सरदार ऊधम (2021) : शौर्य और बलिदान की प्रतिमूर्ति (फिल्म समीक्षा)

सरदार ऊधम (2021) : शौर्य और बलिदान की प्रतिमूर्ति (फिल्म समीक्षा)

डॉ. अरुण सिंह

सरदार ऊधम (2021) : शौर्य और बलिदान की प्रतिमूर्ति (फिल्म समीक्षा)

फिल्म: सरदार ऊधम
कलाकार: विकी कौशल
डायरेक्टर: शुजीत सरकार
शैली: बायोग्राफिकल क्राइम-थ्रिलर
रिलीज: 16 अक्टूबर
प्लेटफॉर्म: अमेजन प्राइम

जलियांवाला बाग़ नरसंहार का दृश्य पूर्व में भी कई फिल्मों में आया है, परन्तु इस कथानक को केंद्र में रखकर एक गंभीर, प्रभावोत्पादक फ़िल्म पहली बार आई है। प्रतिशोध पर आधारित, फ़िल्म सरदार ऊधम का कथानक भले ही छोटा सा है, परन्तु सिनेमाई कॉलाज के माध्यम से इसे सलीके से विस्तार दिया गया है। फ्लैशबैक की तकनीक इसमें सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुई है। वस्तुत: यह शुजीत सरकार का सिनेमा है। राष्ट्रप्रेम और उत्कर्ष पर प्राय: जिस तरह की फिल्में बनी हैं, यह वैसी नहीं है। यहां कोई भावनात्मक मेलोड्रामा नहीं है। यहां प्रभावी यथार्थ को चित्रित करने पर बल दिया गया है। जलियांवाला बाग़ त्रासदी का दृश्य आत्मा को झकझोर देने वाला है। इस घटना का आज तक ऐसा प्रभावी दृश्य सिनेमा में नहीं आया। स्मृति में घर कर जाने वाला दृश्य!

फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को जुटाने और फिल्माने में बहुत मेहनत की गई है। कैक्सटन हॉल का दृश्य और प्रेस की ख़बरों का प्रसारण उस समय की राजनैतिक परिस्थितियों को सजीव बनाता है। जनरल डायर की हत्या के पश्चात सरदार ऊधम सिंह सुरक्षाकर्मियों द्वारा जकड़े हुए एक विजयी मुस्कान के साथ बाहर निकलते हैं। उस समय के क्रांतिकारी राष्ट्र हेतु अपना सर्वस्व समर्पित करते थे। सरदार ऊधम सिंह अपना प्रतिशोध बिना किसी पश्चाताप के पूरा करते हैं। यह जनरल डायर की जघन्य अमानवीयता का प्रत्युत्तर है। जलियांवाला बाग़ के पैशाचिक हत्याकांड का साक्षी होना उन्हें हर पल अपने लक्ष्य की ओर ले जाता है। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य भी यही बन पड़ता है। इस उद्देश्य में अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध राष्ट्रवासियों के मन में एक अलख जागृत करना भी शामिल है। वे जानते हैं कि उनका यह बलिदान ऐतिहासिक बनने वाला है। उनकी यह लड़ाई ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सोच के विरुद्ध है, न कि किसी व्यक्ति अथवा देश के विरुद्ध। इस उत्कृष्ट कथानक में कुछ रिश्तों का ताना बाना भी गूंथा गया है। भाभी का उलाहना उन्हें रोक नहीं पाता। मित्र भगत सिंह के साथ बीते पल उन्हें रह रहकर याद आते हैं। प्रेम की भावना रेशमा के लिए हो या एलीन के लिए, वह राष्ट्र से बड़ी नहीं है। रेशमा उनकी स्मृति में जीवित है और जेल में एलीन को वे बताते हैं कि फांसी चढ़कर वे भगत सिंह के पास जा रहे हैं। उनकी अंतिम अभिलाषा यही है कि उन्हें लोग एक क्रांतिकारी के रूप में जानें।

पर्दे पर धुआसे रंग का प्रयोग और गंभीर बैकग्राउंड स्कोर शानदार निर्देशन के साक्ष्य हैं। विकी कौशल फिल्म की जान हैं।

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2 thoughts on “सरदार ऊधम (2021) : शौर्य और बलिदान की प्रतिमूर्ति (फिल्म समीक्षा)

  1. समीक्षा में star rating भी शामिल करनी चाहिए।

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