राजस्थान : सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ता मजहबी कट्टरवाद, अनदेखी पड़ सकती है भारी

राजस्थान : सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ता मजहबी कट्टरवाद, अनदेखी पड़ सकती है भारी

राजस्थान : सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ता मजहबी कट्टरवाद, अनदेखी पड़ सकती है भारीराजस्थान : सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ता मजहबी कट्टरवाद, अनदेखी पड़ सकती है भारी (सांकेतिक इमेज)

जयपुर। पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों से बढ़ रहा मजहबी कट्टरवाद एक नए और बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। इस क्षेत्र में मस्जिदों और मदरसों की संख्या तेजी से बढ़ी है और इसके साथ ही मुस्लिम जनसंख्या में भी वृद्धि हो रही है। सीमा सुरक्षा बल इसे लेकर 2018 में ही सरकार को चेता चुका है, लेकिन चिंता का विषय है कि अभी तक इस दिशा में कोई बड़ा और गम्भीर प्रयास होता नजर नहीं आया है।राजस्थान का बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान की सीमा से लगता है। इसमें बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर और श्रीगंगानगर जिले आते हैं। इन सीमावर्ती जिलों में घुसपैठ की घटनाएं सामान्य हैं, लेकिन अब इन क्षेत्रों में जो सबसे बडा खतरा बन कर उभर रहा है, वह है सीमावर्ती क्षेत्रों में मस्जिदों और मदरसो की बढ़ती संख्या।

सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force) की ओर से 2018 में राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों के बारे में एक रिपोर्ट तैयार की गई थी, जिसका नाम था, डेमोग्रेफिक पैटर्न ऑफ बॉर्डर एरियाज ऑफ राजस्थान एंड इट्स सिक्योरिटी इम्पीलकेशंस (demographic pattern of border areas of Rajasthan and it’s security implications) यानी राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में बदलता जनसांख्यकीय पैटर्न और सुरक्षा पर इसका प्रभाव। सीमा सुरक्षा बल ने यह अध्ययन जैसलमेर के छह गांवों मोहनगढ़, नाचना, बहला, भारेवाला, सम, तनोट और पोखरण में किया था।

इस रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में मुस्लिम जनसंख्या में 22 से 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि अन्य समुदायों की जनसंख्या 8 से 10 प्रतिशत ही बढ़ी है। मदरसों और मस्जिदों की संख्या बढ़ रही है और इनमें जाने वाले बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है।, मस्जिदों में नमाज पढ़ने भी अब पहले से ज्यादा लोग जा रहे हैं, लोगों के पहनावे और जीवनशैली में भी अरब संस्कृति का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है। इसके साथ ही यह भी बताया गया था कि जैसलमेर जिले के पोखरण और मोहनगढ़ जैसे क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश के देवबंद से मौलवी अक्सर आते हैं। जिनके प्रभाव से यहां मजहबी कट्टरवाद तेजी से पांव पसार रहा है। यहां जमीनों में मुस्लिम समुदाय द्वारा बड़ा निवेश किया जा रहा है जो यहां पर साम्प्रदायिक विद्वेष का बड़ा कारण भी बन रहा है।

यह बात सही है कि राजस्थान के इस सीमावर्ती क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या हमेशा से अधिक रही है, लेकिन यहां का मुस्लिम समुदाय कट्टरपंथी नहीं रहा है, बल्कि राजस्थान के गीत-संगीत और संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में उनकी पहचान रही है, लेकिन पिछले कुछ समय में यहां अरबी संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है। यह बात सीमा सुरक्षा बल ने तो अपनी रिपोर्ट में कही है, लेकिन इसे वैसे भी अनुभव किया जा सकता है। इस क्षेत्र का दौरा करने पर यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि अब यहां मजहबी कट्टरवाद पहले की तुलना में बढ़ा है। और जैसे जैसे मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ रही है, हिन्दुओं का पलायन हो रहा है। अनुसूचित जाति के परिवारों पर मुसलमानों की दबंगई बढ़ी है। चूंकि यह क्षेत्र पाकिस्तान से लगता हुआ है, इसलिए यहां पाकिस्तानी मोबाइल नेटवर्क आसानी से उपलब्ध है। लोगों के पास पाकिस्तानी सिम मिल जाती है। कई बार सेना की महत्वपूर्ण जानकारियां लीक होने के मामले भी सामने आए हैं। घुसपैठ की घटनाएं तो हम आमतौर पर सुनते ही है। ऐसे में सीमावर्ती क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या में इतनी तेजी से वृद्धि और साथ ही मदरसों और मस्जिदों की संख्या में बढ़ोत्तरी को सामान्य बात कह कर खारिज नहीं किया जा सकता।

प्रदेश में अभी सरकार कांग्रेस की है और कांग्रेस जिस तरह से मुस्लिम तुष्टीकीण की नीति पर काम करती है, उसे देखते हुए यहां सरकार कोई बड़ी जांच या मॉनिटरिंग कराएगी, इसकी आशा कम ही है। एक चैनल से बातचीत में सरकार के गृह राज्यमंत्री राजेन्द्र यादव ने जो कुछ कहा है, उससे लगता भी यही है कि इन स्थितियों को सरकार कोई गम्भीर चुनौती नहीं मानती। मंत्री कहते हैं कि मस्जिदों का बढ़ना किसी भी तरह से यह इंगित नहीं करता कि इससे मजहबी कट्टरवाद बढ़ रहा है। मदरसों की संख्या बढ़ने को भी वे सामान्य बात ही मान रहे हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि राज्य सरकार का इस मामले में दृष्टिकोण कैसा है और सरकार इसे लेकर कितनी गम्भीर है।

मुद्दा यही है कि सीमावर्ती क्षेत्र में ऐसी किसी भी गतिविधि को पूरी गम्भीरता से लिया जाना चाहिए और इसे किसी भी तरह से वोट बैंक या तुष्टिकरण के नजरिए से नहीं देखना चाहिए, क्योंकि यह अंतत देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है।

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