सनातन और विज्ञान एक दूसरे के पूरक

सनातन और विज्ञान एक दूसरे के पूरक

सनातन और विज्ञान एक दूसरे के पूरकसनातन और विज्ञान एक दूसरे के पूरक

सनातन और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। कालगणना से लेकर योग तक हमारी संस्कृति का हर पहलू इस तथ्य को सिद्ध करता है। नवरात्र अपने आप में अद्वितीय है। सनातन इकलौती ऐसी संस्कृति है, जो मातृशक्ति का उत्सव मनाती है, जो कि वास्तव में सम्पूर्ण पृथ्वी की सृजनशक्ति है। परन्तु इसके अतिरिक्त एक और कारण इसे महत्वपूर्ण बनाता है। वह है इसका वैज्ञानिक आधार।

आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्र शुरू हो गए। देश के हर कोने में हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला यह पर्व अपने अंदर पूरा विज्ञान समेटे हुए है। नवरात्र मातृशक्ति को समर्पित उत्सव है। भारतीय परंपरा में प्रकृति को माँ माना गया है। नवरात्र में जहां मां दुर्गा के नौ रूप हमें मानसिक रूप से प्रबल बनाते हैं, वहीं प्रकृति हमारी शारीरिक व्याधियों को दूर करती है।

वैज्ञानिक है शक्ति आराधना का आधार
हमारी पृथ्वी 23.5 डिग्री झुकी हुई है। अतः हमें वर्ष में कई ऋतु परिवर्तन देखने को मिलते हैं। जिस प्रकार ऋतु परिवर्तन के दौरान प्रकृति नवीन रूप धारण करती है, उसी प्रकार हमारे शरीर को भी नवऊर्जा की आवश्यकता होती है। वर्ष में चार नवरात्र आते हैं, जिनमें से दो गुप्त नवरात्र कहे जाते हैं। ये चारों नवरात्र ऐसे समय पर आते हैं जब प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है। ऐसे समय में शरीर को भी नवऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि इस समय हम अनेक बीमारियों का सामना करते हैं। विज्ञान के अनुसार माइटोकॉन्ड्रिया, जो शरीर का शक्तिकेंद्र है, को इस समय डीटॉक्स करने की आवश्यकता होती है ताकि यह अधिक शक्ति शरीर तक पंहुचा सके। अतः नवरात्र के दौरान उपवास किए जाते हैं। जहाँ शेष विश्व अब इंटरमिटेंट फास्टिंग के वैज्ञानिक आधार को पहचान रहा है, वहीं भारत में पुरातन काल से उपवास, व्रत की परम्परा चली आ रही है। उपवास में हम फलाहार व पौष्टिक पेय लेते हैं, जो हमारे शरीर को पुनः ऊर्जा प्राप्त करने में सहायक होते हैं। साथ ही हम उपवास में ध्यान करते हैं व सचेतन मस्तिष्क से फलाहार ग्रहण करते हैं। मस्तिष्क का भावनाओं से प्रत्यक्ष संबंध है। अतः यह हमारे मन और मस्तिष्क दोनों को स्वस्थ बनाता है। इस प्रकार शक्त्याराधना का यह पर्व वैज्ञानिक रूप से शरीर के शक्ति गृह को उसी मातृ तत्त्व के रूप में शक्ति प्रदान करता है जिससे वह निर्मित है। इससे कई व्याधियों का निवारण होता है। भारत के अलग अलग हिस्सों में यह पर्व भिन्न- भिन्न प्रकार से मनाया जाता है। परन्तु इन वैभिन्यों के बाद भी मातृशक्ति के प्रति भावों की समानता इसे एकरूपता में बांधती है। यही संस्कृति की सुंदरता है, जो इसके सहज, सतत प्रवाह को बनाए रखती है।

नवरात्र में नृत्य का विज्ञान
नवरात्र में देश के विभिन्न हिस्सों में शास्त्रीय नृत्य, गरबा, डांडिया किए जाते हैं। इसके पीछे भी विज्ञान है। यह जीवन की नकारात्मकता को दूर करने का वैज्ञानिक तरीका है और जब इस विज्ञान के साथ अध्यात्म व आस्था जुड़ते हैं तो सकारात्मकता अपने चरम रूप में आ जाती है।

नृत्य के समय एंडोर्फिन नामक केमिकल उत्सर्जित होता है, जो सकारात्मकता व प्रसन्नता देता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि नृत्य के दौरान व्यायाम करने की तुलना में अधिक एंडोर्फिन उत्सर्जित होता है, जो जीवन में सकारात्मकता देता है। यह हमें भीतर की शक्ति से जोड़ता है। त्योहार के जुड़ने से सकारात्मकता और भी बढ़ जाती है।

नवदुर्गा के नौ स्वरूप जीवन के विभिन्न पड़ावों व उनसे पार पाने की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो विज्ञान और अध्यात्म के मार्ग से हमारा मार्गदर्शन करते हैं। भारतीय संस्कृति की यह विशिष्टता स्पष्ट करती है कि विज्ञान और सनातन एक दूसरे के पूरक हैं।

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