सर्वजातीय सामूहिक विवाह सम्मेलन : सामाजिक समरसता की मिसाल

सर्वजातीय सामूहिक विवाह सम्मेलन : सामाजिक समरसता की मिसाल

डॉ. शुचि चौहान

सर्वजातीय सामूहिक विवाह सम्मेलन : सामाजिक समरसता की मिसाल

आज जहॉं एक ओर देश तोड़ने वाली शक्तियाँ सक्रिय हैं। समाज को जात पांत के आधार पर तोड़ने की कुचेष्टाएं हो रही हैं। ऐसे में सर्वजातीय सामूहिक विवाह सम्मेलन सामाजिक समरसता की मिसाल साबित हो रहे हैं। एक स्थान पर अलग अलग जातियों व वर्गों के वर वधुओं का एक साथ विवाह वह भी नाम मात्र के खर्चे पर – वास्तव में एक अनुकरणीय प्रयास है। हालांकि भारत के सामाजिक परिवेश को देखते हुए जहॉं अलग अलग समाज की परम्पराएं व रीति रिवाज भी अलग अलग हैं, ऐसे आयोजन प्रारंभ में तो चुनौतीपूर्ण रहे होंगे। लेकिन ऐसी चुनौतियों को भी चुनौती देते हुए एक मौलिक विचार के साथ सुखद, साहसिक व सकारात्मक परिवर्तन के लिए कृत संकल्पित संस्थाएं समाज में कार्यरत हैं। जिनमें एक नाम है सेवा भारती का। सेवा भारती को इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ स्वयंसेवी संस्था का सम्मान भी मिला है। हर आपदा में देश व समाज के साथ सबसे आगे खड़ी रहने वाली यह स्वयंसेवी संस्था गरीब व वंचित समाज के आत्म सम्मान को बनाए रखते हुए नाम मात्र के पंजीयन शुल्क में उनकी बेटियों के हाथ पीले कराने में भी सहायता कर रही है। इसके लिए संस्था पिछले दस वर्षों से श्रीराम जानकी सर्वजातीय सामूहिक विवाह सम्मेलनों का आयोजन कर रही है।

राजस्थान में 2010 में भवानी मंडी में पहले सर्वजातीय सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें 13 जोड़े विवाह सूत्र में बंधे थे। तब से यह सिलसिला अनवरत जारी है। आज ऐसे समारोह भवानी मंडी के साथ ही राज्य के विभिन्न भागों – जयपुर, भरतपुर, अलवर, जोधपुर, कोटा व छीपा बड़ौद आदि में भी आयोजित होने लगे हैं। सेवा भारती की पहल से 2010 से 2020 तक 1980 जोड़े परिणय सूत्र में बंध चुके हैं। 2021 में बसंत पंचमी के अबूझ सावे पर ऐसा ही एक कार्यक्रम जयपुर के आदर्श विद्या मंदिर में सम्पन्न हुआ। जिसमें कुल 18 जोड़े परिणय सूत्र में बंधे। जिसमें कीर, महावर, कोली, अग्रवाल आदि 9 समाजों के वर वधू वैवाहिक सूत्र में बंधे। इनमें सात जोड़ों का विवाह अंतर्जातीय था।

आज जिस तरह से भड़कीले विवाह समारोहों का चलन है, उन्हें देखते हुए बेटियों का विवाह एक चुनौती से कम नहीं होता। इसीलिए कई परिवारों में लड़कियों को बोझ सदृश मान लिया जाता है और कहीं कहीं तो कोख में ही बच्ची को मार दिया जाता है। झाड़ियों, नालों और अनाथालय के झूलों में भी अक्सर नवजात कन्याएं ही मिलती हैं। ये नवजातें गरीब ही नहीं सम्भ्रांत घरानों की भी होती हैं। कई बार पैसों की कमी के चलते लोग अपनी बेटियों का बेमेल विवाह कर देते हैं और कुछ अयोग्य वर से विवाह करने के बदले वर पक्ष से पैसे वसूलते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वे बेटी बेच देते हैं। ऐसे में उस लड़की को अपनी ससुराल में कितना प्यार व सम्मान मिलता होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि बेटी अच्छे घर में जाए इसके लिए माता पिता सामर्थ्य से बढ़कर खर्च करते हैं इसके लिए वे कर्ज तक ले लेते हैं और फिर पूरी उम्र कर्ज उतारने में निकाल देते हैं। ऐसे में सेवा भारती की यह पहल सभी समाजों व वर्गों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इन सम्मेलनों को गरीब या वंचित समाज से ही जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि पैसे वाले लोगों को भी इसे अपनाना चाहिए। इससे गरीब अमीर का भेद तो मिटेगा ही सामाजिक समरसता की भावना भी बढ़ेगी। ऐसे आयोजनों से सजावट, मनोरंजन, भोजन आदि पर होने वाले खर्चों को कम किया जा सकता है। यदि समाज के प्रत्येक वर्ग में ऐसे आयोजन होने लगें तो विवाह समारोहों पर बेतहाशा खर्च करने की होड़ में कमी आएगी। विवाह में पैसे की प्राथमिकता घटेगी तो कोख में ही बच्चियों को मार देने की मनोदशा बदलेगी। स्त्री पुरुष अनुपात बराबरी पर आएगा। लोग कन्या जन्म को अभिशाप नहीं मानेंगे। आज परिवर्तन का दौर है। हम सब को समय की आवश्यकता मानते हुए ऐसे सम्मेलनों का हिस्सा बनकर समाज को प्रोत्साहित करना चाहिए। पढ़े लिखे बच्चों को अपने माता पिता को अपना विवाह सामूहिक विवाह सम्मेलनों में करवाने के लिए मनाना चाहिए। ऐसा करने से समाज में एक नई चेतना का संचार हो सकता है।

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