैं।

हमारा आहारः उपयुक्त आहार का नियमित रूप से सेवन करना और अपने उदर को अंदर से साफ रखना हमारे स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। शरीर जितना अंदर से साफ होगा  उसकी प्रतिरोधक क्षमता उतनी अच्छी होगी और शरीर स्वस्थ रहेगा। हमने अपनी आदतें बिगाड़ ली हैं। स्वाद के लिए तामसिक व हानिकारक आहार का सेवन करना, नशा करना आदि अपना लिया है। जिनके कारण हमारा पेट दिन-रात जहर भरा आहार पचाने में ही व्यस्त रहता है और अंदर से पेट को साफ करने और कीटाणुओं को मारने का समय ही नहीं मिलता। परिणामत: शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है और 35-40 वर्ष के युवाओं में मोटापा आ जाता है। हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसलिए हमें अपनी आदतें बदलनी चाहिए। जैसे –

घर का भोजन खाएं। भोजन पकने के बाद दो घड़ी (यानी 48 मिनट) के अंदर खा लें। भोजन करते समय बोलें नहीं व प्रसन्न अवस्था में भोजन करें। यात्रा के समय या कार्यस्थल पर टिफिन ले जाने की आदत डालें। बाहर का आहार लेना पड़े तो फल जूस या अन्य आहार लें। नाश्ता हल्का लें या नाश्ते में मौसम में आने वाले फल व सब्जियां ही खाएं। सूर्य उदय से ढाई घंटे तक हमारी जठराग्नि तीव्र होती है और स्नान करने के बाद पित्त बढ़ता है जिससे जठराग्नि बहुत तीव्र हो जाती है। अतः नाश्ता सुबह 9.30 बजे तक स्नान करने के बाद कर लें। एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच 4 से 8 घंटे का अंतराल रखें। हल्का व फलप्रद खाना जल्दी पचता है और अन्नप्रद खाना देर से पचता है। बीच में कुछ नहीं खायें। सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खायें। दिन में सिर्फ एक बार यानि दिन के समय अनाज का आहार लें और अनाज से 4 गुना अधिक सब्जी, दाल, दही, सलाद का उपयोग करें। भोजन करते समय डकार हमारे भोजन के पूर्व और हाजमे की संतुष्टि का संकेत है। शाम का खाना हल्का लें और सूर्यास्त से पहले लें यदि सूर्यास्त के बाद खाना है तो पहले एक प्लेट सलाद या फ्रूट खायें और बाद में हल्का भोजन सोने के 2 घंटे पहले लें। शाम के भोजन के बाद खुली हवा में घूमें।
भोजन बनाने में एलुमिनियम का बर्तन, प्रेशर कुकर व माइक्रोवेव का उपयोग नहीं करें। भोजन बनाने में कच्ची घाणी का शुद्ध तिल्ली या सरसों या मूंगफली का तेल प्रयोग करें। रिफाइंड ऑयल काम में न लें। खाने में देसी घी का ही इस्तेमाल करें। विश्व की सबसे महंगी दवा लार है जो प्रकृति ने हमें अनमोल दी है इसे पान या तंबाकू के साथ व्यर्थ नहीं करें।

उपवासः ‘‘लंगनम् परम औषधि’’, उपवास करने से पेट की सफाई हो जाती है। अतः महीने में कम से कम दो उपवास करें। हमारे पूर्वज एकादशी व पूर्णिमा के दिन उपवास करते आये हैं। इसके अतिरिक्त यदि हम सूर्यास्त से पहले शाम का खाना खाएं और नाश्ता सुबह 9.30 बजे से पहले करें तो 15-16 घंटे के दौरान खाना पच जाएगा और पेट की सफाई होने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहेगी।

जल सेवाः हमारा शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, उनमें पानी बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि शरीर में पानी की मात्रा 70 प्रतिशत होती है। हमारे शरीर को, मौसम के अनुकूल 3 से 4 लीटर पानी की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। महर्षि बाग्भट्ट कहते हैं, सदा गुन-गुना पानी पियें। गर्मियों में मटके का पानी पियें। पानी हमेशा घूंट-घूंट कर के नीचे बैठ कर पियें। सुबह उठते ही दो से तीन गिलास गुन-गुना पानी पियें, हमारे बासी मुंह की लार अमृत के समान है, अतः घूंट-घूंट पानी पीते समय लार को साथ पियें। बैड टी पहले न पियें। एक ग्लास पानी नहाने से पहले पियें। एक ग्लास पानी खाने के 40 मिनट पहले पियें। खाना खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पियें। खाना खाने के 60 – 90 मिनट बाद एक गिलास पानी पियें।सोने से पहले एक गिलास पानी पियें।

दिनचर्याः संतुलित जीवन के लिए आवश्यक है कि हमारी दिनचर्या भी संतुलित हो। इसके लिेए ब्रह्म मुहूर्त में उठें, प्राणायाम करें। 6-8 की नींद लें। सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ रखें व बाईं करवट सोयें।
’दिन में भी आराम का समय निकालेंः पूरा दिन मशीन की तरह काम करने के बजाय जब भी समय मिले तब आधा या एक घंटा झपकी ले लीजिए। उठने के बाद आनंद महसूस होगा।

हँसी-खुशी का वातावरण बनाए रखेंः हँसने से गुस्सा गायब हो जाता है और खुशी छा जाती है। अतः जिंदादिल मित्रों से मिलिये, बच्चों के साथ खेल-खेल में हँसिये, परिवार में हँसी-खुशी का वातावरण बनाए रखें। हँसी-खुशी के वातावरण की हमेशा स्वस्थ रहने में अहम भूमिका है।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

1 thought on “सात्विक मन व विचारों की शरीर को स्वस्थ रखने में बड़ी भूमिका है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *