सामर्थ्यशाली हिन्दू
हिंदुत्व – विभिन्न पहलू, सरलता से / 3
– प्रशांत पोल
आज से दो हजार – तीन हजार वर्ष पहले, हिन्दू संगठित थे, समरस थे और इसीलिए अत्यधिक सामर्थ्यशाली थे।
इसका उदहारण मिलता है ग्रीक (यूनानी) सम्राट सिकंदर के आक्रमण के समय। पारसिक राष्ट्र के, अर्थात आज के ईरान के, शासकों का ग्रीक साम्राज्य से परंपरागत बैर था। विशाल पारसिक साम्राज्य के सामने, छोटे छोटे से यूनानी राजा कहीं न ठहरते थे। किन्तु सिकंदर के पिता, फिलिप ने, इन छोटे राज्यों को संगठित कर, यूनानियों का एक राज्य बनाया। ईसा पूर्व 329 में, फिलिप की मृत्यु के पश्चात, सिकंदर इस संगठित यूनानी राज्य की ताकत लेकर पारसिक साम्राज्य से भिड़ गया और पहले ही झटके में उसने इस साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया। खुद को पारसिक का सम्राट घोषित कर वह आगे बढ़ा, रास्ते में बाबिलोनी साम्राज्य को भी उसने परास्त किया। वर्तमान के सीरिया, मिस्र, गाझा, तुर्की, ताजिकिस्तान को कुचलते हुए वह भारत की सीमा तक पहुंचा। अन्य राष्ट्रों को उसने जैसे जीता, उसी आसानी से भारत को जीतने की उसकी कल्पना थी। भारत के अत्यंत समृध्द ‘मगध साम्राज्य’ को उसे जीतना था।
लेकिन उसकी कल्पना और अपेक्षा के विपरीत, भारत में उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। आज के हमारे पंजाब प्रान्त को तो उसने जीत लिया, पर एक एक इंच भूमि उसे जी जान से लड़कर जीतनी पड़ी, मानो काले कभिन्न चट्टानों पर उसकी सेना सर फोड़ रही हो..! मगध के दर्शन भी न करते हुए, रक्तरंजित अवस्था में, विकल और विकट परिस्थिति में उसे वापस लौटना पड़ा।
विश्वविजयी कहलाने वाले, ‘सिकंदर महान’ की भारत में ऐसी दुर्गति क्यों हुई..?
उन दिनों भारत की उत्तर – पश्चिमी सीमा पर, सिन्धु नदी के दोनों तटों पर सौभूती, कठ, मालव, क्षुद्रक, अग्रश्रेणी, पट्टनप्रस्थ ऐसे अनेक छोटे छोटे गणराज्य थे। तक्षशिला जैसा राज्य भी था। सिकंदर की विशाल सेनासागर के सामने वह टिक न सके। किन्तु सिकंदर को प्रत्येक विजय की भरपूर कीमत चुकानी पड़ी। उसके सैनिक इतने परेशान हो गए, डर गए और थक गए कि व्यास (बियास) नदी के उस पार, ‘यौधेय गणों की बड़ी मजबूत सेना खड़ी है’, यह सुनकर ही उनके छक्के छूट गए। सिकंदर ने फिर भी आगे बढ़ने का निर्णय लिया तो मानो सेना में भूचाल आ गया। उसके सैनिक रोने लगे और उसे आगे जाने से रोकने लगे। यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क लिखता हैं – ‘पोरस से युद्ध करने के बाद सिकंदर की सेना का मनोबल पूरी तरह से टूट गया था और इसीलिए सिकंदर को व्यास के उत्तर तट से ही वापस लौटना पड़ा।’ यूनानी सेनानी और इतिहासकार डीयोडोरस ने भी भारतीय सैनिकों की वीरता एवम् एकजुटता के अनेक किस्से बयान किये हैं।
मालव और क्षुद्रक ये दो छोटे गणराज्य सिन्धु नदी के तट पर थे। दोनों में परंपरागत खानदानी दुश्मनी थी। लेकिन सिकंदर से युद्ध करने के लिए उन्होंने अपना पीढ़ीगत बैर भुला दिया। अब दोनों राज्यों के नागरिक इस बैर को कैसे भूलेंगे..? इसलिए दोनों गणराज्यों ने आपस में कन्यादान कर, दस हजार विवाह संपन्न किये। हिन्दुओं की एकजुटता का यह अनुपम उदहारण है…!
भारत से लौटते समय, सिकंदर की इतनी ज्यादा हानि हुई थी कि दो वर्ष में ही, ईसा पूर्व 323 में उसकी मृत्यु हो गई। सिकंदर के मरने के बाद, उसके द्वारा जीता हुआ सारा पंजाब, पुनः स्वतंत्र हो गया। इस कालखंड में हिन्दू सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय भारतवर्ष को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटना थी। विदेशी आक्रान्ताओं का सशक्त प्रतिकार करने का यह क्रम अगले हजार – बारह सौ वर्ष निरंतर चलता रहा। भारतवर्ष का यह स्वर्णिम कालखंड था।
इस बीच दो तीन सौ वर्षों के बाद, सम्राट अशोक के अहिंसा तत्व के प्रचार – प्रसार के बाद, जब भारत की लड़ने की धार कुछ कम हुई तो डेमित्रीयस नाम का सेनानी बेक्ट्रिया से जो निकला तो सीधे भारत के अयोध्या तक पहुंचा, लेकिन कलिंग (उड़ीसा) के महाप्रतापी राजा खारवेल ने उसे इरान की सीमा तक खदेड़ दिया..!
शक और कुशाणों का आक्रमण तो यूनानियों से भी महाभयंकर था। ये लोग क्रूर कबाईली थे। मारना, लूटना, तबाह करना इसी में इनको आनंद आता था। लेकिन भारतीय सेनानियों ने इस पाशविक आक्रमण को भी समाप्त किया। जब उत्तर के राजा निष्प्रभ होते थे, तब दक्षिण के राजा, भारतवर्ष को आक्रांताओं से बचाने सामने आते थे। सातवाहन साम्राज्य के गौतमीपुत्र सातकर्णी ने शकों से जबरदस्त युद्ध कर उनके राजा नहमान को मार कर उनको खदेड़ दिया था। कुशाणों के आक्रमण के समय, उनका कडा मुकाबला हम नहीं कर सके। लेकिन सांस्कृतिक धरातल पर हम इतने मजबूत थे, की सारे कुशाण हिन्दू हो गए। वैदिक आचरण करने लगे। संस्कृत बोलने – लिखने लगे। उनके राजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म का स्वीकार किया।
जो हाल शक, कुशाणों का हुआ, वही हाल किया हूणों का भी। मध्य एशिया के इन सारे असंस्कृत, क्रूर कबाईली लोगों से डरकर चीन ने अपनी ऐतिहासिक दीवार खड़ी की। लेकिन भारत के सेनानियों ने उनका भी निःपात किया। मालवा के राजा यशोवर्मा ने अन्य हिन्दू राजाओं को संगठित कर हूणों को परास्त किया।
यह पूरा विजय का इतिहास है। संगठित हिन्दू शक्ति के यशस्वी प्रकटीकरण का इतिहास हैं। यह हिन्दुओं की विजिगीषु वृत्ति का इतिहास है।