श्रम संहिताओं का एकीकरण : धूल की परतें हटाने का सराहनीय प्रयास

श्रम संहिताओं का एकीकरण : धूल की परतें हटाने का सराहनीय प्रयास

निवेदिता

श्रम संहिताओं का एकीकरण : धूल की परतें हटाने का सराहनीय प्रयास

यदि पुराने बस्ते, पत्रावली अथवा पुस्तकों को लंबे समय तक न झाड़ा जाए तो उन्हें भी चमकीली सी सिल्वर फिश शनैः शनैः नष्ट कर देती हैं अथवा पीले पड़ते पन्नों का स्वयमेव क्षरण हो जाता है। ठीक यही बात विधि संहिताओं पर लागू होती है। समय रहते यदि इनमें यथा आवश्यक संशोधन न किया जाए तो ये अर्थ खोने लगते हैं। वर्तमान केन्द्र सरकार ने पुराने पड़ चुके ऐसे अनेक कानून निरस्त किए हैं जो आज समाज में अर्थहीन थे। इस क्रम में समस्त श्रम कानूनों को मात्र चार श्रम संहिताओं में समाहित करने का कार्य गत 6 वर्ष से किया जा रहा है। ऐसे कुल 44 श्रम कानून थे, जिनको संशोधन/ समाहित करके समयानुकूल बनाने का कार्य हाथ में लिया गया। इसके अंतर्गत 12 श्रम कानून निरस्त किए गये। अब 29 श्रम संहिताओं का 4 संहिताओं में एकीकरण किया गया है। इनमें एक वेतन संबंधी संहिता वर्ष 2019 में संसद द्वारा पारित की गई, जिसमें 50 करोड़ श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी तथा समय पर वेतन का अधिकार दिया गया।

इसी कड़ी में हाल ही, भारत सरकार ने तीन और श्रम संहिताओं को पारित करवा कर अपना महत्वपूर्ण दायित्व निभाया है। इसके अन्तर्गत व्यवसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संहिता विधेयक, 2020 में 13 श्रम कानून, औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020, में तीन श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 में नौ श्रम कानून समाहित किए गये हैं।

देश की संसद ने श्रमिकों और उद्योग जगत की पारस्परिक आवश्यकताओं को समझते हुए जिन तीन श्रम संहिताओं को पारित किया है, वे इस दृष्टि से परस्परानुकूल हैं कि न सिर्फ श्रमिकों का हित निर्वहन करेंगी वरन् उद्योगों के विकास की गति को भी त्वरित करेंगी। यह वस्तुतः श्रम सुधार का वह स्वप्न है जो श्रमिकों को सुरक्षित वातावरण, श्रमिक कल्याण और समयबद्ध विवाद निस्तारण प्रणाली उपलब्ध कराने के लिए संजोया गया था।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के स्वदेशी चिंतन पर आधारित अर्थव्यवस्था की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए श्रम संहिताओं में इस तरह के संशोधन किए गये हैं जो 50 करोड़ से अधिक संगठित, असंगठित तथा स्वनियोजित कामगारों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी देते हैं और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

महिलाओं को पुरुषों की तुलना में समान वेतन की सुनिश्चतता महिला श्रम शक्ति के सम्मान को स्थापित करेगी।भवन निर्माण कामगारों के लिए ईपीएफओ, ईएसआई, मातृत्व लाभ, ग्रेच्युटी तथा असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ श्रमिकों को ध्यान में रखते हुए ‘सामाजिक सुरक्षा कोष’ के घेरे को विस्तृत किया गया है।

सामाजिक सुरक्षा के समस्त लाभ जैसे मृत्यु बीमा, दुर्घटना बीमा, पेंशन इत्यादि के लिए योजनाएं बनाई जा सकेंगी।मीडिया जैसे प्रभावशाली क्षेत्र में श्रमजीवी पत्रकार की परिभाषा में आने वाले अभी तक प्रिंट के ही पत्रकार होते थे, जिसका विस्तार कर डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी जोड़ा जाएगा। देश की कृषि अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले बागान श्रमिक अभी तक ईएसआई की सुविधा से वंचित थे, उन्हें अब यह लाभ प्राप्त हो सकेगा।

प्रवासी श्रमिक किसी संकट में फंसते हैं तो उनको सहायता के लिए हेल्पलाइन की शुरुआत एक आवश्यक चरण था जिसको लागू किया जाएगा। आईआरसंहिता में छंटनी/क्लोजर/जबरन छंटनी में थ्रेशहोल्ड को बढ़ाकर सौ से तीन सौ कर दिया गया है। इससे बड़ी फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ेगी और स्वतः रोजगार के अवसरों का सृजन होगा।

ट्रेड यूनियन की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए इन्हें संस्थान, राज्य और केन्द्र के स्तर पर मान्यता मिलेगी। साथ ही प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए ऐसे सभी मजदूर जो एक राज्य से दूसरे राज्य में आते हैं और जिनका वेतन 18 हजार रुपये से कम है, उन्हें प्रवासी माना जाएगा और उन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल पाएगा। इन सुधारों से जहां श्रमिकों के अधिकार सुदृढ़ हो रहे हैं वहीं, उद्योगों के लिए सरल अनुपालन की व्यवस्था की गई है। अब उद्योग लगाने के लिए विभिन्न श्रम कानूनों के अंतर्गत पृथक् पंजीकरण अथवा लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी। इसके लिए समयबद्ध और ऑनलाइन प्रक्रिया के प्रावधान किए जा रहे हैं।

गत छह वर्ष में सरकार द्वारा श्रम सुधार की दिशा में किए जा रहे कार्य से निस्संदेह ‘ श्रमेव जयते ‘ का घोष क्रियान्वित होगा ऐसी आशा दिखाई देती है।

(लेखिका स्तम्भ लेखन, सामाजिक सुधार और जनजागरण के क्षेत्र में सक्रिय हैं )

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