समाज एक नवीन करवट ले रहा है

वर्तमान पीढ़ी इस महामारी से तेजी से बदलते इतिहास को अपनी खुली आंखों से देख रही है यह सत्य है इस पीढ़ी ने संपूर्ण बंदी, सामाजिक और शारीरिक दूरी का अनुभव प्रथम बार किया हो, लेकिन इस पीढ़ी का इन विषम परिस्थितियों से सामंजस्य प्रशंसा के योग्य है। लाॅकडाउन-2 की एडवाइजरी से अब लगने लगा है कि आने वाला समय नवीन बदलाव लेकर आयेगा।

कौशल अरोड़ा

वर्तमान पीढ़ी इस महामारी से तेजी से बदलते इतिहास को अपनी खुली आंखों से देख रही है। यह सत्य है इस पीढ़ी ने संपूर्ण बंदी, सामाजिक और शारीरिक दूरी का अनुभव प्रथम बार किया हो, लेकिन इस पीढ़ी का इन विषम परिस्थिति से सामंजस्य प्रशंसा के योग्य है। लाॅकडाउन-2 की एडवाइजरी से अब लगने लगा है कि आने वाला समय नवीन बदलाव लेकर आयेगा।

प्रत्येक परिस्थिति नई परिभाषाओं को जन्म देती है। ये नवीन परिभाषाएं ही नये गुण, स्वरूप ओर विशेषता के आधार पर सजीव परिस्थितियों का चित्रण व उसका संकलन करती हैं।

संक्रमण काल से मुक्ति के पश्चात लोगों को अपनी जीवन शैली, कार्य पद्धति, कार्य संरचना, आहार, व्यवहार और आचरण का अपने जीवन मूल्यों में नए सिरे से समावेश करना होगा। जीवनशैली में आर्थिक और उपभोक्तावादी मूल्यों के स्थान पर सनातन परम्पराओं का समायोजन करना होगा।

साथ ही सतत सम्पर्क और आपसी तालमेल को अपने कार्य व व्यवहार क्षेत्र में डिजिटल तकनीक से समायोजन के साथ उपयोग करना होगा। डिजिटल की शक्ति की छाया में सोए हुये लोगों को जगाने का दायित्व भी समाज का है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि कोरोना के बाद मानव-जीवन में एक नई सोच प्रारम्भ होगी जो अभी प्रसवकाल मे है। जैसे स्वतंत्रता पश्चात इसका इतिहास लिखा गया, ठीक उसी प्रकार नॉवल कोरोना महामारी का विस्तार सम्पूर्ण विश्व में इससे जुड़े जीवन संघर्ष के इतिहास के रूप में अवश्य लिखा ही जाएगा।

वर्तमान पीढ़ी इस महामारी से तेजी से बदलते इतिहास को अपनी खुली आंखों से देख रही है यह सत्य है इस पीढ़ी ने संपूर्ण बंदी, सामाजिक और शारीरिक दूरी का अनुभव प्रथम बार किया हो, लेकिन इस पीढ़ी का इन विषम परिस्थितियों से सामंजस्य प्रशंसा के योग्य है। लाॅकडाउन-2 की एडवाइजरी से अब लगने लगा है कि आने वाला समय नवीन बदलाव लेकर आयेगा।

लॉकडाउन में शिक्षण संस्थायें भले ही खुली न हों, लेकिन छात्रों के पठन-पाठन की हानि न हो, इसलिए सरकार व निजी शिक्षण संस्थाओं ने अपनी जिम्मेदारी समझी और इसी कारण ऑन लाइन कक्षाओं का दौर प्रारम्भ हुआ। लेकिन इन सब के बीच समाज के कमजोर, गरीब व साधनविहीन छात्रों के लिए कुछ दूरियां जन्मी हैं। जिन पर विजय पाना भी सरकार व उस सुधारक वर्ग, जो समाज को अपनी नीतियों से जीवंत रखता है, का दायित्व बढ़ा है।
इससे डिजिटल की समझ व उपयोगिता का विकास होगा। दूसरे देशों की साझा शिक्षा व्यवस्था को पुनः संचालित करने के लिए ऑन-लाइन पद्धति का विस्तार करना होगा।

भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी महर्षि अरविंद ने अपनी 24 वर्षों की साधना के पश्चात कहा था कि संस्कृति की सीमाएं समाप्त होंगी। आज पूरा विश्व एक ग्लोबल विलेज बन रहा है। 1997 में ब्रिटेन के अर्थशास्त्री फ्रैसिस कैर्नकोर्स ने अपनी पुस्तक दि डेथ ऑफ डिस्टेंस में एक सिद्धांत दिया जिसमें विश्व की दूरियों के अंत पर लिखा गया है। इन विद्वानों को उस समय यह आभास नहीं रहा होगा कि विश्व में किसी समय ऐसी कोई महामारी जन्मेगी ।

इस वायरस के संक्रमण का वैश्वीकरण हुआ। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, मगर यह सत्य है कि परिवर्तन को हम जितना जल्दी स्वीकार करते हैं, उस परिस्थिति से हमारा सामंजस्य उतना ही जल्दी हो जाता है। उदाहरणार्थ मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने लाॅकडाउन की चुनौती को शैक्षिक अवसरों में बदलने के प्रयास तेज किये हैं। शिक्षा के डिजीटल तलों तक छात्रों की पहुंच बढ़ाने के लिए ई-लर्निंग चैनल्स को तैयार किया है। 23 मार्च के बाद मंत्रालय के ई-लर्निग प्लेटफाॅर्मस में डेढ़ करोड़ से अधिक छात्र जुड़ चुके हैं। मंत्रालय के इस मंच पर 574 पाठ्यक्रम और 26 लाख छात्र नामांकित हैं। इसके अलावा मंत्रालय के द्वारा तैयार किए गए ऑडियो-वीडियो लैक्चर और वर्चुअल कक्षाएं काफी उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। शिक्षा के इस वर्चुअल माॅडल की शुरुआत के साथ ही लाखों लोगों के लिए वर्क फ्रॉम होम में अब घर ही दफ्तर बन गया है।

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