सीता का निर्वासन काल्पनिक, मूल वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख नहीं

सीता का निर्वासन काल्पनिक, मूल वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख नहीं

सीता का निर्वासन काल्पनिक, मूल वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख नहींसीता का निर्वासन काल्पनिक, मूल वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख नहीं

शेखावाटी साहित्य संगम के तीसरे दिन हिन्दू वाङ्मय एवं मिथ्या प्रचार विषय पर आयोजित परिचर्चा में विधिवेत्ता, पूर्व प्राचार्य तथा पाथेय कण पत्रिका के प्रधान संपादक प्रोफेसर रामस्वरूप अग्रवाल, डॉ. रजनी रमन झा एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह शेखावत ने भाग लिया। परिचर्चा में प्रोफेसर रामस्वरूप अग्रवाल ने कहा कि वेद उपनिषद गीता रामायण महाभारत आदि भारतीय वाङ्मय के अंग हैं। भारतीय वाङ्मय में हमारे समाज जीवन, सांस्कृतिक जीवन एवं आर्थिक जीवन का पूर्ण उल्लेख है, परंतु कालान्तर में भारतीय वाङ्मय को अपभ्रंश करके हमारे सामने उनका मिथ्या चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। भारतीय वाङ्मय को सबसे अधिक ब्रिटिश कालखंड में प्रचारित किया गया। वेदों तथा उपनिषदों को काल्पनिक बताकर उनकी प्रमाणिकता को नष्ट करने का प्रयास किया गया तथा इनका अंग्रेजी अनुवाद गलत तरीके से किया गया। अंग्रेजों ने राम के जन्म को ही नकार दिया। उन्होंने कहा राम हुए ही नहीं। जबकि नासा ने समुद्र में रामसेतु की पुष्टि कर चित्र प्रसारित किए और राम के होने को प्रमाणित किया। अग्रवाल ने कहा कि भारत का वाङ्मय सत्य, तथ्यपरक एवं आज की व्यवस्था के अनुरूप है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक प्रदीप शेखावत ने कहा कि आज की शिक्षा भारतीय परिपेक्ष्य की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। इस कारण समाज में आज वैमनस्यता फैल रही है। प्रथम शिक्षिका परिवार में माँ है, परन्तु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण माँ भी अपने शिशु को भारतीय संस्कृति की शिक्षा नहीं दे पा रही है। पूर्व में लोरियों के माध्यम से ही माँ द्वारा अपने बच्चों को संस्कार दिए जाते थे। आज योजनाबद्ध तरीक़े से प्रतिभाओं पर प्रहार किए जा रहे हैं। जेएनयू में महिषासुर की जयंती मनाई जाती है। इससे युवाओं को क्या संस्कार मिलेंगे हम सभी देख पा रहे हैं।

डॉ. रजनी रमन झा ने कहा कि लोक में प्रचारित है कि राम ने अपने शासन काल में पुरवासियों द्वारा लांछित होकर सीता का वन में निर्वासन कर दिया था। जबकि वाल्मीकि रामायण का सघन एवं आद्योपांत अध्ययन किया जाए तो कांच की भांति साफ हो जाता है कि मूल वाल्मीकि रामायण में यह कहीं भी उल्लेखित नहीं है।

कार्यक्रम के अगले सत्र में मनु कंबोज ने स्वरचित पुस्तक अशोक कंबोज स्मृतियों में, का परिचय कराया। कंबोज ने बताया कि अशोक कंबोज 1984 तक संघ के प्रचारक रहे। उन्होंने सामाजिक चेतना हेतु अनेक प्रयास किये।

कार्यक्रम के अंत में प्रस्तुत सामूहिक नृत्य में 11 विद्यालयों के प्रतिभागियों ने भाग लिया। जिसमें वर्धमान विद्या विहार के प्रतिभागियों ने प्रथम स्थान, मदनलाल बियाणी बालिका आदर्श विद्या मंदिर के प्रतिभागियों ने द्वितीय स्थान तथा सोफिया सेंट्रल सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्रतिभागियों ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

कार्यक्रम के संयोजक बाबूलाल मील ने बताया कि त्रिदिवसीय शेखावाटी संगम में 16 प्रकाशनों की पुस्तकें थीं,  जिनमें भीम मीम कथ्य एवं तथ्य पुस्तक सर्वाधिक चर्चा में रही। समापन पर हलाल प्रमाणन तथ्यपरक पुस्तक निशुल्क वितरित की गई।

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