सीमोल्लंघन का दुस्साहस न करें सनातन विरोधी

सीमोल्लंघन का दुस्साहस न करें सनातन विरोधी

राष्ट्रचिंतन लेखमाला – 7

 नरेंद्र सहगल

सीमोल्लंघन का दुस्साहस न करें सनातन विरोधीसीमोल्लंघन का दुस्साहस न करें सनातन विरोधी

जाग प्रहरी फिर विधर्मी जाल बुनकर

कर रहे आघात तेरी धर्म-भू पर

धर्म रक्षण हेतु बन भगवान

प्रलय की कर गर्जना हिमवान

हाल ही में भारत की राजधानी दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के तत्वाधान में सम्पन्न तीन दिवसीय अधिवेशन में भारत में इस्लाम की उत्पत्ति और विस्तार पर जिस तरह से ऐतिहासिक सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर परोसा गया, उसने पहले से सुलग रही मजहबी जिहादी आग में तेल छिड़कने का काम किया है। इस सम्मेलन के मुख्य मौलानाओं ने सनातन भारत अर्थात हिन्दू राष्ट्र के अस्तित्व को नकारने का घृणित काम किया है। हिन्दू राष्ट्र राजनीतिक या मजहबी अवधारणा नहीं है। सभी भारतवासियों की सांझी पहचान है हिन्दू राष्ट्र। यह अवधारणा संविधान के विरुद्ध भी नहीं है। राष्ट्रचिंतन लेखमाला के दूसरे एवं तीसरे लेखों में इसकी व्याख्या की गई है।

मजहबी भाईचारा बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित इस सम्मेलन में मौलाना महमूद अदनी और उसके चाचा अरशद अदनी के द्वारा दिए गए व्याख्यानों की समीक्षा करना वर्तमान समय की आवश्यकता है। इन्होंने पूरे जोर के साथ ऐलान किया है कि खुदा के द्वारा भेजा गया पहला पैगंबर भारत में ही आया था। इसलिए इस्लाम का जन्म भारत की धरती पर ही हुआ था। भारत में इस्लाम कहीं बाहर से नहीं आया। भारत की धरती पर प्रकट हुआ इस्लाम संसार का सबसे प्राचीन धर्म है। महमूद अदनी ने यह भी कहा कि भारत हमारी (मुसलमानों) मातृभूमि है।

यह मौलाना यहीं तक नहीं रुके। सम्मेलन के अंतिम दिन – महमूद अदनी के चाचा मौलाना अरशद अदनी ने और आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि आदम और ओम एक ही हैं। दोनों को अल्लाह ने बनाया है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश और श्रीराम को भी अल्लाह ने ही जन्म दिया है। इस तरह इन दोनों मौलानाओं ने एक ही स्वर में संसार के सबसे प्राचीन हिन्दू धर्म (भारतीय जीवन प्रणाली) ईसाइयत, सिख, जैन, बौद्ध इत्यादि सिद्धांतों को इस्लाम के आगे बौना सिद्ध करने का विफल प्रयास किया।

हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र के सजग प्रहरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को जाहिल कहा गया। उल्लेखनीय है कि संघ के सरसंघचालक ने कहा था कि भारत में रहने वाले सभी नागरिक हिन्दू पूर्वजों की संतानें हैं। सनातन काल से चला आ रहा हिन्दू राष्ट्र भारत की सनातन संस्कृति, सनातन समाज, सनातन भूगोल (अखंड भारत) और गौरवशाली सनातन इतिहास का सामूहिक परिचय है। सभी भारतीय इस राष्ट्र के अभिन्न अंग हैं। अपनी मातृभूमि की पूजा एवं सेवा ही हमारा राष्ट्रधर्म है।

धर्म के नाम पर बुलाए गए इस ‘अधर्म’ सम्मेलन में उठाए गए कुछ मुद्दों पर अनेक प्रश्न खड़े हो जाना स्वाभाविक ही है। यदि अल्लाह और ओम एक ही हैं, तो ओम के अनुयायियों की ‘सर तन से जुदा’ कर देने की मजहबी मानसिकता को क्या कहा जाएगा? इस्लाम में ओम के उच्चारण से शुरू होने वाले वैदिक मंत्रों को मान्यता क्यों नहीं? ओम सूर्याय नमः से शुरू किए जाने वाले यौगिक व्यायाम सूर्य नमस्कार से घृणा क्यों? पवित्र कुरान की आयतों से पहले क्या ओम लगाना संभव है? यदि अल्लाह और ओम एक है तो फिर यह भी बताओ कि दारुल इस्लाम, निजाम-ए-मुस्तफा की हकूमत और गजवा-ए-हिन्द के लिए निहत्थे और बेकसूर लोगों को काफ़िर कह कर मार डालने की दहशतगर्दी को मान्यता क्यों?

