संघ अपनी स्थापना के समय से ही समरसता के लिए काम कर रहा है- सुनील आंबेकर

संघ अपनी स्थापना के समय से ही समरसता के लिए काम कर रहा है- सुनील आंबेकर

संघ अपनी स्थापना के समय से ही समरसता के लिए काम कर रहा है- सुनील आंबेकरसंघ अपनी स्थापना के समय से ही समरसता के लिए काम कर रहा है- सुनील आंबेकर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर क्या सोचता है, सामाजिक समरसता को लेकर संघ का अभियान कितना आगे बढ़ा है, क्या देश में मुसलमान खतरे में हैं – ऐसे अन्य विषयों पर पर संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर से नवभारत टाइम्स की विशेष संवाददाता ने बातचीत की। बातचीत के अंश –

संघ सामाजिक समरसता पर काम करता रहा है। इस दिशा में आप लोग कितना आगे बढ़े हैं?

संघ अपनी स्थापना से ही इस दिशा में काम कर रहा है। संघ ने शुरू से ही कहा है कि सारे हिन्दू एक हैं। पहले दिन से ही संघ में जो भी शाखा लगी या शिविर हुए, वहां जाति के आधार पर न कोई भेदभाव है और न ही कोई जाति के बारे में पूछता है। यह व्यवस्था संघ में लगातार चल रही है। संघ व्यवस्था से जो भी नेटवर्क बन रहा है, वह तमाम भेदभावों से ऊपर उठकर बन रहा है। समरसता के प्रयासों का ही परिणाम है कि अब समाज के हर वर्ग से भेदभाव समाप्त करने के लिए लोग निकल रहे हैं। हर जाति-समुदाय से ऐसे लोग आ रहे हैं। यह नहीं कह सकता कि सारे प्रश्नों का समाधान हो गया, लेकिन हम उस स्थिति तक पहुंचे हैं कि एक साथ बैठकर बात करें और समाधान निकालें। यह सब समाज के माध्यम से ही हुआ है। यह और आगे बढ़ेगा।

देश में अमरावती और उदयपुर जैसी घटनाएं देखकर क्या लगता है? क्या सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव को लेकर बहुत काम किए जाने की जरूरत है?

हम एक ही देश के लोग हैं, चाहें हिन्दू हों या मुस्लिम। सरसंघचालक जी हमेशा कहते हैं कि हमारे पूर्वज भी एक हैं, हमारा डीएनए भी एक है। पूजा करने की पद्धति बदल जाने से किसी का राष्ट्र नहीं बदल जाता। सकारात्मक विषयों पर संघ जागरण करता है। जब भी कोई अलगाव की घटना होती है तो उसका संवैधानिक तरीके से निषेध करना चाहिए। हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिमों को भी करना चाहिए, क्योंकि अलगाव न किसी समाज के हित में होता है और न ही देश के हित में।

कई बार ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास होता है या ऐसा वातावरण बनता दिखता है कि देश में मुस्लिम सुरक्षित नहीं हैं। इसे आप कैसे देखते हैं?

भारत की परंपरा में है कि यहां सारी पूजा पद्धतियां दुनिया में सबसे अधिक सुरक्षित हैं। यह भारत की परंपरा है, भारत के हिन्दुओं की परंपरा है। भारत के अधिकतर लोग इसी बात को मानते हैं और इसी बात पर भारत लगातार आगे बढ़ रहा है। इसी बात पर लगातार कायम रहते हुए भारत आगे बढ़ेगा।

जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग कई सांसद करते रहे हैं, संघ का क्या मानना है?

पूरी दुनिया में और हमारे देश में भी इस बात पर सहमति है कि सृष्टि में जितने भी उपलब्ध संसाधन हैं, उसी हिसाब से जनसंख्या रहने से सब सुखी रह सकते हैं। जनसंख्या प्रबंधन को लेकर हमारे देश में भी सभी लोगों की सहमति है। यह पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा है और यह सर्वसम्मति का ही मुद्दा है। अब इसे कैसे करना है, कानून से करना है, लोगों को जागरूक करके करना है, ये सब सरकार के विषय हैं। संघ जनजागृति का काम कर रहा है कि हमें संतुलन को ध्यान में रखना चाहिए।

संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होने वाले हैं। क्या किसी कार्यक्रम की योजना है?

2025 में संघ को 100 साल पूरे हो रहे हैं। कार्यक्रम को लेकर कोई योजना अभी नहीं बनाई है। लेकिन शताब्दी वर्ष में कार्य विस्तार की योजना है। अभी संघ की शाखाएं देश में 55 हजार जगहों पर होती हैं, हमारा लक्ष्य एक लाख जगहों तक पहुंचने का है। हर शाखा इसके लिए प्रयास करेगी कि अपने आसपास के क्षेत्र में जहां शाखाएं नहीं हैं, वहां शुरू करें। जहां स्वयंसेवक हैं पर शाखाएं नहीं हैं, वहां भी शाखा शुरू करेंगे। लोगों की सुविधा के हिसाब से साप्ताहिक मिलन भी शुरू कर रहे हैं। हाईवे के पास के गांवों में भी शाखाएं शुरू करने का काम कर रहे हैं।

संघ के प्रचारक बीजेपी के माध्यम से राजनीति में भी भूमिका निभाते दिखते हैं। लेकिन सेविका समिति की प्रचारिकाएं राजनीति में नहीं दिखतीं। ऐसा क्यों? क्या कोई महिला प्रचारिका भी बीजेपी में संगठन मंत्री हो सकती है?

जब महिला को राष्ट्रपति बना सकते हैं, मुख्यमंत्री बना सकते हैं तो यह कौन सी बड़ी बात है। हर संगठन अपनी रीति-नीति के लिए स्वायत्त है। सारे संगठन अपनी सुविधा, आवश्यकता और स्थिति के हिसाब से काम करते हैं।

घर-घर तिरंगा अभियान में क्या संघ भी कोई भूमिका निभा रहा है?

यह सारे देश का अभियान है। जितने भी कार्यक्रम देश भर में होंगे, संघ के स्वयंसेवक उसमें सहभागी होंगे। सरकारी कार्यक्रमों में संघ के स्वयंसेवक सहयोग करेंगे। जो कार्यक्रम समाज की अलग-अलग संस्थाओं के माध्यम से होंगे, उनमें भी स्वयंसेवक शामिल होंगे। संघ के स्वयंसेवक स्वयं भी कई संस्थाएं चलाते हैं, वे भी कई कार्यक्रम आयोजित करेंगे।

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