शास्त्री के हत्यारों को फाँसी दो..!

शास्त्री के हत्यारों को फाँसी दो..!

डॉ. ऋतुध्वज सिंह

शास्त्री के हत्यारों को फाँसी दो..!शास्त्री के हत्यारों को फाँसी दो..!

बचपन से आज तक 2 अक्टूबर को एक साथ दो चित्र विद्यालयों और प्रतिष्ठानों में लगते देखे हैं। दोनों में उभय भाव यही रहा कि कोई नेता जी या कोई मास्टर जी आते थे, गांधी का बखान करते थे, शास्त्री जी को प्रणाम करते थे, गोडसे और संघ को जी भर गरियाते थे, फिर दो फूल चढ़ा कर चले जाते थे। बचपन में स्कूल में बताशा या कभी मुर्रा मिल जाता था और उसके अंतिम निवाले के साथ ही सब भूल, नेकर में पीछे हाथ पोंछ, घर की ओर दौड़ पड़ते थे। ना तो कभी किसी से पूछा और ना ही किसी ने बताने की तकलीफ की कि यह दूसरी फ़ोटो में दिखने वाला ठिगना सा व्यक्ति गांधी जी के साथ क्यों है? क्या यह भी राष्ट्रपिता है, छोटा राष्ट्रपिता है या इसने भी किसी नेहरू को अपना नाम दिया था या फिर साउथ अफ़्रीका में बर्फ़ की सिल्लियों पर पटक के मारे जाने और बैरिस्टरी छूट जाने के बाद प्रतिकार हेतु शस्त्र उठाने का ख़तरा मोल न लेकर अहिंसा को विवशता का अटूट अस्त्र बना कर, रंग भेद का आश्रय ले, आन्दोलन करने के कारण उच्च गरिमा प्राप्त कोई महात्मा है, जिसे किसी भी क़ीमत पर अहिंसा की हार स्वीकार नहीं थी, चाहे उसके लिए देश के टुकड़े ही क्यों न करने पड़ें। ….या फिर कोई ऐसा नि:स्वार्थ देश सेवक है, जिसने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया हो तथा देश देश घूम कर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सहयोग की मिन्नतें की हों, न केवल मिन्नतें बल्कि एक बड़ा सशस्त्र सैन्य संगठन तैयार कर दो सौ वर्षों से जड़ें जमाए बैठे अंग्रेज़ों के सिर पर चढ़ आया हो एवं देश का एक बड़ा हिस्सा मुक्त करा लिया हो।…. या फिर कोई ऐसा नेता है, जो गांधी जी को बड़ा प्रिय हो, जिसने भगत सिंह जैसे देश के नौनिहालों को इसलिए फाँसी पर झूलने दिया हो क्योंकि उसने अंग्रेज़ों को डराने के  लिए असेंबली में बम फोड़ा था।

जो भी हो, यह प्रश्न आज भी निरुत्तर है कि आखिर क्यों इस व्यक्ति की फ़ोटो महात्मा गांधी जी के पार्श्व में लगाने की परम्परा चल पड़ी। मुझे यह पूरा विश्वास है कि मेरी इस धृष्टता को क्षमा नहीं किया जाएगा। लेकिन मुझे यह कहने में संकोच नहीं हो रहा है कि शास्त्री जी को यह सम्मान उस राजनीतिक षड्यंत्र को ढंकने का सफल प्रयास है, जिसके द्वारा उस प्रधानमंत्री को, जिसने उस समय की दो महाशक्तियों को यह कह कर दरकिनार कर दिया कि हम जीती हुई भूमि नहीं देंगे, चाहे मुझे इसके लिए अपने प्राण ही क्यों ना देने पड़ें। एक राजनीतिक दबाव में ताशकन्द समझौता तो हुआ लेकिन शास्त्री जी नहीं रहे। आने वाली सरकारें आश्वासन भी न दे सकीं कि शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्योद्घाटन करने का प्रयास भी किया जाएगा।

मेरी दृष्टि में गांधी और शास्त्री में अंतर बस इतना है कि एक ने देश की अखंडता के लिए मृत्यु का आलिंगन कर लिया और दूसरे ने मृत अहंकार के शव की रक्षा हेतु देश को तोड़ दिया और इस देश की विडम्बना तो देखिए, हमने एक के हत्यारे को तो फाँसी दे दी, लेकिन दूसरे की हत्या को हृदयाघात बताकर हत्यारों पर अभियोग तक नहीं चलाया।

शास्त्री जी की इस जयंती पर कुछ प्रश्न आप सबसे पूछता हूँ, जो बार बार मेरे मन में आते हैं-

  • किसने कराई शास्त्री जी की हत्या?
  • क्यों कराई?
  • किसको लाभ हुआ?
  • हत्यारा बचाया क्यों जाता रहा है?
  • और अंतिम, वह भारत का था, पाकिस्तान का था, अमेरिका का था या रूस का था?

यदि उत्तर मिल जाएं तो हमें भी बताइएगा। दो फूल तो बहुत चढ़ा लिए।

वन्दे भारत मातरम।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

#लालबहादुरशास्त्रीजयंती

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