चाचा-भतीजा मौलानाओं के अनुसार यदि इस्लाम का जन्म भारत में हुआ था तो फिर 1400 वर्ष पहले सऊदी अरब में किसने जन्म लिया था? यदि संसार में शांति का संदेश लेकर पहला पैगंबर भारत में आया था, तो फिर भारत में ही आक्रांता के रूप में आए मुस्लिम हमलावरों ने पैगंबर की भूमि पर खून की नदियां क्यों बहाईं? तलवार के जोर से कन्वर्जन करने की अनुमति किसने दी? सभी धर्मों का सम्मान करने का नाटक करने वाले मुल्ला-मौलवी जरा बताएं कि मंदिरों को तोड़कर उन पर मस्जिदी ढांचे खड़ा करना क्या जायज़ है?

यह भी बताया जाए कि भारत को लूटने और भारतीयता (हिन्दू राष्ट्र) को बर्बाद करने के लिए बाहर से आए आक्रमणकारी: मुहम्मद बिन कासिम, मुहम्मद गौरी, महमूद गजनवी, बाबर, तैमूर, नादिरशाह, चंगेजखान जैसे दुर्दान्त आक्रान्ताओं ने इस्लाम के नाम पर जो कत्लोगारत भारत में की, उसकी अनुमति क्या पवित्र कुरान अथवा हदीस ने दी थी? सभी धर्म ग्रंथों का सम्मान करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि नालंदा विश्वविद्यालय और इसके पुस्तकालयों को बख्तियार खिल्जी ने क्यों जलाया था।

मौलाना महमूद अदनी के अनुसार यदि भारत मुसलमानों की मातृभूमि है तो फिर भारत माता की जय क्यों नहीं बोलते? राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम से घृणा क्यों? कितनी आश्चर्यचकित और दिलचस्प बात है कि भारत को मातृभूमि तो कह दिया, परंतु मातृभूमि की वंदना नहीं करना चाहते। भारतवासी इन मौलानाओं से पूछना चाहते हैं कि मादरे वतन और मातृभूमि में क्या अंतर है? यदि सभी भारतवासी अल्लाह द्वारा भेजे गए पहले पैगंबर की ही संतानें हैं तो फिर मूर्तिपूजक हिन्दुओं को काफ़िर किसने बनाया?

यदि सभी भारतवासी अल्लाह के पहले पैगंबर की संतानें हैं, तो भारतवासियों (हिंदुओं) पर सैकड़ों वर्षों तक मजहबी आतंकवाद की तलवार क्यों चलाई गई? हिन्दुओं पर जज़िया टैक्स लगाना, हिन्दू महिलाओं और बच्चों पर भयानक अत्याचार करना, हिन्दू धर्मस्थलों को तोड़ना क्या यह सब अमानवीय कुकृत्य भारत में अवतरित होने वाले इस्लाम की नसीहतें हैं?

संभवतया भारतीय मुल्ला-मौलवियों को अभी तक यही समझ में नहीं आया कि भारत का हिन्दू समाज संगठित होकर अब किसी भी मजहबी आतंक का प्रतिकार कर सकता है। ध्यान दें कि सद्भावना के नाम पर आयोजित किए गए इसी अधिवेशन में जब भारतीय संस्कृति और समाज अर्थात हिन्दू राष्ट्र को मन गढ़ंत और तथ्यहीन तर्कों से नीचा दिखाने का प्रयास किया गया तो जैन मुनि आचार्य लुकेश के नेतृत्व में सभी हिन्दू धर्म गुरुओं ने एक साथ इस सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया। हिन्दू संतों ने मौलानाओं के दुस्साहस को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और खुली चर्चा का न्योता देकर मंच से उतर गए। ध्यान दें कि हिन्दू समाज अब प्रतिकार करने की मुद्रा में आ गया है।

अतः हमारे देश में सक्रिय मुल्ला-मौलवियों को चाहिए कि वे वास्तविक इतिहास को पढ़ें और इस्लाम का वर्चस्व थोपने की राष्ट्रघातक मानसिकता को छोड़ें और अपने हिन्दू पूर्वजों की सनातन संस्कृति का सम्मान करें। अपने इस्लामिक जुनून के वशीभूत होकर यह कहना छोड़ दें कि हम हिंदुस्तान पर राज करने वाले बादशाहों की संतानें हैं। यही जुनून और अहंकार हमारे मुस्लिम भाइयों को भारत और भारतीयता से दूर किए जा रहा है। यदि अब आपने वास्तव में भारत को अपनी मातृभूमि कहा तो फिर मातृभूमि के सुपुत्र के कर्तव्य को भी निभाएं। छिपछिप कर नहीं बल्कि सीना तानकर कहें की सभी भारतीय हिन्दू पूर्वजों की संतानें हैं और हिन्दू राष्ट्र भारत की सांस्कृतिक, भूगोलिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान हैं।

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