राजस्थान के संशोधित कृषि कानून- बेकार साबित हो रही कवायद

राजस्थान के संशोधित कृषि कानून- बेकार साबित हो रही कवायद

राजस्थान के संशोधित कृषि कानून- बेकार साबित हो रही कवायद

जयपुर। केन्द्र सरकार के कृषि कानून को बाईपास करने के लिए राजस्थान विधानसभा में पारित किए गए तीन संशोधित कृषि कानूनों की कवायद आखिर बेकार साबित हो रही है। ये कानून विधानसभा में भले ही पारित हो गए, लेकिन लागू नहीं हो पा रहे है, क्योंकि इन पर पहले राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है और संवैधानिक नियमों की बात करें तो राष्ट्रपति से मंजूरी नहीं मिल सकती, क्योंकि इन्हीं विषयों पर राष्ट्रपति केन्द्र के कानूनों को मंजूरी दे चुके हैं। ऐसे में इन बिलों को लेकर यहां की गई कवायद मात्र एक राजनीतिक संदेश बन कर रह गई है।

केन्द्र के कृषि बिलों के विरुद्ध कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी कांग्रेस शासित सभी राज्यों को यह निर्देश दिए थे कि संवैधानिक दायरे में रहते हुए राज्य अपने यहां संशोधित कृषि बिल पारित करें। सोनिया गांधी से मिले निर्देशों के बाद ही राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने इन कृषि बिलों को लेकर कवायद शुरू की थी। इसी बीच पंजाब ने कृषि बिल पारित कर दिए और गेहूं व धान पर समर्थन मूल्य से कम की खरीद को कानूनी अपराध बना दिया। पंजाब में यह कानून पारित होने के बाद राजस्थान में भी प्रक्रिया तेज हुई और अक्टूबर के अंत में आनन-फानन में विधानसभा का सत्र बुला कर दो नवम्बर को आवश्यक वस्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020 , कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020 तथा कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020 पारित कर दिए गए।

हालांकि समर्थन मूल्य पर खरीद की अनिवार्यता को लेकर जो हल्ला कांग्रेस पूरे देश में मचा रही थी, वह अनिवार्यता राजस्थान में इसके खुद के कानूनों से गायब थी। राजस्थान सरकार ने सिर्फ कांट्रेक्ट फार्मिंग वाले कानून यानी कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधेयक में यह समर्थन मूल्य पर खरीद की अनिवार्यता को लागू किया। इस कानून में समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं किए जाने को कानूनी अपराध बनाते हुए सजा का प्रावधान भी किया गया। जबकि कांट्रेक्ट फार्मिंग राजस्थान में बहुत कम होती है, क्योंकि यहां कृषि जोत बड़ी नहीं है और ज्यादातर छोटे या मध्यम किसान हैं।
जो मुख्य बिल था यानी कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक जिसके जरिए कृषि मण्डी व कृषि मंडियों से बाहर फसल की खरीद निंयत्रित होती है, उसमें समर्थन मूल्य पर खरीद की अनिवार्यता की कोई बात ही नहीं थी। इसमें सिर्फ किसान की फसल की समय पर डिलीवरी ना लेने या भुगतान नहीं करने पर सजा का प्रावधान था।

बहरहाल यह कानून पारित हो गए। हालाकि जब बिलों पर विधानसभा में बहस चल रही थी और उस समय भी प्रतिपक्ष के विधायकों विशेषकर नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड तथा सत्र से पहले केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सहित कई नेताओं ने यह कहा था कि सरकार को यह बिल विधानसभा में लाने से पहले संविधान पढना चाहिए, क्योंकि सरकार यह बिल ला ही नहीं सकती है। केन्द्र सरकार ने जिस विषय के तहत कानून पारित किए हैं, वह संघ सूची का विषय है और उस पर राष्ट्रपति पहले ही कानूनों को मंजूरी दे चुके हैं।

अब इन बिलों को पारित हुए डेढ़ माह से ज्यादा का समय बीत चुका है और ये बिल राज्यपाल के पास पड़े हैं। राज्यपाल इन बिलों के साथ ही पारित हुए महामारी संशोधन विधयक जिसके जरिए मास्क पहनना अनिवार्य किया गया था, उसे मंजूरी दे चुके हैं, लेकिन इन बिलों को उन्हें राष्ट्रपति को भेजना है जो वो भेज भले ही दें, लेकिन नियमानुसर इन बिलों को मंजूरी मिलना सम्भव नहीं है। अब सरकार के मंत्री और खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यह कह रहे हैं कि हमारे द्वारा पारित किए गए बिलों पर राज्यपाल कोई निर्णय नहीं कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या खुद सरकार में बैठे लोग इस बात को नहीं समझ रहे थे कि इन बिलों को पारित करने का कोई अर्थ नहीं है या सिर्फ एक राजनीतिक संदेश देने के लिए यह सारी कवायद की गई?

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