सारागढ़ी का युद्ध : 21 सिख सैनिकों की बहादुरी की कहानी

सारागढ़ी का युद्ध : 21 सिख सैनिकों की बहादुरी की कहानी

सारागढ़ी का युद्ध : 21 सिख सैनिकों की बहादुरी की कहानीसारागढ़ी का युद्ध : 21 सिख सैनिकों की बहादुरी की कहानी

12 सितंबर को 1897 में हुए सारागढ़ी के युद्ध की 126वीं वर्षगांठ मनाई गई। वैसे तो सिख सैनिकों को उनके अदम्य साहस और निडरता के लिए विश्व भर में जाना जाता है, लेकिन 125 वर्ष पहले, 10 हजार अफगान आतंकियों को सिख सैनिकों के साहसी और निडर रूप की झलक देखने को मिली। सारागढ़ी की लड़ाई वर्ष 1897 में समाना रिज पर लड़ी गई थी, जो अब पाकिस्तान में है। सारागढ़ी एक सुरक्षा चौकी थी जिसे यह सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया था कि लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले के बीच संचार बिना किसी बाधा के निरंतर चलता रहे।

अफगानिस्तान की अफरीदी और कजई जनजातियों ने गुलिस्तान और लॉकहार्ट किलों पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से आक्रमण किया। ये दोनों किले भारत-अफगान सीमा के पास स्थित थे और इन दोनों किलों का निर्माण ‘महाराजा रणजीत सिंह’ ने करवाया था। लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले के पास सारागढ़ी नामक एक चौकी थी। यह स्थान सैनिकों के लिए अधिकारियों से संवाद करने का मुख्य केंद्र था। सारागढ़ी चौकी पर 36वीं सिख रेजीमेंट के जवान तैनात थे। 12 सितंबर को पश्तून हमलावरों (अफरीदी और कजई) ने लॉकहार्ट किले पर हमला किया। 21 सिख सैनिकों ने 10,000 पश्तूनों से लोहा लिया और बलिदान होते-होते 600 को मार गिराया। रेजिमेंट के लीडर ईशर सिंह ने 20 से अधिक दुश्मनों को मौत के घाट उतारा। यह लड़ाई इसलिए महान है क्योंकि इसका परिणाम सभी को पता था। इसके बावजूद ये सैनिक अपने देश के लिए लड़े और अतिरिक्त सेना के पहुंचने तक 10,000 सैनिकों को एक दिन तक आगे बढ़ने से रोककर रखा।

हमले को विफल करने वाले 21 सिख जवानों को उनकी बहादुरी के लिए उस समय के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। इस ऐतिहासिक घटना पर ‘केसरी’ नाम की फिल्म भी बनी थी। इन मुट्ठी भर सैनिकों की अतुलनीय वीरता के कारण सारागढ़ी की लड़ाई को विश्व की सबसे महान लड़ाइयों में से एक माना जाता है।

भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट इन बहादुर सैनिकों की याद में 12 सितंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाती है। सिख सैनिकों की स्मृति में, इंग्लैंड के वोवरहैम्प्टन में वेडेंसफील्ड में सिख सैनिकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले हवलदार ईशर सिंह की 10 फुट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। यह प्रतिमा 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर बनी है। इस प्रतिमा का उद्घाटन पिछले वर्ष किया गया था। इस अवसर पर कई अंग्रेज सांसद और सेना के अधिकारी उपस्थित थे। कांस्टेबल ईशर सिंह की प्रतिमा 38 वर्षीय मूर्तिकार ल्यूक पेरी ने बनाई है। इस स्मारक पर लगभग 1 लाख 36 हजार पाउंड व्यय किए गए हैं।

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