प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी (SIMI) ही पीएफआई (PFI) है
प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी (SIMI) ही पीएफआई (PFI) है
देश के विभिन्न राज्यों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के ठिकानों पर छापेमारी चल रही है। संगठन हमेशा से अपनी संदिग्ध गतिविधियों के लिए जाना जाता रहा है। मुस्लिमों का हिमायती होना अच्छी बात है, लेकिन संगठन की पहचान देश विरोधी गतिविधियों से अधिक रही है। आइए जानते हैं पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया क्या है? इसके सदस्य कौन हैं और इसका गठन कैसे हुआ? क्या वास्तव में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी (SIMI) ही पीएफआई (PFI) है?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की एक कंपनी – इंटरमीडिया पब्लिशिंग लिमिटेड, केंद्रीय कारपोरेट कार्य मंत्रालय में पंजीकृत है। कंपनी द्वारा वर्ष 2020 में मंत्रालय को दी गयी जानकारी के अनुसार इसके 12,171 शेयरधारक हैं, जिनके पास 2,456,380 (24 लाख से अधिक) शेयर हैं। ये सभी शेयरधारक मुसलमान हैं। इनमें कोई गैर मुसलमान शामिल नहीं है। इन शेयरधारकों के पास एक से लेकर बारह हजार तक शेयर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 210,907 (2 लाख से अधिक) शेयर केपी मोहम्मद शरीफ नाम के एक व्यक्ति के पास हैं।
अब प्रश्न उठता है कि यह केपी मोहम्मद शरीफ कौन है? दरअसल, जनवरी 2009 में केरल के मलप्पुरम जिले के मंजेरी शहर में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) की एक साथ कई बैठकें हुईं, जिनमें पत्रकारों को बताया गया कि एनडीएफ का पीएफआई में विलय हो गया है। वैसे, यह विलय 2006 में ही हो चुका था और तमिलनाडु का उग्रवादी संगठन मनिथा नीति पसाराई (एमएनपी) और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (केएफडी) भी इस प्रक्रिया में शामिल था। मनिथा नीति पसाराई का संस्थापक, एम गुलाम अहमद तमिलनाडु में सिमी का काम देखता था।
इस विलय में एनडीएफ, एमएनपी, और केएफडी से जुड़े जितने भी लोग थे, वे सभी पीएफआई के सदस्य बन गए। इन्ही में से एक प्रमुख व्यक्ति केपी मोहम्मद शरीफ भी था। आज इन उग्रवादी संगठनों के लगभग सभी सदस्यों के पास इंटरमीडिया पब्लिशिंग लिमिटेड के शेयर हैं, जिनमें अब्दुल मोहम्मद सलाम और ए सईद जैसे नाम भी शामिल हैं।
एनडीएफ के आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े होने के कई सबूत उपलब्ध है। वर्ष 2010 में केरल के कॉलेज लेक्चरर टीजे जोसेफ पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर एक मुस्लिम उग्रवादी ने उनका हाथ काट दिया था। इस घटना के संदर्भ में केरल पुलिस ने जांच के दौरान पीएफआई से जुड़े कुंजुमों नाम के व्यक्ति के घर पर छापा मारा। उसकी कार से एक सीडी बरामद हुई, जिसमें अलकायदा और तालिबान द्वारा नृशंस हत्या करने का प्रशिक्षण दिया गया था। कुंजुमो, पीएफआई से पहले एनडीएफ से भी जुड़ा हुआ था।
एनडीएफ 1989 के आसपास बना। लेकिन सुर्खियों में 1993 के बाद आना शुरू हुआ। 1997 में कोझीकोड़ शहर की पुलिस कमिश्नर रही, नीरा रावत ने खुलासा किया था कि एनडीएफ को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआई (ISI) से पैसा मिलता है। वर्ष 2003 में एनडीएफ का मुखिया पी कोया नाम का एक व्यक्ति था। आजकल यह इंटरमीडिया पब्लिशिंग लिमिटेड का निदेशक एवं शेयरधारक दोनों है।
