सावरकर एवं हिंदू : मिथक एवं वास्तविकता

– प्रीति शर्मा

सावरकर हिंदू जैसे व्यापक शब्द का प्रयोग भारत भूमि को अपनी पितृ भूमि एवं पुण्य भूमि स्वीकार करने वाले समस्त जनमानस को इंगित कर सामाजिक सौहार्द्र एवं संयोजन स्थापित करने हेतु करते हैं। ऐसे युग मनीषी को भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान से विभूषित करना भारत का उनके प्रति अपने कई जन्मों के ऋण से  मुक्ति का एक सकारात्मक प्रयास ही होगा। 

विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम, जो समस्त भारत भूमि पर समरसता, एकात्मता, हिंदूराष्ट्र दर्शन तथा हिंदूतत्व जैसे शब्दों का नाद करता है। 28 मई 2020 को सावरकर की 137 वीं जयंती मनाते हुए संपूर्ण भारतवर्ष को इन शब्दों के आत्मिक साक्षात्कार का अनुभव करने और इनकी वर्तमान प्रासंगिकता को लयबद्ध रूप से समझने की परम आवश्यकता है। सावरकर, ऐसे महापुरुष व्यक्तित्व का परिचय है जो भारतीय समाज में हिंदू राष्ट्रीयता को एक व्यापक परिभाषा के रूप में अभिव्यक्त करते हैं।

उनके अनुसार हिंदूपन एक दर्शन है जो सिंधु से समुद्र तट तक विस्तृत भारत भूमि में निवास करने वाले जनसामान्य की जीवन शैली का मार्गदर्शन करता है। सावरकर हिंदू शब्द को 1938 में, अहमदाबाद में, हिंदू महासभा में व्याख्यायित करते हुए उद्घोष करते हैं –

आसिंधु सिंधु पर्यंता यस्य भारत भूमिका।
पितृभू: पुण्य भूश्चैव स वै हिंदूरीति स्मृत:।।

स्पष्ट है कि सावरकर हिंदू जैसे व्यापक शब्द का प्रयोग भारत भूमि को अपनी पितृ भूमि एवं पुण्य भूमि स्वीकार करने वाले समस्त जनमानस को इंगित कर सामाजिक सौहार्द्र एवं संयोजन स्थापित करने हेतु करते हैं। यहां हिंदू किसी वर्ग विशेष अर्थात जाति विशेष की संज्ञा ना होकर समस्त जाति वर्ग की सीमाओं से मुक्त हो भारत के प्रत्येक निवासी हेतु प्रयोग किया गया है। सावरकर कोटि-कोटि जनमानस के प्रेरणा स्रोत उज्जवल प्रकाश का नाम है, जिसने ब्रिटिश राज के अंधकार से भारत को मुक्ति दिलाने हेतु स्वयं को वर्षों जेल के पीड़ादायक क्षणों में स्वतंत्रता संग्राम के प्रतिबिंब के रूप में प्रकाशित रखा।

वीर सावरकर शब्द में ही सावरकर के साहस धैर्य सहनशीलता पुरुषार्थ एवं राष्ट्र उत्थान हेतु कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व निहित है। वीर सावरकर ने ब्रिटिश राज द्वारा दिए गए दो आजीवन कारावासों को बिना विचलित हुए भारत की स्वतंत्रता के संकल्प के साथ पूर्ण किया। इसकी प्रासंगिकता वर्तमान में भारत के युवाओं के लिए संकट की परिस्थितियों में धैर्यवान रहते हुए राष्ट्र की रक्षा हेतु निष्ठावान बनाए रखने हेतु स्वयं सिद्ध है।

ऐसे युग मनीषी को अपने आजीवन संघर्षों के आलोक में भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान से विभूषित करना भारत का उनके प्रति अपने कई जन्मों के ऋण से मुक्ति के एक सकारात्मक प्रयास के समान ही है। ऐसे महान व्यक्तित्व पर राजनीतिक प्रपंचों द्वारा मिथ्या आरोपों तथा आक्षेप लगाने मात्र से इसकी आभा क्षीण होना असंभव ही है। इसमें लेश मात्र भी संकोच नहीं कि सावरकर का प्रत्येक सिद्धांत एकीकृत भारत का पक्ष पोषक है। अतः संपूर्ण भारत वर्ष को सावरकर के जीवन को समझने की आवश्यकता है, तभी हम इस महान व्यक्तित्व के आजीवन संघर्षों तथा उज्जवल चरित्र को समुचित सम्मान देने योग्य हो सकेंगे।

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