घुढ़चढ़ी की रस्म बनी सामाजिक समरसता की अनूठी मिसाल

घुढ़चढ़ी की रस्म बनी सामाजिक समरसता की अनूठी मिसाल

घुढ़चढ़ी की रस्म बनी सामाजिक समरसता की अनूठी मिसाल
सामाजिक समरसता हमारे समाज और हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है। विभिन्न जातियों और धर्मों में विभाजित हिंदू समाज अब एक होने लगा है। इस्लाम, ईसाई मिशनरी, टुकड़े गैंग की जिहादी मानसिकता, तुष्टीकरण की राजनीति, मतांतरण, लव जिहाद के प्रहार से घायल हिंदू समाज यह अनुभव करने लगा है कि वे जब तक बंटे रहेंगे, राष्ट्र विरोधी तत्व समाज को तोड़ने के बहाने ढूंढते रहेंगे और उन्हें कमजोर करने के प्रयास करते रहेंगे। समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने से ही समरसता आएगी।

सामान्यतः शादी – विवाह का सीजन शुरू होते ही कहीं न कहीं से समाचार आ ही जाता था कि वंचित समाज के दूल्हे को दूसरे समाज के लोगों ने घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया। लेकिन इस बार राजस्थान के जैतारण से एक समाचार आया कि एक राजपूत युवक, अपने मेघवाल मित्र की शादी में उसके लिए अपनी घोड़ी लेकर पहुंच गया। शादी जैतारण के निम्बोल गांव में थी। जहां वंशप्रदीप सिंह उदावत अपने मित्र धीरज मेघवंशी के घर अपनी घोड़ी लेकर पहुंचे। जहां, पूरे रीति रिवाजों से घुड़चढ़ी की रस्म हुई और धीरज घोड़ी ही पर तोरण मारने ससुराल पहुंचे। वंशप्रदीप पूरी बिन्दोली में दूल्हे के साथ रहे। लोगों ने इसे सामाजिक सद्भावना की मिसाल बताया।

इस घटना पर राजपूत समाज के ही एक समाजसेवी नरपत सिंह पंवार ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह सुखद स्थिति है। समाज में आगे भी इसी तरह सामाजिक सद्भावना की पहल होती रहनी चाहिए।

वहीं अभिनव गहलोत तो इसे पावन कार्य की संज्ञा देते हैं। उनका कहना है कि स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों व सामंतों के विरुद्ध लड़ाई में पिछड़े व वंचित वर्ग ने एक दूसरे को भरपूर सहयोग किया। लेकिन दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस नेताओं की “समाज को बांटो और राज करो” की नीति ने ऊंच – नीच की दरार पैदा कर दी। परिणामस्वरूप वंचित समाज अकेला पड़ गया। आज ऊंच नीच की आड़ में उन्हें गुमराह किया जा रहा है, बड़े पैमाने पर उनका मतांतरण शुरू हो गया है। आज मुसलमान व कुछ अनुसूचित जाति के नेता भले ही “जय भीम और जय मीम” के नारे लगाते हों, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में सर्वाधिक प्रताड़ना वंचित समाज के लोग ही झेल रहे हैं।

पिछले वर्ष भीलवाड़ा जिले के मांडन कस्बे में मुंडन के बाद एक दलित बच्चे को घोड़ी पर बिठाया गया था। लेकिन घोड़ी के मस्जिद के सामने से गुजरने पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताते हुए उस बच्चे को नीचे गिरा दिया, जबकि उस समय मस्जिद में कोई मज़हबी रवायत जारी नहीं थी।

आज लव जिहाद का शिकार भी वंचित समाज की किशोरियां ही ज्यादा हो रही हैं। हमें आवश्यकता है अपने इन भाइयों का साथ देने की, ऊंच नीच से परे उनकी भावनाएं समझने की, ताकि हिंदू समाज में एकता बने और उन्हें कोई गुमराह न कर सके। यदि सम्पूर्ण समाज एकजुट हो गया तो कोई भी षड्यंत्रकारी हिन्दू समाज को तोड़ने में सफल नहीं हो पाएगा।

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