कोया, जनवरी 2006 में शुरू हुए पीएफआई के मुखपत्र तेजस का भी काम देखता था जो कि इंटरमीडिया पब्लिशिंग लिमिटेड का ही एक प्रकाशन है। वर्ष 2011 में तेजस ने एक अंक में ओसामा बिन लादेन को ‘शहीद’ का दर्जा दिया था। बिन लादेन के चलते यह अंक चर्चा में आ गया, लेकिन तेजस का एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम युवाओं को आतंकवाद की राह पर धकेलना होता था। इसलिए 25 नवम्बर 2009 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक चिट्ठी लिखकर केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार को तेजस के बारे में सचेत किया। इस दबाव के बाद, राज्य सरकार ने तेजस को सरकारी विज्ञापन देने बंद कर दिए। यानि कई सालों तक तेजस आतंकवाद फैलाने के लिए सरकारी पैसे का प्रयोग करता रहा और राज्य सरकार ने इस मामले पर कभी गम्भीरता से विचार नहीं किया।
कोया, आतंकी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का संस्थापक सदस्य भी था। जुलाई 2009 में पीएफआई ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसिीपीआई) नाम से एक राजनीतिक इकाई शुरू की। इसका नेतृत्व ई अबुबकर के पास था, जो कि केरल में 1982 से 1984 तक सिमी का सर्वेसर्वा था। अबूबकर के पास भी इंटरमीडिया पब्लिशिंग लिमिटेज के शेयर हैं।
सऊदी अरब में भारतीय मुसलमानों की एक संस्था – इंडिया फ्रेटरनिटी फोरम (आईएफएफ) काम करती है। भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को मिली खुफिया जानकारी के अनुसार आईएफएफ के माध्यम से ही पीएफआई वहां पैसा जुटाता है। इन दोनों संस्थाओं के बीच की कड़ी का काम एसडीपीआई (SDPI) करती है।
सिमी के आतंकवादी हमलों में शामिल रहने के पुख्ता सबूतों के कारण वर्ष 2001 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसके बाद यह प्रतिबंध यूपीए सरकार के समय भी जारी रहा। हालांकि, यूपीए सरकार में कई बार इस पर प्रतिबंध हटाने के प्रयास चलते रहे। लेकिन जब कोई राहत नहीं मिली तो सिमी ने पीएफआई नाम से दूसरा संगठन बना लिया और देशभर में आतंकवाद को फैलाने का काम पहले की तरह चलता रहा।
सिमी के पाकिस्तानी आतंकी संगठनों इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर ए तैयबा से सम्बंध जगजाहिर थे जोकि पीएफआई बनने के बाद भी कायम रहे। सितम्बर 2010 को केरल पुलिस ने पीएफआई– लश्कर संबंधों के सिलसिले में केरल उच्च न्यायालय को बताया कि वह इसकी जांच कर रही है। लेकिन पुलिस को शक हुआ क्योंकि लश्कर का एक आतंकी टी नासिर पीएफआई के एर्नाकुलम जिले के कार्यालय में कई दिनों तक रहा था। मगर केरल के तत्कालीन वामपंथी मुख्यमंत्री, वीएस अच्युतानंदन ने मुस्लिम तुष्टिकरण अथवा वोट बैंक के कारण पुलिस को जांच करने से रोक दिया था।
26/11 आतंकवादी हमलों के मुख्य आरोपी फैयाज कागजी के सिमी और लश्कर–ए–तैयबा दोनों से संबंध थे। इसने वर्ष 2008 में श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में पुणे जर्मन बेकरी के आरोपी मिर्जा हिमायत बेग को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था। इसके अलावा, सिमी और पीएफआई के आतंकियों को पुलिस पूछताछ से आसानी से निपटने का भी प्रशिक्षण हिमायत बेग ही देता था।
वर्ष 2012 में केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी के कार्यकाल में राज्य पुलिस ने पहली बार खुलकर बताया कि पीएफआई और सिमी एक ही हैं।
अप्रैल 2013 में केरल पुलिस ने पीएफआई के संगठन, थानल चेरिटेबल ट्रस्ट में छापा मारकर बम बनाने एवं इंसानों को शूट करने की प्रशिक्षण सामग्री, बारूद, तलवारें, विदेशी मुद्रा, ईरानी प्रवेश पत्र सहित पीएफआई और एसडीपीआई के पर्चे जब्त किए थे।
एनडीएफ, पीएफआई, एसडीपीआई से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति एवं सम्बद्ध संस्थाओं का सिमी के साथ संबंध जरूर मिलता है। इनकी कार्य शैली भी सिमी से एकदम मेल खाती है। अतः जब सिमी को प्रतिबंधित किया तो उसने दूसरे रास्तों से आतंकवाद को फैलाने का तरीका ढूंढ लिया। अब सिमी के ये आतंकी कम्पनियां पंजीकृत करा रहे हैं, और चुनाव भी लड़ रहे हैं। इसलिए इस नए तरीके के आतंकवाद को पनपने से पहले रोकना बेहद आवश्यक है।