मैं संसद हूं, यदि मेरा मान बना रहेगा तो इस देश का सम्मान बना रहेगा (व्यंग्य)
शुभम वैष्णव
मैं संसद हूं। मेरी कहानी भी बड़ी निराली है। मुझे अंग्रेजों ने इसलिए बनाया था ताकि वे यहॉं से इस देश पर राज करते रहें। लेकिन उन गोरों के काले मंसूबे एक समय के बाद नाकाम हो गए।
भारत की आजादी के बाद इस देश के नेताओं ने मुझे अपनी कर्म स्थली के रूप में चुना। यहॉं बैठकर ही भारत का संविधान बनाया गया। नेता मेरे भीतर आकर निष्ठा की शपथ लेते रहे, परंतु वोट बैंक और लालच के आगे उनकी निष्ठा दम तोड़ती रही।
मेरे भीतर बैठकर नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे और अपनी राजनीतिक विरासत बचाते रहे। सत्ता पक्ष और विपक्ष की नोक झोंक और बहस भी मैंने देखी है।
सरकारें बनाने और बिगाड़ने के लिए खेले गए प्रपंच की भी मैं गवाह रही हूं।
कमजोर नेतृत्व और प्रपंचों के परिणाम ही रहे हैं कि मुझ पर पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा हमला भी किया गया, परंतु मेरे देश के जांबाज सैनिकों ने मुझ पर एक खरोंच तक नहीं आने दी। कई वीर जवानों ने मेरी गरिमा बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया।
आज मेरे भीतर इस तरह का घटनाक्रम हुआ कि मैं शर्मसार हो गई। मर्यादा की शपथ लेने वाले नेताओं ने ही मेरी बेंचों पर लगे माइक तक तोड़ दिए, उपसभापति से दुर्व्यवहार किया गया। साथ ही मेरी सुरक्षा करने वाले मार्शल की गर्दन तक पकड़ ली गई।
मैंने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को ही समर्थन और विरोध का संवैधानिक अधिकार दिया है। परंतु फिर भी कुछ लोग विरोध के नाम पर गुंडागर्दी पर उतारू हो गए। इसे विरोध कहा जाए या गुंडागर्दी?
स्वतंत्रता के बाद से ही मैंने कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखे हैं। भविष्य में होने वाले सभी घटनाक्रमों के लिए भी मैं हमेशा तैयार हूं। लेकिन आप सब से विनती है कि आप मेरे अंदर ऐसे नेताओं को ही प्रवेश दें जो मेरी गरिमा बनाए रखें ना कि मेरी गरिमा को तार-तार कर दें। मैं आप सबकी प्यारी संसद आपसे हाथ जोड़कर यह विनती करती हूं कि –
“यदि मेरा मान बना रहेगा तो,
इस देश का सम्मान बना रहेगा।”
आपकी संसद