सरकारी मशीनरी को तो कम से कम वोट बैंक की राजनीति से दूर रखे सरकार
सरकारी मशीनरी को तो कम से कम वोट बैंक की राजनीति से दूर रखे सरकार
लोकतंत्र में सरकार किसी एक जाति, धर्म या समुदाय की नहीं होती बल्कि हर व्यक्ति की होती है। लेकिन वोट बैंक के लालच में राजस्थान की कांग्रेस सरकार तुष्टीकरण के कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत कर रही है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर समुदाय के वोट से चुनी गई सरकार के लिए कतई उचित नहीं कहे जा सकते। प्रदेश की कांग्रेस सरकार चाहे कितने भी दावे कर ले कि उसके लिए जाति या धर्म कोई मायने नहीं रखते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में सरकार की ओर से जारी आदेश और की गई कार्रवाइयां सरकार के इन दावों की पोल खोल देती हैं।
उदयपुर में कन्हैयालाल की नृशंस हत्या सरकार की तुष्टीकरण की नीतियों के कारण पैदा हुई स्थितियों का चरम कही जा सकती है। पिछले कुछ समय में जो कुछ भी हुआ है, उससे सरकार ने मुसलमानों के प्रति जिस तरह की नरमी का रुख दिखाया है, उसी ने कहीं ना कहीं कट्टरपंथियों को कुछ भी कर जाने का परोक्ष संदेश दिया है। माना तो यहां तक जा रहा है कि इस घटना में भी यदि दोनों आरोपी स्वयं के कबूलनामे के वीडियो जारी नहीं करते तो इसे आपसी रंजिश का मामला बता कर रफा-दफा कर दिया जाता।
ये हैं वे घटनाएं जो सरकार की तुष्टीकरण की नीतियों को उजागर करती हैं:
- कन्हैयालाल को सिर्फ एक पोस्ट शेयर करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि धमकी देने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, उल्टे सुरक्षा मांगने पर कन्हैयालाल को ही सावधान रहने को कहा गया
- अजमेर दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती ने भड़काऊ बयान वाली वीडियो जारी की और पुलिस शुरुआत से ही यह साबित करने में लग गई कि उसने यह वीडियो नशे की हालत में बनाया और गिरफ्तारी के बाद भी उसे यही सलाह दी गई कि बचने के लिए बोल देना नशे की हालत में था। हालांकि यह सलाह देने वाले अधिकारी को एपीओ कर दिया गया है।
- अजमेर दरगाह के ही खादिम सरवर चिश्ती जो वर्तमान में खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी के सचिव हैं, वे एक वीडियो में नुपुर शर्मा के समर्थन में निकाले गए हिन्दू समाज के जुलूस पर आपत्ति करते हैं और एक वीडियो में कहते सुने जाते हैं कि जुलूस की वजह से हमारी भावनाएं आहत हुई हैं। दरगाह बाजार और नला बाजार की दुकानें बंद की गई हैं। ये सभी दरगाह की वजह से कमाते हैं। अब इन दुकानदारों के बारे में जायरीन ए ख्वाजा ही सोचें। हमें काफी अफसोस है कि प्रशासन ने जुलूस निकालने की आजादी दी। नबी की शान में उस औरत ने गुस्ताखी की, उसको गिरफ्तार करें। यह वीडियो 26 जून का बताया जाता है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
- बूंदी के मौलाना मुफ्ती नदीम एक वीडियो में यह कहते सुने जाते हैं कि जो पैगंबर साहब के खिलाफ बोलेगा उसकी आंखें नोच लेंगे। उंगली उठाई तो उंगली तोड़ देंगे, हाथ उठाया तो हाथ तोड़ देंगे। यह वीडियो तीन जून का बताया जा रहा है और पुलिस ने कार्रवाई की है लगभग एक माह बाद, वो भी तब जब केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसे ट्वीट किया। जबकि इसी वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी मौलाना के पीछे खड़े हुए दिख रहे हैं।
- करौली में हिंसा की सारी जिम्मेदारी नवसवंत्सर पर निकाले गए जुलूस में लगाए तथाकथित उग्र नारों पर डाल दी गई। पथराव की घटना का मुख्य आरोपी आज तक पुलिस की गिरफ्त से दूर है।
- सरकार के एक विधायक अमीन कागजी मजहब के आधार पर अपने विधानसभा क्षेत्र के चार डॉक्टरों के तबादले निरस्त कराने के लिए धरना देते हैं और मंत्री को तबादले निरस्त करने पड़ते हैं।
- अप्रैल में त्योहारों से पहले प्रदेश के कई जिलों में धारा 144 लगा कर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए। हालांकि यह धारा एक माह यानी ईद तक के लिए लगाई गई, लेकिन इसका असर शुरुआत में ही अधिक दिखा। ईद पर जोधपुर में फिर बवाल हो गया।
- रमजान से पहले सरकार के बिजली विभाग ने मुस्लिम मोहल्लों में बिजली आपूर्ति बाधित नहीं करने के आदेश जारी किए।
ये मात्र कुछ उदाहरण हैं जो सरकार के सर्वधर्म समभाव के दावे की पोल खोलते हैं। सरकार दावा करती है तो उसे पूरा भी करना चाहिए। अपनी पार्टी के लिए वो चाहे जो भी नीति तय करे, लेकिन कम से कम सरकारी मशीनरी को तो वोट बैंक की राजनीति से दूर रखना चाहिए।