पैंतीस टुकड़ों में कटा, श्रद्धा का विश्वास….

पैंतीस टुकड़ों में कटा, श्रद्धा का विश्वास

पैंतीस टुकड़ों में कटा, श्रद्धा का विश्वासपैंतीस टुकड़ों में कटा, श्रद्धा का विश्वास

मत बहको बेटियो, कुल को समझो ख़ास।
पैंतीस टुकड़ों में कटा, श्रद्धा का विश्वास।

ना भरोसा कीजिए, सब पर आंखें मींच।
स्वर्ण मृग के भेष में, आ सकता है मारीच।

मां बाप के हृदय से, गर निकलेगी आह।
कभी सफल होगा नहीं, ऐसा प्रेम विवाह।

आधुनिकता के समर्थको, इतना रखना याद।
बिन मर्यादा आचरण, बिगड़ेगी औलाद।

जीवन स्वतंत्र आपका, करिये निर्णय आप।
पर ऐसा कुछ न कीजिए, मुंह छिपाएं मां बाप।

घर आंगन की गौरैया, कुल की इज्जत आप
सावधान रहना जरा, षड्यंत्रों को भांप।

बॉलावुड की गंदगी ने, खत्म किये संस्कार।
जालसाज अच्छे लगें, बुरा लगे परिवार।

जब कभी तन पर चढ़े, अंधा इश्क खुमार।
इस दरिदंगी को याद तुम, कर लेना इक बार।

नारी तुम श्रद्धा रहो, न घर उपयोगी चीज।
फिर किस की औकात जो, काट रखें तुम्हें फ्रीज।

संस्कारों की सराहना, कुकृत्य धिक्कारो आज़।
आने वाली पीढ़ियां, करेंगी तुम पर नाज़।

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