हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन अथवा सिख किसी भी सभ्यता में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं

हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन अथवा सिख किसी भी सभ्यता में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं

हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन अथवा सिख किसी भी सभ्यता में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहींहिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन अथवा सिख किसी भी सभ्यता में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं

राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर स्थित श्री सतीश चंद्र अग्रवाल सभागार में शुक्रवार (5 मई 2023) को राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, जयपुर द्वारा “समलैंगिक विवाह: विधिक, सामाजिक एवं संवैधानिक परिप्रेक्ष्य” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें वक्ता के रूप में न्यायमूर्ति आरएस राठौर (सेवानिवृत्त न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय), बीरी सिंह सिनसिनवार (पूर्व चेयरमैन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया), एनए नकवी (पूर्व चेयरमैन, राजस्थान बार काउंसिल एवं अतिरिक्त महाधिवक्ता, राजस्थान सरकार), जसवीर सिंह (पूर्व चेयरमैन, राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग), श्याम सोनी (वरिष्ठ पत्रकार), शिखा शर्मा (काउंसलर, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) ने अपने विचार रखे।

कार्यक्रम के प्रारंभ में शिखा शर्मा ने भारतीय संस्कृति, विभिन्न वेदों, पुराणों एवं कानूनों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस सृष्टि में स्त्री एवं पुरुष दोनों के सम्मिलित प्रयासों से ही हमारी संस्कृति एवं सभ्यता आगे बढ़ती रही है। समलैंगिक विवाह कानून जैसा कोई भी विचार हमारी संस्कृति अथवा कानून की पुस्तकों में नहीं रहा है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में इस प्रकरण में की जा रही सुनवाई को अनावश्यक बताया।

अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन जसवीर सिंह ने अपने  उद्बोधन में कहा कि हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन अथवा सिख किसी भी सभ्यता में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं है। यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। वहीं बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के पूर्व चेयरमैन एनए नकवी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह कानून का कंसेप्ट इस संपूर्ण सृष्टि में किसी भी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है। सृष्टि के सुचारू संचालन के लिए एक स्त्री एवं पुरुष के मध्य विवाह को ही मान्यता दी गई है। जिसका सभी धर्मों में बखूबी उल्लेख किया गया है। यह प्राकृतिक रूप से उचित भी है। हम समलैंगिक कानून के माध्यम से ईश्वर द्वारा प्रगति की गई व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने का कोई अधिकार नहीं रखते हैं। उच्चतम न्यायालय को अपना महत्वपूर्ण समय इन अनावश्यक मुद्दों पर खर्च नहीं करना चाहिए। कानून बनाना विधायिका का कार्य है।

राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन बीरी सिंह सिनसिनवार ने उक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतवर्ष एवं अनेकों देशों में विवाह को लेकर स्थापित व्यवस्था के बारे में विस्तृत रूप से बताया एवं समलैंगिक विवाह कानून पर माननीय उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई को अनावश्यक बताया।

कार्यक्रम के अंत में मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति आरएस राठौड़ ने विभिन्न न्यायिक दृष्टांतों का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को  उच्चतम न्यायालय के द्वारा पूर्व में दिए गए विभिन्न न्यायिक दृष्टांतों के परिप्रेक्ष्य में सर्वथा विपरीत बताया। साथ ही कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अपनी मर्यादा में रहकर ही कार्य करना चाहिए। कानून बनाना न्यायपालिका का कार्य नहीं है। यह कार्य विधायिका का है। भारतवर्ष एवं विश्व के अनेकों देशों ने भी समलैंगिक विवाह कानून जैसी अवधारणा को गलत माना है। उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या ईसाइयों के कैथोलिक समुदाय का उदाहरण देते हुए कहा कि कैथोलिक समुदाय समलैंगिक विवाह की अवधारणा का घोर विरोध करता है। इसी प्रकार हमारे गांव एवं कस्बों में समलैंगिक विवाह जैसी बातें करना भी शर्म का विषय माना जाता है। आज 21वीं सदी में भी इस प्रकार की बातें करना हमारी मर्यादा के विरुद्ध माना जाता है।

कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान जन मन गण के साथ संपन्न हुआ।

हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन अथवा सिख किसी भी सभ्यता में समलैंगिक विवाह का कोई स्थान नहीं

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