संघ में क्यों मनाया जाता है ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’?
2 जून 2020
– वीरेंद्र पांडेय
संघ में शिवाजी के राज्याभिषेक के दिन को शिवसाम्राज्य दिन नहीं बल्कि हिंदू साम्राज्य दिवस कहा जाता है। डॉक्टर साहब कहा करते थे कि हमारा आदर्श तो तत्व है, भगवा ध्वज है, लेकिन कई बार सामान्य व्यक्ति को निर्गुण निराकार समझ में नहीं आता। उस को सगुण साकार स्वरूप चाहिये और व्यक्ति के रूप में सगुण आदर्श के नाते छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का प्रत्येक अंश हमारे लिये दिग्दर्शक है।
संघ कार्य 94 वाँ वर्ष पार करके 95 वें वर्ष में चल रहा है। इतना लम्बा समय राष्ट्र और समाज कार्य करते करते निकल गया है। ऐसे में उन विचारों का पुनः स्मरण करना चाहिए जिनके आधार पर संघ के विभिन्न कार्यक्रमों का निर्माण हुआ है। क्योंकि समय के साथ पुनर्स्मरण नहीं करते रहने पर कई जानकारियां लुप्त हो जाती है। यह मानव का स्वभाव है।
हिंदू साम्राज्य दिवस ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दिवस है। संघ ने इस उत्सव को अपना उत्सव क्यों बनाया इसका आज के वातावरण में जिन्हें ज्ञान नहीं है, उन के मन में कई प्रश्न आ सकते हैं। जैसे कि देशभर में बहुत से राजा है, जिनकी त्याग, बलिदान देश के लिये अमूल्य है। उनमें से शिवाजी ही क्यों!
छत्रपति शिवाजी महाराज के समय की परिस्थिति अगर हम देखेंगे तो ध्यान में ये बात आती है कि अपनी आज की परिस्थिति और उस समय की परिस्थिति में बहुत समानता है। आत्मविस्मृत समाज, बिखरा हुआ समाज, संस्कृति बिभेद चहुँ ओर दिखाई पड़ता था। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय तक इस देश के धर्म, संस्कृति व समाज का संरक्षण कर हिंदुराष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के जो प्रयास चले थे। वे बार बार विफल हो रहे थे। अनेकों राजाओं का संघर्ष जारी था। संतों के द्वारा समाज में एकता लाने के प्रयास किए जा रहे थे। जन समूह को संगठित करने और उनकी श्रद्धाओं को बनाये रखने के लिये अनेक प्रकार के प्रयोग चला रहे थे। कुछ तात्कालिक तौर पर सफल भी हुए। कुछ पूर्ण विफल हुए। लकिन जो सफलता समाज को चाहिये थी वह कहीं दिख नहीं रही थी। इन सारे प्रयोगों के प्रयासों की अंतिम सफल परिणति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक है। यह विजय केवल शिवाजी महाराज की विजय नहीं थी। अपितु हिंदू राष्ट्र के लिये लड़ने वालों की शत्रुओं पर विजय है।
शिवाजी के प्रयत्नों से तात्कालिक हिंदू समाज के मन में विश्वास के भाव का निर्माण हुआ। समाज को आभास हुआ कि पुनः इस राष्ट्र को सांस्कृतिक रूप से जोड़ते हुए सर्वांगीण उन्नति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं। कवि भूषण जो कि औरंगजेब के दरबार में कविता का पाठ करते थे, शिवाजी की कृति पताका को देखते हुए वह औरंगजेब के दरबार को छोड़कर शिवाजी के दरबार में गायन को उपस्थित हुए।
शिवाजी महाराज औरंगजेब के दरबार से छूट कर निकल आये और फिर से संघर्ष कर के उन्होंने अपना सिंहासन बनाया। उसका परिणाम यह हुआ कि देश भर में अनेकों राजा आपसी कलह भूल कर एकजुट होने लगे। राजस्थान के सब राजपूत राजाओं ने अपने आपस के कलह छोडकर दुर्गादास राठौर के नेतृत्व में अपना दल बनाया। और शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के पश्चात कुछ ही वर्षों में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न की कि सारे विदेशी आक्रांताओं को राजस्थान छोडना पडा।इसलिए संघ में इस दिन को शिवसाम्राज्य दिन नहीं बल्कि हिंदू साम्राज्य दिवस कहा जाता है। डॉक्टर साहब कहा करते थे कि हमारा आदर्श तो तत्व है, भगवा ध्वज है, लेकिन कई बार सामान्य व्यक्ति को निर्गुण निराकार समझ में नहीं आता। उस को सगुण साकार स्वरूप चाहिये और व्यक्ति के रूप में सगुण आदर्श के नाते छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का प्रत्येक अंश हमारे लिये दिग्दर्शक है। उस चरित्र की, उस नीति की, उस कुशलता की, उस उद्देश्य के पवित्रता की आज आवश्यकता है। इसीलिए संघ ने इस ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को, शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के दिन को हिंदू साम्राज्य दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया था।
इसीलिये आज की जैसी परिस्थिति में स्वयंसेवक शिवाजी महाराज के कृतत्व, उनके गुण, उनके चरित्र के द्वारा मिलनेवाले दिग्दर्शन को आत्मसात कर, समाज जीवन के लिये अनुकरणीय बनें, यही संघ का उद्देश्य है।
(लेखक सहायक आचार्य एवं शोधकर्ता हैं)