राम के आदर्शों को स्थापित कर हिन्दू समाज के स्व को जगाने वाले संत गोस्वामी तुलसीदास

राम के आदर्शों को स्थापित कर हिन्दू समाज के स्व को जगाने वाले संत गोस्वामी तुलसीदास

राम के आदर्शों को स्थापित कर हिन्दू समाज के स्व को जगाने वाले संत गोस्वामी तुलसीदाससंत गोस्वामी तुलसीदास : राममंदिर निर्माण शुभारम्भ दिवस पर पावन स्मरण

गोस्वामी तुलसीदास का युग कठिन युग था। लोग गरीबी, भुखमरी, अकाल तथा सामंती व्यवस्था से पीड़ित थे। तुलसीदास यह सब देखकर बहुत व्यथित थे। रमेश कन्तल ‘मेघ’ द्वारा संकलित ग्रन्थ में तुलसी की व्यथा ध्यातव्य है: “अकाल, बेरोजगारी और बेदखली की वजह से किसान और भिखारी दुबले शरीर के (कृश गात) रोटी के लिए बिलबिलाते फिरते थे। उनकी सारी पूँजी झोपड़ी में एक खुरपा और घास बाँधने की जाली ही थी (कवितावली,7/46)। वह नंगे पैर, पेट खलाये और मुँह बाये देश-देश का तिरस्कार सहन करता फिरता था। उसकी गरीबी दुःसह-दुःखद और भयावह थी। वह घास-फूस की शय्या पर सोता था और झीने खेस का ओढ़ना ओढ़ता था (कवितावली,7/125)। ऐसी आर्थिक दशा में भिखारी ही भिखारी हो गए थे, जो कुत्ते कहलाकर खाने के कौर माँगते थे (कवितावली,7/26)। खेतों के दास कृषिदास थे। वे मालिक के टुकड़े खाकर रहते थे। वे बिना मोल बिक जाते थे, उनके उतरे वस्त्र पहनते थे या बची जूठन खाते थे (गीतावली, 5/30) / दास, स्वामी के पाँव की जूतियों को ही सबसे बड़ा सहारा मानता था। (विनय पत्रिका, 209)। गुलाम और किसान जब सामन्तों की बेगार में पड़ जाते थे तब कठिनाई से छूट पाते थे (विनय पत्रिका, 189)। ऐसे किसानों, बेखेतिहर मजूरों, गुलामों, बेगार में फँसे लोगों के मालिक या स्वामी बहुधा निर्दय राजा और क्रूर स्वामी होते थे (कवितावली,7/12)। किसानी, भीख, व्यापार, चाकरी, जीविका कुछ भी मिलना दुर्लभ था (कवितावली, 7/96-97)। शिव और अन्नपूर्णा तक मानो दरिद्रों के देवता हो गए थे।

सारा समाज पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा हुआ आर्थिक और सामाजिक रूप से असहनीय दुःख पा रहा था। किन्तु, राजा-महाराजाओं और सामन्तों के सुख, ऐश-आराम पर कोई असर नहीं था। तब मुगलों का शासन था, समाज की भक्ति राज्य की ओर होती जा रही थी। ऐसे में व्यथित तुलसीदास ने राम के आदर्शों को स्थापित करने का बीड़ा उठाया। समाज के बुझे मनों में ऊर्जा के संचार के लिए उन्होंने श्रीरामचरित मानस की रचना की।

इस्लामिक शासन के समय समाज के मन में भय व्याप्त था, लेकिन तुलसी के आदर्श राजा श्रीराम थे। सभी स्थानों पर वे राजा रामचन्द्र की जय का जयकार लगाते थे।

अकबर सभी सम्प्रदायों के विशिष्ट लोगों को आगरा बुलवाता था। उसने गोस्वामी तुलसीदास को भी दरबार में मंसबदारी देने के लिए आमंत्रित किया। इस कार्य के लिए स्वयं राजा टोडरमल गोस्वामी तुलसीदास को आमन्त्रित करने के लिए गए, किन्तु तुलसीदास ने इस आमंत्रण को ठुकरा दिया। वे लगातार हिन्दू समाज को मुगल दरबार से दूर ‘राम के दरबार’ से जोड़ने का काम कर रहे थे। वह कहते थे कि रघुवीर का दरबार इस धरती के राजाओं के दरबार से बहुत ऊँचा है। मुगल दरबार में जाने के बजाय गोस्वामी तुलसीदास ने अकबर को एक दोहा लिखकर भेज दिया :
हम चाकर रघुवीर के पट्यौ लिख्यौ दरबार।
तुलसी अब का होहिंगे नर के मनसबदार॥

अर्थात् ‘हम तो राम के सेवक हैं। उनके दरबार में हमने पट्टा लिख दिया है (कि जीवन भर उन्हीं की सेवा करेंगे)। ऐसी स्थिति में अब हम मनुष्य के मंसबदार कैसे हो सकते हैं?’ दिल्ली के दरबार से उन्हें किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं थी।

वि. सं. 1670 में जहाँगीर स्वयं चलकर तुलसीदास के दर्शन करने को काशी आया और उन्हें धन देना चाहा, किन्तु संत प्रवर तुलसीदास ने अस्वीकार कर दिया। संत तुलसीदास जनजागरण के लिए जगह जगह रामलीलाओं का आयोजन करते थे, रामकथा सुनाते थे और जन समूह को राम के आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित करते थे।

उन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दू समाज को संस्कारित करने, धर्म के प्रति निष्ठावान बनाने, हिन्दू परिवारों में राम के आदर्शों को स्थापित करने, भेदभावों को दूर करने, निराशा के अंधियारे में आशा और विश्वास का संचार करते हुए परकीयों की सत्ता के बावजूद हिन्दू समाज को आस्थावान बनाने में व्यतीत कर दिया। श्रीरामचरित मानस का लोगों के मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि करोड़ों लोगों ने उसे कण्ठस्थ कर लिया और जीवन में उतारने का प्रयास किया। मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिडाड, फीजी आदि देशों में यहाँ से गए लोग ‘श्रीरामचरित मानस’ को साथ लेकर गए और अपने परिवार तथा धर्म को किसी भी संकट से बचाने में सक्षम हुए। गोस्वामी तुलसीदास का उपदेश था कि श्री राम घर-घर में पैदा हों तथा परिवारों में श्रीराम के परिवार की तरह प्रेम बना रहे। श्रीराम के इस कथानक को घर-घर पहुँचाने की दृष्टि से तुलसीदास विश्व के सफलतम संत हैं।

सं. 1680 को गंगा के किनारे असीघाट पर उन्होंने अपना शरीर छोड दिया । इस सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है :
संवत सोरह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण स्यामा तीज सनि, तुलसी तजी सरीर॥

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